राजा कहलाने के संवाद पर अनूठी बाल कहानी : वनराज और गजराज

Dr. Mulla Adam Ali
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Van Raj aur Gajraj Bal Kahani in Hindi : A unique children's story on the dialogue of being called a king: Vanraj and Gajraj

Van Raj Aur Gaj Raj bal kahani

हिन्दी में रोचक बाल कहानी वनराज और गजराज : बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा का बाल कथा संग्रह हवा का इंतजाम में दूसरी बाल कहानी वनराज और गजराज है, बच्चों के लिए इसलिए रोचक कही जा सकती है कि वनराज और गजराज के मध्य राजा कहलाने की बात बड़े अनूठे ढंग से प्रस्तुत की गई है। वनराज और गजराज के बीच के राजा बनने का संवाद बच्चों को जरूर पसंद आएगा, बच्चों के लिए रोचकता से भरी ये बाल कहानी पढ़े और साझा करें।

Kids Stories in Hindi Vanraj aur Gajraj

वनराज और गजराज

उस जंगल में कई प्रकार के जानवर थे। शेर भी था। सब उसे अपने जंगल का राजा मानते थे। इसलिये सब उसे वनराज कहते थे। जंगल में हाथी भी थे। उनमें एक बड़े हाथी को सारे जंगलवासी गजराज कहते थे। मनराज शेर ताकत में सबसे बली था तो गजराज भारी भरकम और निहायत ही शरीफ था। सारे जंगली उसका सम्मान करते थे। वैसे तो वनराज और गजराज में अच्छी दोस्ती थी। पर मेर कुछ अन्य जानवरों के बहकावे में आ गया और एक दिन गजराज को अपने पास बुलाया।

'यह बताओ, किसी जंगल में कितने राजा होते हैं?"

'जंगल का राजा तो एक ही होता है, जैसे आप हैं। सब आपको इसीलिये बनराज कहते हैं।'

'ठीक। जंगल में एक ही राजा होता है तो उसे ही राजा कहलाने का अधिकार होता है। जैसे मैं वनराज। फिर तुम्हें गजराज क्यों कहा जाता है?'

मैं खुद तो अपने को गजराज नहीं कहता। दूसरे साथी मुझे सम्मान देने के लिये ऐसा कह देते हैं।'

'लेकिन अब इस जंगल में सिर्फ मेरा ही राज रहेगा। मैं ही वनराज कहलाऊँगा। तुम्हें कोई गजराज नहीं कहेगा।'

'न कहे मुझे गजराज। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मैं सबको कह भी दूँगा कि कोई मुझे गजराज न कहें।'

'नहीं, तुम्हारे कहने से कोई नहीं मानेगा। फिर तुम सबसे यह बात कैसे कहोगे। कभी तुम्हें यह मिलता है, कभी वह। इसका एक ही उपाय है। हम दोनों में मुकाबला होना चाहिए। मैं शक्तिशाली हूँ, तुम्हें हरा ही दूँगा। तब सब के सामने यह घोषणा की जायेगी कि अब कोई हाथी को गजराज नहीं कहेगा।

'मैं तैयार हूँ। कहिए, क्या मुकाबला होगा?'

'यह भी मैं तुम पर छोड़ता हूँ। अगले रविवार को हरे मैदान में सब जानवरों के सामने मुकाबला होगा। मुकाबला क्या होगा, कैसे होगा, यह सोच कर आना।

इस मुकाबले का खूब प्रचार हुआ। हाथी के साथी भी उसके पास सलाह देने के लिये आने लगे। कइयों ने एक ही सलाह दी कि गजराज उस दिन हरे मैदान के पास वाले किसी बड़े पेड़ को जड़ से उखाड़ कर फेंक दें। वनराज से कहा जाए कि वह भी ऐसा करके दिखाए। शेर में कितनी ही ताकत हो, वह बड़ा तो क्या छोटा पेड़ भी नहीं उखाड़ सकेगा। जीत गजराज की ही होगी।

