Radha Ashtami 2025: अमर है राधा और श्री कृष्ण का प्रेम - शिवचरण चौहान

Dr. Mulla Adam Ali
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राधा अष्टमी 2025

अमर है राधा और श्री कृष्ण का प्रेम

भारतेंदु हरिश्चंद्र और राधा जन्मोत्सव

राधाष्टमी : भारतेंदु हरिश्चंद्र और राधा जन्मोत्सव

Radha Ashtami 2025: Sun, 31 Aug, 2025 राधाष्टमी / राधा अष्टमी / राधा जयंती 2025 पर विशेष शिवचरण चौहान जी का लेख "अमर है राधा और श्री कृष्ण का प्रेम", "भारतेंदु हरिश्चंद्र और राधा जन्मोत्सव" हिंदी में पढ़े और साझा करें।

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दोपहर में हुआ था राधा का जन्म

- शिवचरण चौहान

    भारतेंदु बाबू हरिश्चन्द्र ने बृज भाषा को खूब समृद्ध किया है। उन्होंने राधा और कृष्ण की जन्माष्टमी का मनोहारी चित्रण किया है। श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आधी रात को हुआ था तो राधा का जन्म श्रीकृष्ण से चार साल पहले भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बरसाने में बृषभानू जी के घर मध्यान्ह १२ बजे हुआ था। भागवत पुराण और महाभारत पुराण में राधा का उल्लेख नहीं है किन्तु ब्रह्म वैवर्त पुराण तथा बाद के दो एक पुराणों में राधा के नाम का जिक्र आया है जिसमें राधा का विवाह यशोदा मैया के भाई रायन से हुआ बताया जाता है। इस तरह राधा कृष्ण की मामी थीं। कवि जयदेव ने गीत गोविंद म में पहली बार राधा के नाम का उल्लेख किया है।

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कृष्ण और राधा की जन्म अष्टमी पर पद लिखे हैं -- राधा के जन्म को भारतेंदु हरिश्चंद्र ने खूब सुंदर ढंग से व्यक्त किया है।

आइ नंद-जसोमति मिलि होत अधिक अनंद।

भानु बरसाने उदय भो प्रगट पूरन चंद।

"होत जय जयकार वहि पुर देव बरर्षे फूल।

'हरीचंद' सब गोपिका के मिटे उर के शूल।।


दधि कांदव लीला

आजु दधि-काँदो है बरसाने।

छिरकति गोपी-गोप सबै मिल काहू को नहिं माने।! 

आनंदित घर की सुधि भूली हमको हैं नहिं जाने।

दधि-घृत-दूध उड़े ले सिरसों फिरहि अतिहि सरसाने।

वह आनंद का पै कहि आवै भयो जौन महराने।

श्री बल्लभ-पद-पा-कृपा सों 'हरीचंद' कछु जाने।।


कजली

श्याम-बिरह में सूझत सब जग

हम को श्यामहि श्याम हो इक-रंगी।

जमुना श्याम गोबरधन श्यामहि

श्याम कुंज बन धाम हो इक-रंगी।

श्याम घटा पिक मोर श्याम सब

श्यामहि को है काम हो इक-रंगी।

'हरीचंद' याही तें भयो है

श्यामा मेरो नाम हो इक-रंगी ।।


मल्हार

अनत जाइ बरसत ,इत गरजत बे-काज! 

तुम रस-लोभी मीत स्वारथ के सुनहु पिया ब्रजराज।

दामिनि सी कामिनि अनेक लिए करत फिरत हौ राज।

'हरीचंद' निज प्रेम-पपीहन तरसावत महराज।!

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पिय सँग चलि री हिंडोरे झूल।

या सावन के सरस महीने मेटि अरी जिय सूल।

देखि हरी भई भूमि रही सब बन-द्रुम-बेली फूल।

यह रितु मानिनि-मान-पतिब्रत देत सबै उन्मूल।

होन सँजोगिनि सुख बिरहिन के हिए उठत है हूल।

'हरीचंद' चल ऐसा समय तू

मिलु गहि पिय भुज-मूल।।


राग भैरव

प्रात काल ब्रज-बाल पनियाँ भरन चली

गोरे गोरे तन सोहै कुसुभी को चदरा।

ताही समै घन आए घेरि घेरि नभ छाए

दामिनि दमक देखि होत जिय कदरा।!

