Methods of study and research on Dinkar
हिन्दी के सुविख्यात और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर पर विशेष आलेख "दिनकर विषयक अध्ययन और अनुसंधान की दिशाएँ।" उर्वशी कृति के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के कवि दिनकर आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि थे। उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हुंकार, संस्कृति के चार अध्याय, रेणुका, रश्मिरथी, उर्वशी, नीम के पत्ते, सामधेनी आदि है। आज इस आर्टिकल में दिनकर विषयक अनुसंधान और अध्ययन की क्या दिशाएं है विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे।
Table of Contents;
• Ramdhari Singh Dinkar Biography
• Ramdhari Singh Dinkar Books and Literary Works
• Ramdhari Singh Dinkar : Methods of Study
• Ramdhari Singh Dinkar : Research Topics in Hindi
• Conclusion
• FAQ (frequently asked questions)
इस आलेख में 30 से अधिक शोध शीर्षक दिए गए हैं रामधारी सिंह दिनकर पर भविष्य के शोध के लिए उपयोगी होंगे। आप दिनकर पर भविष्य में शोध करना चाहते हैं तो ये research topics on Dinkar आपको जरूर काम आयेंगे। दिनकर वैविध्यपूर्ण और विलक्षण रचनाकार है, ऐसे महान कवि पर अध्ययन और अनुसंधान की संभावनाएं कभी समाप्त नहीं हो सकती।
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दिनकर विषयक अध्ययन और अनुसंधान की दिशाएँ
अपने मय के काव्यसूर्य रामधारी सिंह 'दिनकर' ने राष्ट्रीय जागरण और नवचेतना का जो प्रकाश उत्तर-छायावादी दौर में फैलाया, उसे भारतेंदु और निराला की अगली कड़ी के रूप में स्वीकारना होगा। राष्ट्रीय संकट, आकांक्षा और प्रत्याशा को ओजस्वी बानी में व्यक्त करने वाले दिनकर की काव्य पंक्तियाँ न जाने कितने लोगों के भीतर देशप्रेम के उत्साह का संचार करती रही हैं। आजादी के पहले और स्वाधीनता के बाद दिनकर की कविताएँ अतीत की गौरवपूर्ण स्मृति, वर्तमान के आहत अभिमान और भविष्य की विजय कामता का ओदात्य मुखरित करती रही। उन्होंने जो कुछ भी लिखा आवेगमय, जो कुछ भी रचा ओवात्य और लालित्य का समन्वय । 23 सितंबर 1908 को जन्मे दिनकर की पहली कविता 1925 में जबलपुर की पत्रिका 'छात्रसहोदर' में छपी थी और तब से पुण्यतिथि 24 अप्रैल 1974 तक दिनकर पौरुष और परिवर्तन के रचना संसार की सृष्टि लगातार करते रहे। उनकी कुलमकारी बहुआयामी है। प्रबंधकाव्य, ओजस्वी गीत. श्रृंगारी छंद, पद्यनाटक, अनुवाद, समीक्षा, संस्मरण, निबंध, यात्रा लेखन, लघुकथा, इतिहास जैसे कई प्रक्षेत्रों में पूरी क्षमता के साथ उपस्थित दिनकर ने अपने पाठकों/प्रशंसकों को कहीं निराश नहीं किया। जिस उम्मीद के साथ लोग दिनकर की किताबें पलटते हैं, वह उम्मीद पूरी हो इसका बेहद एहसास दिनकर को था। यही कारण है कि कविता के वैविध्यपूर्ण परिसर से लेकर गद्य विधाओं के विस्तार तक दिनकर का सृजन विश्वसनीयता और लोकप्रियता के तटबंधों का स्पर्श करता है। स्वातंत्र्योत्तर भारत के किसी दूसरे हिंदी कवि की इतनी अधिक पंक्तियाँ सूक्तियों की शक्ल में जनता का कंठहार नहीं बनी हैं। स्मरणीयता और औदात्य का अद्भुत समन्वय दिनकर की काव्यधारा में है। तभी दिनकर की कविता को असीम लोकप्रियता मिली। इसी जनप्रियता ने अनेकानेक अनुसंधाताओं और समीक्षकों को दिनकर साहित्य के विभिन्न आयामों से मूल्यांकन और विश्लेषण के लिए बाध्य किया है।
