Ji Chahta Hai : सुनंदा भावे की कविता - जी चाहता है

Dr. Mulla Adam Ali
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Ji Chahta Hai Poetry by Sunanda Bhave

आज आपके समक्ष कविता कोश प्रस्तुत है सुनंदा भावे जी की कविता "जी चाहता है", पढ़े और शेयर करें।

जी चाहता है

लौटकर न आए जहाँ से कोई

न जाने क्यों आज

वहीं चले जाने को जी चाहता है।


नहीं है कोई जो पोंछे आँसुओं को मेरे

फिर भी न जाने क्यों, आज

ज़ार-ज़ार रो लेने को जी चाहता है।


न है कोई हमराज़, न हमज़ुबां कोई

फिर भी न जाने क्यों,

किसी से मन की बात कह देने को जी चाहता है।


नहीं है मिलने वाला, न आनेवाला कोई

फिर भी बहुत शिद्दत से आज

किसी की राह में आँखें बिछाने को जी चाहता है ।


न कासिद है कोई, न पढ़ने वाला

फिर भी आज किसी को

छुप-छुपकर ख़त लिखने को जी चाहता है।


क्रोध का मेरे असर नहीं है कोई

फिर भी आज जो सामने आए उसी को

जी भरके डाँटने, लताड़ने को जी चाहता है ।


मनाने वाला कोई भी तो नहीं है

फिर भी आज न जाने क्यों

सारी दुनिया से रूठ जाने को जी चाहता है ।


कंठ में मेरे सुर है न ताल कोई

फिर भी आज ऊँचे स्वर में

कोई राग आलापने को जी चाहता है ।


कद्र करने को मेरी, फुरसत नहीं किसीको

फिर भी, बेमुरव्वत इस दुनिया में

कुछ कर गुजरने को जी चाहता है ।


मर-मिटे मुझ पर ऐसा नहीं है कोई

न शिकवा है, न शिकायत, बस मौत के आने तक

जी भर के जी लेने को जी चाहता है।

सुनंदा भावे

मो. : 9998980866, 8849383186 sunandabhave@yahoo.com

ये भी पढ़ें; सुनंदा भावे द्वारा अनुवादित हिमांशी शेलत की कहानी "उनका जीवन" हिंदी में

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