हिन्दी राजभाषा, राष्ट्रभाषा उद्भव और विकास के विविध सोपान : हिन्दी भाषा के बारे में रोचक तथ्य

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Rajbhasha aur Rashtrabhasha

Hindi Rajbhasha and Rashtrabhasha

Hindi Rajbhasha and Rashtrabhasha :  14 सितंबर राष्ट्रीय हिन्दी दिवस पर हिन्दी भाषा के बारे में रोचक तथ्य,  10 जनवरी विश्व हिन्दी दिवस पर हिन्दी भाषा के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी। हिन्दी राजभाषा का उद्भव और विकास, हिन्दी राष्ट्रभाषा का उद्भव और विकास के बारे में रोचक जानकारी।

हिन्दी राजभाषा - राष्ट्रभाषा उद्भव और विकास के विविध सोपान

* 14 सितम्बर 1949 को संविधान ने यह निर्णय लिया था कि हिन्दी भारत संघ की राजभाषा होगी। तब से यह दिन हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

* राजभाषा अधिनियम संसद में 1963 में ही पास हो गया था, लेकिन धारा 3 (3) बाद में 26-1- 1965 से लागू हुई। 1967 में अधिनियम में संशोधन किया गया।

* राजभाषा नियम 1976 में बनाया गया।

* हमारे संविधान के 9 अनुच्छेद (343 से 351) सरकार की राजभाषा नीति से संबंधित है।

* 1960 के राष्ट्रपति के आदेश अनुसार अहिन्दी भाषी कर्मचारियों के लिए सेवाकालीन हिन्दी का प्रशिक्षण अनिवार्य है।

* हमारे संविधान के अनुच्छेद 343 में प्रावधान है कि देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी भारत संघ की राजभाषा होगी। सभी शासकीय कार्यों में भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप का प्रयोग किया जाएगा।

* संविधान का अनुच्छेद 351 सरकार को निर्देश देता है, कि वह हिन्दी का प्रचार-प्रसार करे, ताकि वह भारतीय संस्कृति के सभी तत्वों को अपने में समाहित कर सामासिक संस्कृति का प्रतिनिधित्व कर सके।

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* विश्व के 150 देशों में लगभग 180 से अधिक विश्व विद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है।

* कुछ देशों में भारतीय मूल के लोगों की संख्या काफी है, यह देश हैं फिजी, गुयाना, मॉरीशस, नेपाल, कंबोडिया, त्रिनीडाड है। यहाँ पर स्कूलों में भी अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाई जाती है।

* प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर, दूसरा मारीशस वह तीसरा नई दिल्ली में हुआ था।

* फ्रान्स दूसरा बड़ा देश है, जहाँ हिन्दी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। अमेरिका में सर्वाधिक बोली जाने वाली भारतीय भाषाओं में हिंदी एक है।

* उत्तरी अमेरिका में 114 हिन्दी पढ़ाने वाले केन्द्र हैं, जब कि सोवियत रूस में 7 हिन्दी शोध संस्थान हैं।

* दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना मद्रास में 1927 में हुई।

* ब्रिटिश भारत में 1803 में पहला परिपत्र जारी किया गया था, कि सभी नियमों, विनियमों का हिन्दी अनुवाद किया जाय।

* दक्षिण में हिन्दी का आगमन अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1296 के आक्रमण के बाद शुरु हुआ।

* 14 वीं सदी में अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा, बीदर, आदिलशाही, कुतुबशाही बीरदशाही आदि राज्यों ने हिन्दी को अपनी राजभाषा बनाया था।

* "हिन्दुस्तानी लैंग्वेज” नामक पहला हिन्दी ग्रामर जॉन - जोशना केटलर ने 1698 में लिखा।

* तरिक फरिश्ता नामक पुस्तक के अनुसार बीजापुर और गोलकोंडा के बहमनी साम्राज्य की राजभाषा हिन्दी थी।

* तंजौर के राजा श्री शाह ने हिन्दी में विश्वजीत और आधा विलास नामक दो नाटक क्रमश: 1674 और 1711 में लिखे।

