कहानी : उनका जीवन - हिमांशी शेलत

Dr. Mulla Adam Ali
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Himanshi Shelat Story "Unka Jivan" Hindi Translated by Sunanda Bhave

उनका जीवन

मूल लेखिका : हिमांशी शेलत

अनुवाद : सुनंदा भावे

 ऐसा क्यों लग रहा है कि यह मयूर का घर नहीं है? आंखों की थकान के कारण या, यहाँ सब कुछ पूरी तरह से बदल गया है, इसलिये? फर्नीचर तो नया ही लग रहा है। ये पडदे भी पिछली बार तो देखे नहीं थे। दीवारें भी इतनी रंगबिरंगी कहाँ थीं! मयूर को तो ऐसी दीवारें देखना भी पसंद नहीं है। बडे दीवानखाने के एक कोने में लॅपटॉप लेकर बैठी निराली को देखकर राहत महसूस हुई। अपनी जगह से जरा भी हिले बिना निराली ने ‘हाय’ या ‘हेय’ जैसा कुछ अस्पष्ट सा कहा, शायद उसके होठों पर भी हलकी सी मुस्कुराहट थी, ऐसा लगा। यूँ भी वो खडी होकर पैर छुएगी ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती थी। चौदह की हो गई है, बहुत सुंदर है, बिल्कुल मयूर जैसी। वर्ण भी मयूर का ही लिया है खिलता हुआ, चमकदार।

- तुम्हारी मम्मा कब आने वाली है?

जवाब पता होते हुए पूछा गया सवाल था यह – लंबे सफर के बाद घर की चुप्पी सहन न होने पर बातचीत की इच्छा से पूछा गया।

- कभी साडे छह तो कभी सात बजे तक - आंखों को स्क्रीन पर से हटाए बिना निराली ने जल्दबाजी में टालने वाला जवाब दिया।

अंदर से बाई पानी लेकर आई और चाय के लिए पूछा। प्रीति आ जाए तभी पिएँगे कहकर सीता ने बाई के आगे बढ़ाए हाथ में अपना सामान पकड़ाया। निराली का व्यवहार सामान्य नहीं था इस बात की ओर उसका ध्यान गया। यह तो होना ही था।

- मैं जरा बाहर बगीचे में बैठती हूँ।

सीता बाहर खुले में आ गई। हरियाली में उसे अच्छा लगा। अभी भी हरसिंगार के पास दो कुर्सियाँ पड़ी थीं, पहले की ही तरह। उस समय तो एक झूला भी था जो अब दिखाई नहीं दे रहा था। प्रीति ने निकलवा दिया होगा। उससे फोन पर तो अक्सर बात होती रहती थी पर प्रत्यक्ष सामने बैठकर जो बात होती है उसका अलग ही स्वाद होता है। ऊपर से प्रीति मितभाषी है, यह एक समस्या है। खुले दिल से अब तक कभी बात हुई हो, उसे याद नहीं आता। ऐसा समय भी बिचारी कहाँ से पाए? प्रोफेशनल्स का तो यही होता है। पूरी दुनिया में जब उथलपुथल हो रही हो तब भी इनके हाथ तो काम में ही गुंथे रहते हैं।

हालांकि जो हुआ वह उथलपुथल से कहीं ज्यादा था। बेटी पिता के बिना जी रही है। सजाया हुआ घर बिखर गया है। मयूर न जाने कहाँ जा बैठा है! और प्रीति के सिर दुगनी जिम्मेदारी आ पड़ी है। पर किसी को कोई फरक पड़ा? सब अपनी अपनी आज़ाद ज़िंदगी जी रहे हैं! लगभग आठ महीने से ये खेल चल रहा है। झगड़ा, कड़वाहट, शिकायत, मेलोड्रामा – कुछ भी नहीं! जैसे कुछ हुआ ही न हो! पैसा किसी को नहीं चाहिये, दोनों की कमाई पाँच अंको में है। निराली आजाद है, उसे जहाँ जिसके साथ रहना हो रह सकती है।

- निराली मयूर के साथ नहीं रहेगी, मैंने ही ना कह दिया है। मयूर उसकी गर्लफ्रेन्ड के साथ लिव इन में रह रहा है, निराली पर बुरा असर पड़ेगा।

प्रीति ने फोन पर कहा था।

- मयूर की गर्लफ्रेन्ड के कारण यह सब हुआ?