बोलत चातक मोर सीतल चलें झकोर

जमुना उमड़ि चली बरसत अदरा।

'हरीचंद' बलिहारी उठि बैठो गिरिधारी

सोभा तौ निहारौ चलि कैसो छाए बदरा।।

 

खंडिता

प्रात क्यों उमड़ि आए कहा मेरे घर छाए! 

एजू घनश्याम कित रात तुम बरसे

गरजत कहा कोऊ डर नहिं जैहैं भागि

झुकि झुकि कहा रहे चलौ अटा पर से।

सजल लखात मानौ नील पट ओढि आए।।

कहौ दौरे दौर तुम आए काके घर से।

'हरीचंद' कौन सी दामिनि सँग रात रहे

हम तो तुम्हारे बिना सारी रैन तरसे।।


सारंग

आये ब्रज-जन धाय धाय।

नाचत करत कोलाहल सब मिलि

तारी दै दै गाय गाय।

जुरे आइ सिगरे ब्रज-बासी

टीको बहु बिधि लाय लाय।

'हरीचंद' आनंद अति बाढ्यो

कहत नंद सों जाय जाय!!


राधा जी का जन्म

आजु भयो अति आनंद भारी।

प्रगटी श्री वृषभानु-दुलारी।

गोपी सब टीकौ लै आवै।

मिलि मिलि रहसि बधाई गावें।

नाचत गोप देत सब तारी।

तन मन की कछु सुधि न सम्हारी।

दान देति हैं मनि-गन हीरा।

हेम पटम्बर पीअर चीरा।!

सुख बाढ्यो तेहि छन अति भारी

'हरीचंद' छबि लखि बलिहारी!!


बलराम जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष पंचमी

आजु श्री बल्लभ के आनंद।

प्रगट भये ब्रज-जन-सुखदायी पूरन परमानंद।

गावत गीत सबै ब्रज-बनिता सोहत है मुख-चंद।

बेद पढ़त द्विजवर बहु ठाढ़े देत असीस सुछंद।

गुप्त रूप कोऊ प्रकट न जानत हलधर सब सुखकंद।

गोपीनाथ अनाथ-नाथ लखि मन बारत 'हरिचंद।!

++++++++++

आजु ब्रज होत कोलाहल

नंदराय घर मोहन प्रगटे भक्तन के सुखकारी।

जित तित तें धाई टीको ले अति आकुल ब्रज-नारी।

निरखन कारन श्याम नवल ससि उमँगी सजि सजि सारी।

गावत गोप चोप भरि नाचत दै दै कै कर-तारी।

बाजे बजत उड़त दधि माखन छीर मनहुँ घन वारी।

दान देत नंदराय उमॅगि रस रतन धे नु बिस्तारी।

'हरीचंद' सों निरखि परम सुख देत अपनपों वारी।

+++++++++

ब्रज में प्रगटे आइ कन्हाई।

नाचत ग्वाल करत कौतूहल

हेरी देत कहि नंद दुहाई।

छिरकत गोपी गोप सबै मिलि

गावत मंगलचार बधाई।

आनंद भरे देत कर-तारी लखि

सुरगन कुसुमन झर लाई।

देत दान सम्मान नंद जू अति

हुलास कछु बरनि न जाई।

'हरीचंद' जन जानि आपुनो टेरि

देत सब बहुत बधाई।!


राधा जन्म

आजु ब्रज होत कुलाहल भारी।

बरसाने बृषभानु गोप के श्री राधा अवतारी।

गावत गोपी रस में ओपी गोप बजावत तारी।

आनंद-मगन गिनत नहिं काहू देत दिवावत गारी।

देत दान सम्मान भान जू कनक माल मनि सारी।

जो जाँचत तासों बढ़ि पावत 'हरीचंद' बलिहारी।!