* देवनागरी टाईप अक्षर सर्वप्रथम 1667 में यूरोप में तैयार किए गये।

* प्रसिद्ध पश्चिमी विद्वानों में - एडबीन ग्रीस, ग्राउस, ग्रिर्यसन, ग्रिफिथ, हार्नले, रोडाल्फ, टेसीटरी, ओल्डाम, पीनकैट इत्यादि ने हिन्दी के विकास में बहुत योगदान किया।

* संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी स्वीकार करने का प्रस्ताव मारीशस द्वारा रखा गया।

* भारत के पुराने संधिपत्र, शिलालेख, राजनीतिक दस्तावेज, व्यापारिक एवं अदालती कागजातों की भाषा हिन्दी थी।

* सन् 1947 के पहले 'राजभाषा' का प्रयोग नहीं मिलता, इसका प्रयोग सबसे पहले सन् 1949 में दक्षिण भारत के नेता श्री राजगोपालाचारी ने संविधान सभा में 'नेशनल लेंग्वेज' के समान्तर 'स्टेट लेंग्वेज' शब्द का प्रयोग किया था।

* 26 जनवरी सन् 1950 को संविधान लागू हुआ तो उसके भाग 17 का शीर्षक 'राजभाषा' रखा गया था।

* उत्तर अपभ्रंश काल में राजभाषा हिन्दी के प्रारंभिक स्वरूप का विकास हुआ था।

* सन् 1172 के दान पत्र, शिलालेख, भोजपत्रों की भाषा हिन्दी थी। मुहम्मद गोरी के सिक्कों पर देवनागरी लिपि का प्रयोग मिलता है।

* सिकन्दर लोदी के शासन काल में राज्य का हिसाब-किताब हिन्दी में किया जाता था।

* शेरशाह सूरी के शासन काल में वहाँ के सिक्कों में नागरी एवं फारसी भाषा का उल्लेख मिलता है।

* डॉ. जान माशैल (1668 - 1672) ने बादशाह औरंगजेब के जमाने की नागरी भाषा के बारे में लिखा है, कि आज के जिला स्तर की प्रशासनिक भाषा मुगलों की देन है, उदाहरण के तौर पर उस युग में तहरीर, खाते नकशा, मिसिल, इन्तलानामा, रसीद, रोजनामा जैसे मुगलकालीन शब्द आज भी प्रशासन के अभिन्न अंग हैं। हिन्दी के विविध शैलियों के प्रयोग का प्रारम्भ औरंगजेब के जमाने में हुआ।

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* महाराष्ट्र में मराठा शासन के दौरान राजभाषा के रूप में हिन्दी का प्रयोग मिलता है। इससे संबंधित सैंकड़ों पत्र पूना और बीकानेर के अभिलेखों में आज भी सुरक्षित हैं। इसी समय 'पेशेवर दफ्तर' में सुरक्षित मराठों के पत्रों में ताम्रपत्र सेवा प्रशासन तथा कई राजनैतिक समझौतों में हिन्दी का व्यापक प्रयोग पाया जाता है, इस संबंध में कई प्राचीन दस्तावेज प्राप्त हुए हैं, जिससे इस बात का भी पता चलता है, कि बड़ौदा शहर के 'नरेश' की आज्ञा पर तैयार किया गया 'सयाजी शासन शब्द कल्पतरू' नामक प्रशासनिक शब्द कोश में गुजराती, बँगला, मराठी और फारसी के अलावा हिन्दी का विपुल रूप हमें देखने को मिलता है।

* सन् 1800 में ईस्ट ईन्डिया कंपनी के शासन काल में माकिंस बेलेजली ने फोर्ट बिलयम कॉलेज की स्थापना हुई, तद्पश्चात नवम्बर सन् 1800 के आस-पास इसी कॉलेज में जॉनलिंग क्राईस्ट की नियुक्ति हुई, जो कलकत्ते में ओरियन्टल सेमिनार चला रहे थे, उन्होंने फोर्ट बिलियम कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए, लल्लूलाल और पंडित सदल मिश्र को खड़ी बोली पुस्तकें तैयार करने के लिए कहा।

* सन् 1801 को ईस्ट ईन्डिया कंपनी ने घोषणा की कि ऐसा कोई सिविल सरवेन्ट किसी जिम्मेदारी के पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता, किन्तु उसे गर्वनर जनरलः द्वारा बनाये गये, कानूनी नियमों तथा हिन्दुस्तानी खड़ी बोली हिन्दी और उन भाषाओं का ज्ञान नहीं है, जो उस पद से संबंधित काम काज के लिए आवश्यक है।