सीता को तो सब साफ दिखाई दे गया था।

- नो, कृतिका तो अभी आई है, तीन ही महीने पहले। मयूर तो इसके पहले भी ……

- तो तुम्हें भी कोई ऐसा …..

- नो, देर इज नो मॅन इन माय लाईफ. जैसी हूँ वैसी ही खुश हूँ और ऐसी ही रहने वाली हूँ। और आप भी मम्मी, मेहरबानी करके समझौते का कोई फोर्मूला न बताएँ, प्लीज़ …..

**

इस स्थिति में कोई क्या कह सकता है? निराली स्वस्थ, प्रीति खुश और मयूर उसकी गर्लफ्रेन्ड के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में! वह खुद इस किस्से में क्यों उलझ गई है? लंबे समय के बाद जगह बदल गई इसलिये या इन बच्चों के परिवार की व्यग्रता के कारण? लगभग आठ महीने से कोई किसी से मिला नहीं है। मयूर निराली के साथ संपर्क में है किंतु वह भी फोन और ईमेल से लिखता है – लेट मी नो इफ यु नीड एनीथिंग! बाप की उपस्थिति की कोई जरूरत ही नहीं! मयूर का साया देखे हुए भी कितने दिन बीत गए होंगे, फिर भी निराली कहती है कि वी आर इन टच !

- यहाँ अकेले अकेले क्यों बैठे हैं?

सामने प्रीति खड़ी थी, हंसती, मुस्कराती तनावमुक्त, कोई उल्कापात नहीं, कोई तूफान नहीं!

- चाय पिएँगे न ? मालुबाई, हमारे लिए दो कप चाय बनाना, अदरक डाल कर।

- कैसा चल रहा है, बेटी? मेरा तो दिल दहल गया ! पर मैं गिर गई और ये प्लास्टर का झंझट हो गया। तुरंत आना चाहती थी पर न आ सकी।

- कोई बात नहीं मम्मी, सब कुछ अपने हाथ में थोड़े ही होता है? मयूर नहीं है तो न सही ! उसके साथ जीवन का एक फेज़ था, अब यह नया फेज़ है। बदलाव तो आते रहते हैं। पापाजी के गुजरने के बाद आपकी जिंदगी नहीं बदल गई थी?

- कमाल की बात करती हो तुम भी! मेरे जीवन में जो बदलाव आया और तुम्हारे जीवन में जो हुआ तुम्हें उनमें समानता दिखाई देती है?

- देखिये, उसे मैंने ही मुक्त किया है। और वह अपनी नई पसंद के साथ खुश है। आई हेव नो प्रोब्लेम। वह अकेला नहीं है और मुझे अकेला होना था। बात खतम।

डेड एण्ड। विकराल लहरों के थपेड़े खाती एक छोटी-सी नाव. किनारे के पत्थरों से टकरा कर चूर चूर न हो जाए इसके लिये चाहे जितने प्रयत्न करें, उसे बचाया नहीं जा सकता। माँ अष्टभुजा धारण करके भी कोई चमत्कार नहीं कर सकती। प्रीति-मयूर का घर-संसार समाप्त!

- तुम लोगों की कोई बात मेरी समझ में ही नहीं आती!

सीता के झुके हुए कंधों पर दोनों हाथ रखकर प्रीति खिलखिला कर हंस दी।

- जो गया उसे जाने दो, मम्मी! मैंने शिकायत की? मैं रोई? चलो, अब कुछ नई बात करते हैं। इस रविवार को क्या करना है? निराली, तेरा लॅपटॉप जरा हटाकर बता तो, क्या करना है इस रविवार को?

