देवकीनन्दन खत्री पुण्यतिथि विशेष : हिन्दी के निराले साहित्यकार बाबू देवकीनन्दन खत्री

Dr. Mulla Adam Ali
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1 अगस्त बाबू देवकीनन्दन खत्री पुण्यतिथि पर विशेष

देवकीनन्दन खत्री पुण्यतिथि विशेष

Devaki Nandan Khatri

हिन्दी के निराले साहित्यकार बाबू देवकीनन्दन खत्री

बाबू देवकीनन्दन खत्री के पूर्वज लाहौर निवासी थे। महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद जब लाहौर में अराजकता फैल गई थी तब आपके पिता ईश्वरदास काशी चले आये और यहीं स्थायी रूप से रहने लगे। आपका जन्म सन् 1861 ई. में शनिवार, आषाढ़ कृष्ण सप्तमी को मुजफ्फरपुर में अपने ननिहाल में हुआ था। ननिहाल में ही आपका बचपन व्यतीत हुआ और उर्दू-फारसी की शिक्षा भी मिली। बड़े होने पर काशी चले आये। यहाँ आने पर आपने संस्कृत और हिन्दी का अभ्यास किया। गया जिले के टिकारी राज्य में आपकी पैतृक व्यापारिक कोठी थी। वहाँ के राजदरबार में आपकी पर्याप्त प्रतिष्ठा थी। चौबीस वर्ष की आयु तक यहीं रहकर आपने व्यापार की देखरेख की। टिकारी राज्य में काशी नरेश ईश्वरीनारायण की बहिन ब्याही थी, इसी कारण आपका काशी नरेश से भी अच्छा सम्बन्ध हो गया था। टिकारी राज्य के सरकारी प्रबन्ध में चले जाने के बाद आप काशी चले आये और काशी नरेश की कृपा से आपको चकिया तथा नौगढ़ के जंगलों का ठेका मिल गया। इन जंगलों में विभिन्न प्रकार की लकड़ी, गोन्द तथा अन्य वस्तुओं की पैदावार से उन्हें अच्छी-खासी आमदानी होती थी। अपने कारोबार की सुचारु व्यवस्था के लिए आप स्वयं इन जंगलों में घूमते-फिरते थे। इसी दौरान आपको प्राचीन इमारतों के भग्नावशेषों, बीहड़ों व खोहों को देखने का अच्छा सुयोग्य प्राप्त हुआ। इस संयोग-सुलभ वातावरण ने आपके भावुक मनको रहस्यमयी रंगीन कल्पनाओं से रंग दिया। आपने इन दर्शनीय स्थानों को बड़ी सावधानी से देखा-समझा, जो आगे चलकर आपके उपन्यासों की पृष्ठभूमि बना।

कुछ विशेष कारणों से इन जंगलों का ठेका आपको छोड़ना पड़ा और आप घर आ गये तथा काशी में रहने लगे। इन्हीं दिनों आपको कुछ लिखने की धुन समाई और आपने 'चन्द्रकान्ता' नामक उपन्यास लिखना प्रारम्भ किया। 'चन्द्रकान्ता' सन् 1888 ई. में काशी के हरिप्रकाश प्रेस से मुद्रित होकर प्रकाशित हुआ । इस उपन्यास में उन्होंने अपने युवावस्था के अनुभव तथा आँखों देखी जंगल-जीवन की बहार का वर्णन किया।

उपन्यास छपते ही इतना लोकप्रिय हुआ कि लोग केवल इस उपन्यास को पढ़ने के लिए हिन्दी सीखने लगे। खत्रीजी ने इसके बाद 'चन्द्रकान्ता सन्तति' लिखा। आपने हिन्दी के लाखों नये पाठक बनाये। अपनी इस सफलता ने खत्री जी को और भी उत्साहित किया और आपने सन् 1898 के सितम्बर महीने में 'लहरी प्रेस' खोलकर उसी में अपने लिखे ग्रन्थ छापना शुरू कर दिया। इन उपन्यासों की लोकप्रियता ने आपको इसी क्षेत्र में रमा दिया। सन् 1893 ई. में 'नरेन्द्र मोहिनी' सन् 1895 ई. में 'वीरेन्द्र वीर', 'कुसुमकुमारी' (1899) 'काजल की कोठरी' (1902), 'भूतनाथ' एवं 'गुप्त गोदना' (1906) में प्रकाशित हुए। इनके अतिरिक्त नौलखा हार' तथा 'अनुठी बेगम आपके ही उपन्यास हैं। आपने 'सुदर्शन' नामक एक मासिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया जो दो वर्ष चलकर बन्द हो गया।

आप हिन्दी साहित्य में ऐयारी-तिलस्मी उपन्यासों के प्रवर्तक माने जाते हैं। लोक जीवन में ऐसी बहुत-सी कहानियाँ प्रचलित हैं, जिनमें एक राजा का 'चतुर चोर' दूसरे राजा के 'चतुर रक्षकों' को छकाकर उसकी कोई बहुमूल्य वस्तु चुरा लाता था ओर कौशल की परीक्षा हो जाने पर वह वस्तु पुनः उसके वास्तविक मालिक को लौटा दी जाती थी।

इन 'तिलस्मी ऐयारी' उपन्यासों को उच्च साहित्यिक रचनाओं की कोटि में नहीं रखा जाता क्योंकि न तो इनमें सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक और यथार्थ चरित्रांकन ही होता है, न रमणीय भाव रस विधान ही। इनसे सामान्य रुचि के पाठकों का समय अच्छी तरह बीत जाता है। खत्री जी ने इनकी रचना करके जन- सामान्य में हिन्दी की प्रतिष्ठा स्थापित करने का बहुत बड़ा कार्य पूरा किया। यों वे उपन्यास नैतिक दृष्टिकोण से सर्वथा हीन नहीं है। नायक का निष्ठावान, भाग्यवादी, वीर और न्यायप्रिय होना, ऐयारों का वीर स्वामीभक्त, अहिंसक और बात का धनी होना आदि ऐसे तत्त्व इनमें मिलते हैं, जिनसे एक तो भारतीय नैतिक आदर्शवादी दृष्टिकोण की रक्षा हुई है दूसरे सामान्य जातीय चरित्र की स्थूल रेखाओं का अंकन भी हो गया है। लेखक जिस ढंग से घटनाओं को बिखेर देता है, उलझा देता है और फिर समेट लेता है, सुलझा देता है उसमें उसकी उर्वरा कल्पना शक्ति और अद्भूत स्मरण शक्ति का अनुमान लगाया जा सकता है।

खत्री जी ने अपने जीवन काल में 'तिलस्मी ऐयारी' उपन्यासों की धूम मचाकर हिन्दी का बहुत बड़ा कल्याण किया। हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं राजनेता सेठ डॉ. गोविन्ददास ने बचपन में ही देवकीनन्दन खत्री की रचनाएं पढ़ी और उन्हें खत्री जी के साहित्य से तिलस्मी उपन्यास लिखने की प्रेरणा मिली और आपने 12 वर्ष की अल्प आयु में तिलस्मी उपन्यास 'चम्पावती' की रचना की। इस निराले हिन्दी उपन्यासकार देवकीनन्दन खत्री का 52 वर्ष की आयु में 1अगस्त, सन् 1913 ई. में देहान्त हो गया। आज 1 अगस्त 2023 निराले हिन्दी उपन्यासकार देवकीनन्दन खत्री पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन।

- गजानंद गुप्त

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