* सन् 1826 में कलकत्ता से हिन्दी का प्रथम पत्र 'उदंत मार्तण्ड' निकला, इस पत्र का मात्र एक उद्देश्य, जनता को हिन्दी की ओर उन्मुख करना था।

* सन् 1857 की प्रथम राज्यक्रान्ति का माध्यम भी हिन्दी था। साथ ही अजीम उल्लाखान द्वारा संपादित प्रथम स्वाधीनता संग्राम का मुख पत्र "पाया ए आज़ादी" (स्वतंत्रता संदेश) दिल्ली से देवनागरी हिन्दी और फारसी में प्रकाशित होता था।

* सन् 1873 को गुजरात के दार्शनिक, समाज सुधारक चिंतक जिनका नाम दयानंद सरस्वती था, इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। स्वामी दयानंद सरस्वती गुजराती होते हुए भी उन्होंने हिन्दी को प्राथमिकता दी। वे आर्य समाजी नियमों का हिन्दी में भाषण देते थे, और हिन्दी में पढ़ते थे। कोंग्रेस की स्थापना के पहले ही बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब के राजनेताओं ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर विशेष बल दिया । बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार केशव चंद्र सेन ने सन् 1857 में अपने समाचार पत्र में एक लेख द्वारा घोषित किया कि हिन्दी ही अखिल भारत की जातीय भाषा या राष्ट्रभाषा बनने योग्य है।

* सन् 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ। इस संविधान सभा में कोंग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों वर्ग के सदस्यों के साथ विचार विमर्श हुआ इसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर सन् 1946 में हुई।

* सन् 1947 दिनांक 14 जुलाई को संविधान सभा एक संशोधन प्रस्तुत किया कि, 'हिन्दुस्तानी' की जगह पर 'हिन्दी' शब्द को रखा जाय ।

* सन् 1948 में काफी चर्चा एवं बहस के बाद जवाहरलाल नेहरू ने 'अखिल भारतीय भाषा' पर बल देते हुए कि स्वतंत्र भारत का कामकाज अपनी भाषा में होना चाहिए।

* सन् 1949 में द्विभाषिक स्थिति पर प्रस्ताव पास हुआ और यह तय किया गया कि अखिल भारतीय काम काज के लिए 'स्टेट लैंग्वेज' का प्रयोग होना चाहिए।

* सन् 1949 में ही 6 अगस्त को 'हिन्दी भाषा सम्मेलन' में नागरी लिपि में लिखी हिन्दी को सर्व सम्मत से स्वीकार कर लिया गया, साथ ही यह भी निर्णय किया गया कि द्विभाषिक स्थिति की अवधि 10 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए।

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* सन् 1949 में ही काफी चर्चा एवं विनिमय के पश्चात एक 'प्रारूप समिति' की रचना हुई, जिसमें कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों को सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। इन सदस्यों के रूप में गोपाल स्वामी अव्यंगर, टी. टी. कृष्णमाचारी, मणिकलाल कनैयालल मुन्शी, डॉ. अम्बेड़कर, सुआ दुल्ला, आजाद. टंडन, पंत, नवीन, श्याम प्रसाद मुखरजी, संतानम् जैसे लोगों ने गंभीर चिन्तन के साथ अपना पूरा सहयोग प्रदान किया।

* सन् 1949 दिनांक 8 अगस्त को कमेटी द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव सामने रखा गया, जिसमें कुल 82 सदस्यों ने हस्ताक्षर किया था, इस कमेटी के प्रस्ताव की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि जिन लोगों ने इस पर हस्ताक्षर किये थे, वे अधिकांश रूप से दक्षिण भारतीय थे। इस प्रस्ताव की प्रतिक्रिया के रूप में 44 सदस्यों ने दूसरा प्रस्ताव रखा जिसमें 'अरबीक नंबरों' की व्यवस्था पर जोर दिया गया था।