- - तुम लोग ही सोचो। मुझे तो थियेटर ग्रुप की रिहर्सल देखने जाना है। मेरी फ्रेन्ड का नाटक है, इस पंद्रह को ।

- ये लड़की तो अपनी मर्जी ही करेगी, मयूर ने आदत जो डाल दी है पहले से ही!

प्रीति के लहजे में कोई विरोध, झुंझलाहट नहीं थी। सीता ने जिस जीवन की कल्पना की थी उससे बहुत ही अलग था यहाँ का जीवन! अंदर बजती टेलिफोन की घंटी ने प्रीति को उठने को मजबूर कर दिया। सीता सामने के कॉमन-प्लॉट का निरीक्षण करने में लग गई। मेड़ या चारदीवारी नहीं थी, मात्र वृक्षों की कतार थी, डालियाँ एकदूसरे में गुंथी हुईं। जरूर कोई देखभाल करता होगा, उसके बिना इतना व्यवस्थित नहीं रखा जा सकता था। शुरुवात तो मयूर ने ही की थी। उसे कितनी सारी बातों में रस है! प्रीति नसीबवाली लगी थी तब! नज़र लग जाए ऐसा सुख! और निराली भी कितनी सुंदर!

रात को मयूर का फोन आया।

- कैसी हो माँ? ये दोनों मजे में?

- तुम कहाँ हो बेटा? आ जाओ हमारे पास! तुम्हारे बिना तो मुझे ……

- अरे ! यहाँ पोंडिचेरी ही तो हूँ। काम से आया हूँ।

- कब पूरा होगा तुम्हारा काम?

- अभी दस दिन और लगेंगे । बाद में आसपास घूमना है। कृतिका की इच्छा है और मेरी भी।

कौन कृतिका? सीता पूछते पूछते रुक गई। प्रीति जिसकी बात कर रही थी, वह यही होगी! मयूर के साथ रहती होगी?

- निराली के साथ मजा आता होगा न ! शी इज़ ए वेरी स्वीट गर्ल !

सीता केवल सुनती रही, बोलने जैसा कुछ था ही नहीं।

- रहने वाली हो न अभी तो? रह जाओ, घर जा के भी क्या करना है तुम्हें?

- तुम्हें यहाँ आना नहीं है और मुझे यहाँ रोक रखना है! मयूर, ये तुम्हारा क्या चल रहा है? निराली के बारे में तो सोचो! वह क्या सोचती होगी तुम्हारे बारे में !

- - नथिंग। उसे ही पूछो। उसका बाप दूर से भी उसका कितना ध्यान रखता है, यह उसको पूछ कर ही तुम तय करो तो अच्छा। ये घर तो तुम्हें अच्छा लगता है ऐसा तुमने ही कहा है, फिर क्या समस्या है?

- मेरी बात छोड़, तुझे तेरा घर अच्छा नहीं लगता?

सीता से रहा न गया तो आखिर तीली सुलगा कर डाल ही दी!

- देखो माँ, यही बात छेड़नी हो तो मुझे कुछ नहीं कहना है ……

फोन कट गया। सीता ने धीरे से फोन रख दिया। प्रीति आसपास नहीं थी । उसने उनकी बात नहीं सुनी यह ठीक ही रहा। इतना सुंदर घर छोड़कर मयूर कहाँ भटक रहा है? हालांकि उसने नया आलीशान घर ले लिया है। निराली वहाँ जा चुकी है। नीचे के फ्लोर पर कोई फिल्मस्टार रहता है और निराली के लिये ये एक रोमांचक बात है। मयूर के पास जाने का एक और आकर्षण ! किंतु वह गर्लफ्रेन्ड और लिव-इन रिलेशनशिप वाला मुद्दा समझती है। मयूर जब बुलाए तभी जाती है। प्रीति ने उसे अच्छे से समझा दिया है।

 रविवार आया पर कोई प्रोग्राम न बन सका । सीता ने ही मना कर दिया।

- एक दिन की राहत मिलती है तो भागदौड़ छोड़ो. आराम करेंगे, टीवी देखेंगे, आईसक्रीम खाएंगे, बस, काफी है !

