भीष्म साहनी की कहानियों में वृद्धों की समस्या तथा दो पीढ़ियों का संघर्ष

Dr. Mulla Adam Ali
0

Problems of old people and conflict of two generations in the stories of Bhisham Sahni

Problems of old people and conflict of two generations in the stories of Bhisham Sahni

भीष्म साहनी की कहानियों में वृद्धों की समस्या तथा दो पीढ़ियों का संघर्ष

भीष्म जी ने आधुनिक जीवन पद्धति में पनपती आड़म्बर तथा दिखावे की भावना और स्वार्थ वृत्ति को उजागर किया है। खासकर महानगरों में विकसित होनेवाले मध्यवर्गीय परिवारों के लिए वृद्ध सदस्य एक समस्या बन गए हैं। भीष्म जी की एक श्रेष्ठ और बहुचर्चित कहानी 'चीफ की दावत' में इन समस्याओं का सशक्त एवं मार्मिक चित्रण हुआ है।

'चीफ की दावत' पारिवारिक संबंधों के टूटते और उसके पीछे अर्थ की भूमिका को अधिक सशक्त रूप में रेखांकित करनेवाली कहानी है। साथ ही इस कहानी में वृद्ध की दुर्दशा तथा समस्याओं पर पहली बार नये दृष्टिकोण से यथार्थ रूप से रेखांकित करनेवाली कहानी है।

'चीफ की दावत' में शामनाथ अपने चीफ को खुश करने के लिए माँ को पड़ोसियों के घर भेजना चाहता है, क्योंकि वह सभ्य लोगों के साथ बैठ नहीं सकती, गँवार है इसलिए। माँ बेटे से कहती है-"मैं न पढ़ी न लिखी बेटा, मैं क्या बात करूंगी, तुम कह देना, माँ अनपढ़ है कुछ जानती-समझती नहीं।"¹ फिर वही बेटा अपने चीफ को खुश करने के लिए अपनी माँ से फूलवारी बनवाकर देना चाहता है और तीर्थयात्रा को जानेवाली माँ को रोक लेता है। नई पीढ़ी की स्वार्थ वृत्ति का सुंदर अंकन इस कहानी में हुआ है।

"माँ एक फालतू प्राणी हो चुकी है जो सिर्फ न्यूसेन्स फैला सकती है, शामनाथ की तरक्की में इन्स्ट्रूमेन्ट नहीं बन सकी। वह जागती हो, तो 'गठरी' को चीफ के सामने कैसे लाया जाए और सो रही हो तो उसके खरटि से चीफ के आमोद में खलल कैसे पड़ने दिया जाए। इसी समस्या में भरता है मध्यवर्गीय द्वन्द्व। मानवीय रिश्तों को न छोड़ पाने और आधुनिक बनाकर उन्हें प्रस्तुत योग्य न बना पाने का द्वन्द्व, माँ के स्थान का द्वन्द्व और तरक्की पाने में उसके अनुपयोगी हो जाने का द्वन्द्व।'²

"चीफ की दावत' से उन्होंने कहानी आलोचना के पृष्ठों में अपनी जगह बनायी। यूँ तो वृद्धावस्था की असहायता और पीड़ा के केन्द्र में प्रेमचंद बहुत पहले 'बूढ़ी काकी' रच चुके थे। बाद में उषा प्रियंवदा ने वृद्धावस्था की संवेदना के तार से 'वापसी' गढ़ी, लेकिन 'चीफ की दावत' से हिन्दी कहानी के अंतर्गत समाज में कैरियरिज्म के प्रभाव की शुरूआत मानी जा सकती है।"³

वृद्धों की खासकर वृद्ध विधवा स्त्रियों की हालत कई मध्यवर्गीय परिवारों में सचमुच कहीं दया के पात्र होती है। भीष्म जी की और एक कहानी 'गीता सहस्सर नाम' इसी बात पर आधारित है। कहानी में चरित्र बूढ़ी चाची को वास्तव में किसी हमदर्द की कम से कम उसके साथ प्यार के दो शब्द बोलनेवाली की आवश्यकता है, परंतु अन्य सभी ऐहिक चीजों से भरेपूरे इस घर में लोगों के आपसी सौहार्दपूर्ण संबंधों की कमी है। ऐसी अवस्था में गीता सहस्सर नाम का ही एकमात्र आधार चाची के लिए बाकी रहा। चाची को घर में ही एक अंधेरे से भरी कोठरी में रखा गया है, जो किसी जेलखाने से कम नहीं।