गजराज ने सबकी राय सुनी। फिर बोला- 'दोस्तों, मैं आपकी सलाह मानने के लिये तैयार नहीं हूँ। मैं जानता हूँ कि मैं किसी भी पेड़ को उखाड़ दूँगा, गिरा दूँगा। पर इससे बहुत नुकसान होगा। उस पेड़ वर रहने वाले सैंकड़ों पक्षियों के घर उजड़ जायेंगे। उस पेड़ के नीचे छाया लेने वाले पशु बेघर, बेछाया हो जायेंगे। उस पेड़ पर रहने वाले पक्षी बेघर हो जायेंगे। पेड़ नहीं रहा तो हरियाली नहीं रहेगी। मुकाबले की घुन सवार हो गई तो बिना जरूरत पेड़ उखाड़ने लगेंगे। जंगल ही नहीं बचेगा तो हम, तुम कहाँ रहेंगे?'

जानवरों के पास इस बात का जवाब नहीं था। सभी ने सिर झुका कर गजराज को सहमति दी।

रविवार आ गया। मुकाबले के लिये वनराज अपने छोटे बच्चे के साथ पहुँच गया। गजराज भी अपने छोटे बच्चे के साथ वहाँ आया।

वनराज ने कहा-'कहो, मुकाबले के लिये तैयार हो ? क्या सोचा है तुमने इस बारे में?'

'वही बता रहा हूँ। हम इस पीपल के पेड़ के पास से दौड़ लगाएँगे। उस बरगद तक जायेंगे। जो पहले पहुँचेगा, वही विजयी माना जायेगा।'

शेर को जोरों से हँसी आ गई। 'बस, इतना सा मुकाबला। उस बरगद तक तो मैं एक या दो छलांग में पहुँच जाऊँगा।'

'आप मेरी पूरी बात तो सुनिये । हम अकेले दौड़ नहीं लगाएँगे। हमारे बच्चे भी हमारे साथ होंगे।'

'नहीं, नहीं, रास्ते में कंकर-पत्थर, काँटे बहुत हैं। मैं नहीं चाहता कि ये बच्चों के पैरों में चुनें।'

'वनराज जी, आप मेरी पूरी बात नहीं सुन रहे हैं। ये दोनों बच्चे पैदल नहीं होंगे, बल्कि पीठ पर होंगे। आपका शेरू मेरी पीठ पर होगा। मैं इसे गिरने नहीं दूँगा। मेरा गज्जू आपकी पीठ पर होगा। ऐसा करके हम दौड़ लगाएँगे।'

गजराज की बात समझते ही वनराज चौंक गया। हाथी का बच्चा पीठ पर? ना बाबा ना। यदि वह मेरे ऊपर चढ़ गया तो मैं एक कदम भी नहीं चल सकूँगा। शेर को समझते देर नहीं लगी कि 'मुकाबला कैसे हो' इसका अधिकार हाथी को देकर उसने गलती की।

वनराज को अक्ल भी आ गई। वह जानवरों से बोला- 'ऐसी कोई दौड़ नहीं होगी। हमारे में कोई मुकाबला भी नहीं होगा। यह नाटक मैंने इसलिये किया था कि आप सब एक दिन यहाँ जमा हो जाएँ और मैं अपने मन की बात कह सकूँ। मैं यह कहना चाहता हूँ कि जंगल के जानवर बहुत समय से हम दोनों को वनराज और गजराज कहते रहे हैं, जो नहीं कहते हैं, वे भी आज से कहना शुरू कर दें।'

यह सुनकर कुछ जानवर मुस्कराए, कुछ हँसे, पर खुशी सबने प्रकट की। वनराज और गजराज, उनके बच्चे सब पास-पास खड़े थे, खुश-खुश थे।

- गोविंद शर्मा

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