चेहरे पर मुलतानी मिट्टी का लेप, बालों में मेहंदी का लेप, गुलाबजल में भिगोई ठंडी पट्टी आंखों पर रखकर प्रीति लेटी थी।

अभी एक चीज़ बाकी थी, म्युज़िक फॉर रिलेक्सेशन ! आगे के खण्ड की एक एक खिड़की से हरियाली झाँक रही थी। कितनी शांति और सुंदरता ! ऐसा सुंदर घर छोड़कर तो मयूर जैसा अभागा ही बाहर भटकेगा ! सीता पूछना चाह रही थी कि आखिर ऐसा तो क्या हुआ कि यूं सब सुख छोड़कर …….

फिर भी पूछ नहीं सकती थी। ये तो खोद खोदकर फांस निकालने की बात हुई। सीता से बेहतर इस बात को कौन समझ सकता है!

आँख बंद करके सोफे पर लेटी प्रीति के माथे पर सीता ने हाथ रखा।

- तेल भी डाल लेती बालों में थोड़ा ! दिमाग को कितनी ठंडक मिलती है ! पिछली बार कब तेल डाला था?

- मुझे तो वो भी याद नहीं है ! रविवार को निराली के साथ गुजारती हूँ। कभी कभी तो पूरे दिन का प्रोग्राम बन जाता है और मुझे लगता है कि उसे ये नहीं महसूस होना चाहिये कि डॅडी नहीं हैं इसलिये ……… छुट्टियाँ होंगी तब उसे ट्रेकिंग पर भी ले जाने वाली हूँ, इस बार तो।

- तो थोड़ा लाभ मयूर को भी लेने दो न ! बाप है तो थोड़ी जिम्मेदारी उसे भी लेने दो !

- नहीं, बुरा मत मानिये मम्मीजी, पर मयूर की जीने की रीत का साया भी निराली पर नहीं पड़ना चाहिये।

- इतनी नफरत!

- नहीं नफरत नहीं,जो है उसे देखने की तैयारी, निरीक्षण और बाद में लिया हुआ निर्णय है ये।

- चलो, इस तरह नहीं तो एक अलग नजरिये से इसे देखें। मयूर की याद नहीं आती? कभी भी?

प्रीति ने मानो सुना ही नहीं। मानो वह सवाल उसके लिये था ही नहीं।

- तुम दोनों ने कितनी मेहनत से इस घर को सजाया था इस बात की गवाह रही हूँ मैं ! कितने खुश थे उन दिनों तुम दोनों ! इतनी जल्दी सब कुछ यूँ ही नहीं बदल जाता ! तुम्हें कुछ न बताना हो तो कोई बात नहीं, पर इतनी मेहनत से बसाया हुआ सब कुछ जब यूँ बिखर जाता है तो मेरे जैसी के लिये …..

प्रीति के चेहरे पर कोई प्रतिभाव नज़र नहीं आया। पहले से ऐसी ही है, अबूझ।

- मयूर से बात करती हूँ तो वह बात बदल देता है। तुमसे बात करती हूँ तो तुम जवाब नहीं देती हो। निराली तो नासमझ है। नाते-रिश्तेदार मुझे ही कहते हैं कि मां होकर भी कुछ नहीं करती हूँ ! तुम दोनों जितनी शांति से जी सकते हो उतनी शांति मेरे नसीब में नहीं है।

- देखो मम्मी, अब मैं जो कुछ कहूँगी वह आप ध्यान से सुनें।

प्रीति उठकर सीधी बैठ गई थी। तकिया गोद में लिया। हाथों को मोडकर सीने पर बांधा।

- इसमें आप खुद पर दोष नहीं लेंगे, प्रोमिस !