जब चाची का भतीजा उससे मिलने आता है और पूछता है, "भगवान के साथ बातें भी करती है? चाची कहती है-भगवान से नहीं करूँ तो किससे बातें करूँ। वही हर वक्त मेरे पास होता है, वही तो मेरी बात सुनता है।"⁴ किसी पालतू जानवर के समान चाची को घर में पाला गया है, लेकिन जानवर को दिया जानेवाला प्यार चाची को नहीं मिलता है। चाची कहती है कि "एक दिन रात को मेरे सिर में दर्द होने लगा। मैं बड़ी छटपटाई, बार-बार चिल्लाई पर कोई सुने ही नहीं। परमात्मा के बंदे कोई मेरे पास आओ। देखो मैं तड़प रही हूँ।"⁵

वृद्ध एवं युवा पीढ़ियाँ मानो भिन्न ध्रुवों पर होती है, जिनमें विचार दृष्टि से बहुत कुछ अंतर होता है। इस दरार का चित्रण 'जख्म' कहानी में है। इसमें युवा पीढ़ी के सामने भविष्य के संदर्भ में एक प्रश्नचिन्ह लेखक ने छोड़ रखा है।

इस कहानी में लेखक के सामने बैठा बूढ़ा पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है। अपनी ढलती उम्र में भी वह आज समाज के लिए कुछ करता है। कुछ करना चाहता है। लेखक उस युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है जिसके सामने न कोई ठोस आदर्श है न ही वह किसी को आदर्श के रूप में स्वीकार करना चाहता है। युवक का बूढ़े को मारपीट करना युवा पीढ़ी की विद्रोह वृत्ति का प्रतीक है।

युवक बूढ़े के कागजातों का बक्सा चलती गाड़ी से फेंक देता है, परंतु बाद में उसे थोड़ा सा पश्चाताप सा होता है, क्योंकि अभी तक युवा पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से पूर्णतया कट नहीं गयी है। उसमें कुछ पुराने संस्कार बाकी हैं। इस कहानी का अंतिम हिस्सा बड़ा मार्मिक है। बूढ़ा अपने हाथ का कागज खिड़की से बाहर फेंककर कहता है-"यही ठीक है ना, तुम चाहते हो ये बूढ़े अंधकार में डूब मरें। मैं तो दो-तीन बरस में मर जाउँगा पर तुम ! तुम्हारा क्या होगा?"⁶ युवा पीढ़ी को अपने भविष्य के प्रति सतर्क करनेवाला यह संकेत बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हम निष्कर्ष रूप से कह सकते हैं कि वर्तमान हिन्दी कहानीकारों में भीष्म साहनी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आस्था की दृष्टि से भीष्म साहनी साम्यवादी विचारधारा के निकट है, लेकिन उनकी कहानियों में साम्यवाद को वैचारिकता के स्तर पर न लेकर संवेदना के स्तर पर उभारा गया है। दलित शोषित वर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति के लिए उनकी कहानियों में वर्तमान जीवन की विसंगति पर तीखा व्यंग्य मिलता है तो कहीं कहीं पारिवारिक संदर्भों में व्यक्ति की अनुभूतियों का मार्मिक चित्रण।

भीष्म साहनी ने अपनी अधिकांश कहानियों में पारिवारिक पक्ष को अधिक उजागर किया है। विवाह के बंधन से लेकर पति-पत्नी प्रेम, वात्सल्य प्रेम, संतानहीनता, मातृत्व, पति-पत्नी के बीच तीसरे आदमी का महत्त्व, पति की कामवासनाएँ, नारी की महत्त्वाकांक्षाएँ, वृद्धों की समस्या तथा दो पीढ़ियों के बीच होनेवाले संघर्ष आदि को भीष्म साहनी ने अपनी कहानियों का विषयवस्तु बनाया और समाज में होनेवाली विसंगतियों का पर्दाफाश तथा उजागर करने का प्रयास किया। कहीं मध्यवर्ग के दिखावे, आरामपरस्ती और दोहरेपन को अभिव्यक्त किया है तो कहीं सामाजिक परिवर्तन के अभाव में होनेवाली कसमसाहट और कुंठा को मुखरित किया है। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि आपकी कहानियों की विषयवस्तु है-मध्यवर्गीय जीवन के विविध पहलू, जिन्हें बड़ी संवेदना और गहराई के साथ लेखक ने उभारा है।