++++++++++

आजु बन ग्वाल कोऊ नहिं जाई।

कहत पुकारि सुनौ री भैया कीरति कन्या जाई।

लावहु गाय सिगरि बच्छ सह सुबरन सींग मढ़ाई।

मोर-पंख मखतूल झूल धरि अंग अंग चित्र कराई।

आजु उदय साँचो सब गावहु मिलिकै गीत बधाई।

'हरीचंद' बृषभानु बबा सों बहुत निछावरि पाई।

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आनंदेसुख हेरि हेरि।

ब्रज-जन गावत देत बधाये नचत पिछौरी फेरि फेरि।

उनमत गिनत न ग्वाल कठ्ठ ब्रज सुदरि राखी घेरि घेरि।

हेरी दै दै बोलत सबही ऊँचै सुर सों टेरि टेरि।

छिरकत हँसत हँसावत धावत राखत दधि-घृत झेरि झेरि।

'हरीचंद' ऐसो मुख निरखत

तन-मन वारत बेरि बेरि।।

+++++++++

आनंद आजु भयो बरसाने जनमी राधा प्यारी जू।

त्रिभुवन सुखदानी ठकुरानी जननी जनक-दुलारी जू।

सुर नर मुनि जेहि ध्यान धरत हैं गावत बेद पुकारी जू।

सो 'हरिचंद' बसत बरसाने मोहन प्रान-अधारी जू।!


राग बिलाबल

आजु मौन बृषभानु के प्रगटी श्री राधा।

दूरि भई है री सखी त्रिभुवन की बाधा।

को कबि जो छबि कहि सकै कछु कहि नहिं आवै।

आनंद अति परगट भयो दुख दूरि बहावै।

डारहिं सब ब्रज-गोपिका तन-मन-धन वारी।

 हरीचंद' श्री राधिका-पद पै बलिहारी।


भैरव

आजु तौ आनंद भयो का पै कहि जावै

मूलै सब गोपि-ग्वाल इत उत बहु डोलैं।

बाढ्यौ अति हिय हुलास जय जय मुख बोलें।

पहिरि पहिरि सुरंग सारी आई ब्रज-नारी।

गावै हिय मोद भरी दैदै कर-तारी।

दान देत भानु राय जाको जो भावै।

'हरीचंद' आनंद भरि राधा गुन-गावै।


कान्ह डा

आई भादों की उँजियारी।

आनंद भयो सकल ब्रज-मंडल

प्रगटी श्री बृषभानु-दुलारी।

कीरति जू की कोख सिरानी

जाके घर प्यारी अवतारी।

'हरीचंद' मोहन ज की जोरी

बिधना कुँवरि सँवारी।

++++++++++

आजु बरसाने नौबत बाजै।

बीन मृदंग ढोल सहनाई गह गह दुंदुभि गायें।

सब ब्रज-मंडल शोभा बाढ़ी घर घर सब सुख साजै।

'हरीचंद' राधा के प्रगटे देव-बधू सब लाजै।!

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आजु ब्रज आनंद बरसि रह्यौ।

प्रगट भई त्रिभुवन की शोभा सुख नहिं जात कह्यौ।

आनंद-मगन नहीं सुधि तन की सब दुख दूरि बह्यो।

'हरीचंद' आनंदित तेहि छन चरन की सरन गह्यो।!

++++++++++++++

आजु कहा नभ भीर भई?

सजनी कौन फूल बरसावै सुख की बेलि बई।

बालक से चारहु को आये ? तीन नयन को को है?

ओढ़ि बघंबर सरप लपेटे जटा धरे सिर सोहै?

तीन चार अरु पंच सप्त षटमुख के मिलि क्यों नाचैं?

बड़ी जटा मुख तेज अनूपम को यह बेदहि बाँचें?

बीन बजावति कौन लुगाई हंस चढ़ी क्यों डोले?

को यह यंत्र बजाय रही है जै जै जै जै बोले?

को यह लिये तमूरा ठाढ़ी को नाचै को गावै ?

इत आवै कोउ बात न पूछत पुनि नभ लौं चलि जावै?

अति आचरज भरी सब तन में बात करें ब्रज-नारी?

प्रगट भई बृषभानु राय घर मोहन-प्रान-पियारी।

आनंद बढ्यो कहत नहिं आवै कवि की मति सकुचाई

राधा-श्याम-चरन-पंकज-रज 'हरीचंद' बलि जाई।।

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आजु प्रगट भई श्री राधा आजु प्रगट भई।

गोपिका मिलि घर-घरन सों भानु-नगर गई।।

- शिवचरण चौहान

मनेथू, सरवन खेड़ा उप डाकघर
कानपुर देहात 209121
9369766563 फोन नंबर
6394247957 व्हाट्सएप नंबर

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