- प्रोमिस !

- मयूर के साथ कोई भी औरत लंबे समय तक नहीं रह सकती। मैंने क्यों इतने साल बिताए ये मुझे ही समझ नहीं आता ।

- ऐसा तो क्या बुरा है मयूर में? अच्छा कमाता है, शौकीन है, जिम्मेदारी समझने वाला लड़का है, एकदम नोर्मल!

- देखा, मैंने कहा था न कि आप नहीं समझ पाओगे! वास्तव में तो मैं ही चाहती थी कि वह अपने लायक कोई ढूंढ ले। थैन्क गॉड उसे कृतिका मिल गई। इसलिये अभी के लिये तो शांति है !

- प्रीति तुम मुझे डरा रही हो ! क्या समस्या है मयूर में। माँ हूँ इसलिये मुझे तुम बता सकती हो। कह दो, ताकि हम दोनों का भार कुछ कम हो, कह दो आज तो!

- पता नहीं कितना कह पाऊँगी ! और आप कितना समझ पाएँगी! मयूर को ….. उसे न …..

प्रीति को कुछ रोक रहा था। सीता ने उसका हाथ थपथपाया।

- कह दे बेटा, मैं तेरी माँ ही हूँ।

- उसे शरीर का बहुत ऑब्सेशन है, मम्मी! उसे इस मामले में नाराज़ न करने कि सलाह डॉक्टर ने दी थी। मैं गई थी साईकिएट्रिस्ट के पास। इतनी सी बात पर घर को तोड़ना अच्छा नहीं होगा ऐसा डॉक्टर कहते रहे। इसलिये मैं सहती रही।

सीता का हाथ अब ठंडा पड़ने लगा था।

- टीवी देखने के लिये भी बैठा हो तो भी देखा जा सकता है कि वह एंकरों के खुले पाँव और जांघे देखने ही बैठा है। ये लोग तो पैसा कमाने के लिये खुद को बेचती हैं पर इसमें तकलीफ मेरे जैसी के लिये! बिज़नेस ट्रिप हो तो भी बार में स्ट्रिपटीज़ देखे बिना वापस नहीं आता।

- तुम्हें कैसे पता?

- वापस आकर खुद ही सब बताता था। सारे नाप उसे मुँह जबानी होते थे। उससे उबरे नहीं कि यह सेक्सी और वह हॉट ! लगातार तुलना! क्या पता उसके दिमाग में इतना सारा …..

सीता के शरीर में बिछी सुरंगें एक साथ प्रचंड विस्फोट के साथ फट पड़ीं। सिर से पैर तक चीथड़े हो गए! प्रीति तो उसके खुद के बहाव में ही बह रही थी इसलिये उसने सीता की हालत देखी ही नहीं।

- और मम्मी, ये गंदगी तो चारों तरफ थी, अखबार में बलात्कार की खबरें जोर से पढ़ता, दिखावा तो ‘अरेरे बिचारी’ का करता पर …… जाने दो न मम्मी, ये बात डिसगस्टिंग है, उलटी आ जाए ऐसी ! आपको या किसी को बताने का कोई अर्थ नहीं है। जिसका पैर कीचड़ में सन गया हो वही समझ सकता है कि …….

- मुझे समझ में क्यों नहीं आएगा ? रजरज से वाकिफ़ हूँ मैं इस बात की, प्रीति, रज रज से…… अब मुझे कुछ भी पूछना नहीं है, न तुझे कुछ कहने की जरूरत है।

मूल लेखिका : हिमांशी शेलत

अनुवाद : सुनंदा भावे

Note: इस अनुवाद के लिए मूल लेखिका हिमांशी शेलत जी की अनुमति सुनंदा भावे जी के पास है जिसे जरूरत पड़ने पर मैं प्रस्तुत कर सकेंगे।

लेखक -परिचय

 डॉ. हिमांशी शेलत

जन्म : 1947 में सूरत में

शिक्षा : एम ए (अंग्रेजी), वी एस नाइपोल पर पीएच डी.