'ढोलक' कहानी के नायक रामदेव की शादी होने जा रही थी। वह पढ़ा-लिखा होने के कारण उन पुरानी रीतियों को नहीं मानता। जब उसकी चाची और अन्य औरतें गाना गाती हैं तो वह उन पर गुस्सा होता है। “जब से ब्याह का पछड़ा हुआ था, उसकी जान साँसत में आ गयी थीं। जाहिलों के बीच पड़ गया था। न पढ़ने को वक्त मिलता था, न कुछ सोचने को और तरह तरह की अटपटी रस्में, कभी कलाई पर मूली का धागा बाँधा जा रहा है तो कभी हाथों में मेहंदी लगायी जा रही है और कभी खी-खी करती लड़कियाँ कमरे में घुस रही है।"⁷ इस प्रकार आधुनिक काल में पढ़े- लिखे युवक-युवतियों को पुराने रीति-रिवाज एक बाह्याडंबर लगते हैं। वे उनका विरोध करते हैं तब संघर्ष छिड़ जाता है। आधुनिक पीढ़ी पाश्चात्य विचारों को अपनाना चाहती है। जबकि पुरानी पीढ़ी की मानसिकता अलग होती है।

'खून का रिश्ता' कहानी में चाचा मंगलसेन परिवार के एक बुजुर्ग सदस्य होते हुए भी उनकी हमेशा उपेक्षा होती है, क्योंकि वे कोई काम ठीक से नहीं करते। पहले उन्हें अपने भतीजे की सगाई में ही न ले जाने की बात चल रही थी, लेकिन बाद में भतीजे की जिद के कारण उन्हें ले जाते हैं। समधी एक चाँदी का चम्मच देना भूल जाते हैं। दो ही चम्मच घर में आते हैं तो घर में कोहराम मच जाता है। सबसे पहले तो चाचा मंगलसेन पर ही आरोप लगाया जाता है।

'अनूठे साक्षात' कहानी में भेंट शीर्षक के अंतर्गत भी इसी समस्या को प्रस्तुत किया गया है। समीर की माँ उसकी बहू से इतनी तंग आती है कि वह कहानी के नायक 'मैं' से आकर कहती है-"मैं उनकी आँखों से दूर हो जाऊँगी तो मेरे साथ ऐसा बुरा सुलूक नहीं करेंगे। मैं समीर से कह दूँगी, तेरे लिए तेरी माँ मर गयी है।"⁸

'जख्म' कहानी में भी इसी समस्या को दिखाया गया है। रेल में सफर करनेवाले एक बुजुर्ग से वह युवक इतना तंग आता है कि वह अंत में उसे एक थप्पड़ मारकर चुप करा देता है।

अतः आधुनिक काल में युवा वर्ग में नैतिकता का पतन हुआ दिखाई देता है। प्राचीनकाल से हम जो रिश्तों में अपनत्व मानते आये हैं, वह अपनत्व ही आज नष्ट हुआ है। वह रिश्ते खून से बनते हैं, परंतु आज खून की जगह स्वार्थ ने ले ली है। इन सभी बातों को भी भीष्म जी ने यथार्थ रूप में चित्रित किया है।

संदर्भ सूची :

1. भीष्म सहानी, पहला पाठ, पृ. 136

2. डॉ. सुरेश घाँगड़ा, हिंदी कहानी : समकालीन परिदृष्य, पृ. 30

3. कुमुद शर्मा, हिंदी के निर्माता, पृ. 362

4. भीष्म साहनी, भाग्यरेखा, पृ. 64

5. वही, पृ. 70

6. भीष्म साहनी, पटरियाँ, पृ. 84

7. डॉ. भारत कुचेकर, भीष्म साहनी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ. 184

8. वही, पृ. 185

- डॉ. इंद्रदेव आर. सिंह

ये भी पढ़ें; आधुनिक हिंदी के रचनाकार : भीष्म साहनी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top