* सन् 1949 दिनांक 16 अगस्त को प्रारूप समिति' ने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, इस रिपोर्ट में यह कहा गया था, कि अंग्रेजी को 10 वर्ष तक चालू रहना चाहिए, साथ ही अन्तरराष्ट्रीय अंक को मान्यता प्रदान की गई थी, इसी बीच दिनांक 22 अगस्त सन् 1949 में ही डॉ. अम्बेड़कर ने एक नया फारमूला कमेटी के सामने प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने कई सुझाव प्रस्तुत किया था, पहला सुझाव उनका यह था कि अंग्रेजी को 15 वर्ष तक चालू रहने देना चाहिए, अगर बाद में भी इसकी आवश्यकता महसूस हो तो इसे आगे बढ़ाने का अधिकार संसद को दिया जाना चाहिए। दूसरे सुझाव के अन्तर्गत अन्तरराष्ट्रीय अंक को मान्यता दी जानी चाहिए। तीसरा सुझाव उनका यह था कि उच्च न्यायालय को भी इसका पालन करना चाहिए, चौथा सुझाव था कि प्रादेशिक भाषाओं की अनुसूची तैयार की जानी चाहिए, पाँचवा सुझाव उनका यह था कि भाषा आयोग का गठन किया जाना चाहिए।

* सन् 1949 में दिनांक 28 अगस्त को दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध नेता श्री गोपाल स्वामी अय्यंगार ने 'प्रारूप कमेटी' के सामने एक फार्मूला प्रस्तुत किया जो कि हिन्दी में 'अय्यंगार फार्मूला' के नाम से जाना जाता है।

* सन् 1949 में ही 14 सितम्बर को कुछ सुधारों के फलस्वरूप 'मुन्शी अय्यंगार फार्मूला' स्वीकार कर लिया गया, इसके साथ ही हिन्दी को संघ की भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठा मिली।

* दिनांक 14 सितम्बर का अपने आप में एक बड़ा ऐतिहासिक महत्व माना जाता रहा है, जिसे हम हिन्दी दिवस, राष्ट्रभाषा दिवस, तथा राजभाषा दिवस के रूप में पूरे भारत वर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं।

* 14 सितम्बर सन् 1949 को ही भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने भाषाण में कहा कि 'पहली बार अपने संविधान में एक भाषा स्वीकार कर रहे हैं, जो भारत संघ के प्रशासन की भाषा होगी, जो राजभाषा हिन्दी देश की एकता को कश्मीर से कन्याकुमारी तक अधिक सुदृढ़ कर सकेगी।'

* वैसे संविधान सभा ने राजभाषा के संबंध में अपना अंतिम निर्णय लेने के पश्चात् संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343 से 351 तक यह सर्वत्र व्याप्त है। हालाँकि इसके पश्चात् भी इन अनुच्छेदों और परिशिष्टों में काफी सुधार किये गये हैं क्योंकि अनुच्छेद 350 के साथ 350 अ और 350 ब जोड दिये गये हैं। साथ ही भाषागत अल्पसंख्यकों की भी सुरक्षा की व्यवस्था की गई है। परिशिष्ट की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत कुल 14 भाषाओं को सम्मिलित किया गया था, बाद में फिर से संशोधन किया गया, जिसमें सिंधी भाषा को भी जोड़ा गया। तद्पश्चात अगस्त 1992 में भी संशोधन किये गये जिसमें कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी नामक तीन भाषाओं को भी जोड़ा गया।

     वर्तमान समय में हिन्दी को उच्च स्तर पर पहुँचने वाले भारतवासी जो प्रवासी भारतीय के रूप में पहचाने जाते हैं, और जिन्होंने हिन्दी को पैतृक संपत्ति के रूप स्थापित कर के विस्तार से प्रचार कर रहे हैं, इन लोगों के द्वारा हिन्दी में पत्र-पत्रिकाएँ भी छपती रही हैं, जैसे लन्दन से 'पुरवाई' नामक पत्रिका, न्यूयार्क से 'सौरभ' तथा 'विश्व विवेक', 'विज्ञान प्रकाश' इत्यादि पत्रिकाएँ अमेरिका से निकल रही हैं। जापान से 'ज्वालामुखी', 'सर्वोदय' और 'जापान भारती' पत्रिकाएँ नियमित रूप से निकल रही हैं। इस तरह हम देखते हैं कि हिन्दी राजभाषा और राष्ट्र भाषा के विभिन्न रूप हमारे सामने दृष्टिगत होते हैं।

- डॉ. ओ. पी. यादव

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