व्याख्याता के रूप में कई वर्ष कार्य करने के बाद स्वैच्छिक निवृत्ति लेकर साहित्य और समाज सेवा में प्रवृत्त हो गईं।

हिमांशीजी का रचना :

गुजराती की बहुत ही प्रतिष्ठित लेखिका हिमांशी जी के रचना-विश्व में अनेक कहानी-संग्रह (10), उपन्यासिकाएँ (3), निबंध, स्मरणकथा, आत्मकथा आदि (5), बालसाहित्य (4), अनुवाद(3), संपादन(10), विवेचन (3) आदि आदि शामिल हैं।

पुरस्कार :

हिमांशी जी की लगभग दस पुस्तकें पुरस्कृत हो चुकी हैं।

 ‘अंधारी गलीमां सफेद टपकां’ पुस्तक के लिये केन्द्रीय साहित्य अकादमी से पुरस्कृत किया जा चुका है।

उन्हें मिले अन्य अनेक पुरस्कारों में मुख्य हैं - गुजरात साहित्य अकादमी के चार से अधिक पुरस्कार, गुजरात साहित्य परिषद के दो पुरस्कार, धूमकेतु पुरस्कार, उमाशंकर जोशी पुरस्कार आदि आदि।

साहित्य अकादमी के सलाहकार के रूप में उन्होंने 2013 से 2017 तक अपनी सेवाएँ दी हैं।

संप्रति गुजरात के वलसाड में रहकर साहित्य और समाज सेवा में प्रवृत्त हैं।

Email – sunandabhave@yahoo.com

अनुवादक - परिचय

नाम – सुनंदा भावे

जन्म : 1951, ग्वालियर (म. प्र.)

मो. 9998980866, 8849383186  

Mail: sunandabhave@yahoo.com

शिक्षा - दीक्षा :  एम. ए. (अंग्रेजी साहित्य), बी.एड.,  एलएल.बी., राष्ट्रभाषा रत्न

प्रकाशित साहित्य :

मौलिक – एक काव्य संग्रह – बाक़ी सफ़र के साथी; विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और संग्रहों में कविता, लेख प्रकाशित

हिन्दी, अंग्रेज़ी, गुजराती और मराठी में परस्पर अनुवाद – अब तक आठ अनूदित पुस्तकें प्रकाशित साथ ही पत्र पत्रिकाओं में अनूदित लेख, कहानियां आदि प्रकाशित; अन्य भाषा से गुजराती में अनूदित पुस्तकें गुजरात साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित; गुजराती से हिंदी में अनूदित ‘देखा मैंने’ को वर्ष 2017 के लिए गुजरात साहित्य अकादमी का श्रेष्ठ अनुवाद के लिए प्रथम पुरस्कार

शीघ्र प्रकाश्य :

* एडिझाईन्स द्वारा शीघ्र प्रकाश्य अंग्रेजी से हिन्दी मेडीकल डिक्शनरी में चार अक्षरों से शुरु होने वाले शब्दों का योगदान (लगभग ४००० शब्द)

* हेंगमेन – उपन्यास, मूल लेखिका श्रीमती ज्योति पुजारी; मराठी से गुजराती – फांसीगर- द हेंगमेन – गुजरात साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशन के लिए स्वीकृत.

* श्रीमति वंदना शांतु-इन्दु के गुजराती काव्य-संग्रह ‘हुं नरसैय्यो नथी’ का हिंदी अनुवाद

* अंताजी माणकेश्वर गंधे – पानीपत युद्ध के योद्धा की जीवन-गाथा-कौस्तुभ कस्तूरे मराठी से अंग्रेजी

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