कविता का बहुकोणीय अनुशीलन करने में अभ्यस्त आलोचकों ने दिनकर की काव्योपलब्धियों के अनुशीलन के लिए नए-पुराने औजारों का उपयोग किया है। दिनकर को राष्ट्रकवि, युगकवि, जनकवि सिद्ध करने में संलग्न ऐसी समीक्षा पुस्तकों की संख्या सो के आसपास है। इनमें अधिकांश का रिश्ता 'उर्वशी' या 'कुरुक्षेत्र' या 'रश्मिरची' के साथ है। इनमें से अधिकांश 'एक अध्ययन' या छात्रोपयोगी टीकानुमा पुस्तकें हैं, क्योंकि 'उर्वशी', 'कुरुक्षेत्र' और 'रश्मिरथी' का अध्यापन कई विश्वविद्यालयों में पाठ्यपुस्तक के रूप में होता है। वास्तव में अभी भी दिनकर का साहित्य हिंदी समीक्षकों के लिए एक चुनौती है, क्योंकि संपूर्णता में दिनकर को परखने का प्रयत्न अब तक नहीं हुआ है। दिनकर पर आज भी ऐसी समय समीक्षाकृति का इंतजार है, जिसमें दिनकर के संपूर्ण सृजन की विवेचना नवीनतम समीक्षा मूल्यों के आलोक में हो। विश्वविद्यालयी समीक्षा की संकीर्णता से निकल कर हिंदी समीक्षा के निजी प्रतिमानों से लैस आलोचक जब दिनकर की पारदर्शी चर्चा करेंगे, तभी यह अपेक्षा पूरी होगी।
आश्चर्य, किंतु सत्य तो यह है कि समीक्षा की अपेक्षा हिंदी शोध का रिश्ता दिनकर- साहित्य के साथ अधिक प्रगाढ़ कर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पीएच.डी. उपाधि के लिए दिनकर के रचना संसार पर केंद्रित दो सौ से अधिक शोध प्रबंध स्वीकृत हो चुके हैं। कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों में भी दिनकर पर शोध हुए हैं। औपचारिक शोध का यह सिलसिला 1965 में गुजरात विश्वविद्यालय की पीएच.डी. उपाधि के लिए डॉ. शेखर चंद्र जैन द्वारा प्रस्तुत शांध प्रबंध 'राष्ट्रकवि दिनकर और उनकी काव्यकला' से प्रारंभ हुआ था। यह शोध प्रबंध कालांतर में जयपुर पुस्तक सदन, जयपुर से 1973 में प्रकाशित हुआ। इस शोध प्रबंध से प्रारंभ हुए अनुसंधानक्रम में दिनकर के सारे सर्जनालोक की अनेककोणीय परिक्रमा की गई है। अनुसघाताओं ने काव्यशास्त्र, भाषाविज्ञान, शैलीविज्ञान, सौंदर्यशास्त्र, धर्मशास्त्र, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र आदि की कसौटियों पर दिनकर की कविता का मूल्यांकन किया है। दिनकर के काव्य विकास और काव्यदृष्टि से लेकर शिल्प, काव्यभाषा, पात्र योजना, अभिव्यक्ति कौशल, बिंब, अलंकार, प्रबंधात्मकता, वक्रोक्ति, रचना प्रक्रिया, शब्दावली जैसे कई काव्यशास्त्रीय पक्षों का उद्घाटन करने के साथ अनुसंघाताओं ने दिनकर की काव्यवस्तु का विशद अनुशीलन भी किया है। इस दृष्टि से युगबोध, जीवनदर्शन, जलवाद, इतिहास, समाज, संस्कृति, राष्ट्रीयता, प्रगतिशीलता, नारी भावना, शिक्षा, प्रेमदर्शन, मानववाद, राजनीति, मनोविज्ञान, आधुनिकता, गाँधीवाद, सौंदर्य, रोमांटिक भावना, उत्तर छायावादी प्रवृत्तियों आदि का सर्वेक्षण अनुसंघाताओं ने किया है। शोधप्रबंधों में दिनकर की कविता में उनके व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति का विश्लेषण है और प्रेरक-प्रभाव तत्वों की खोज भी की गई है। कई शोध प्रबंध तो सिर्फ 'उर्वशी', पर केंद्रित हैं। 'उर्वशी' के स्रोत, परंपरा और मौलिकता का अध्ययन करने के समानांतर शोधकर्ताओं ने 'उर्वशी' में काव्यरूप, महाकाव्यत्व, प्रेम, अध्यात्म, सामाजिकता, दर्शन, शिल्प, सौंदर्य, लोकतत्व, प्रतीक शब्दशक्ति, गीतिनाट्यत्व, अनासक्तियोग, चिंतन और चरित्रांकन की तलाश भी की है। कुछ शोध प्रबंध 'कुरुक्षेत्र' के चिंतन और काव्यत्व पर भी लिखे गए हैं। दिनकर के गद्यलेखन की विविधता और गद्य-शैली पर भी शोधकार्य हुए हैं। तुलनात्मक अनुसंधान की दृष्टि से दिनकर के साथ मैथिलीशरण गुप्त. माखनलाल चतुर्वेदी, हरिवंशराय बच्चन, जयशंकर प्रसाद जी की तुलना होती रही है। 'कामायनी' और 'लोकायतन' के साथ 'उर्वशी' की तुलना पर आधृत शोध भी संपन्न हुए हैं। कश्मीरी के आजाद, गुजराती के उमाशंकर जोशी, उर्दू के इकबाल, तेलुगु के दाशरथी के साथ दिनकर की काव्यसर्जना की सम्यक् तुलना कई शोधकर्ताओं ने की है। शोध की इन सारी दिशाओं से राष्ट्रकवि दिनकर पर केंद्रित अद्यतन अनुसंधान के संकेत मिलते हैं। इन दो सौ से अधिक शोधप्रबंधों में विषयों की आवृत्ति बार-बार हुई है। जैसे, 'दिनकर की बिंब योजना' पर एक दर्जन शोध प्रबंध लिखे गए हैं और 'दिनकर का गद्य साहित्य' पर भी दस से अधिक शोधकर्ताओं ने काम किया है। इसका मतलब यह नहीं कि इस क्षेत्र में अनुसंधान की संभावनाएँ समाप्त हो गई हैं और अब दिनकर-साहित्य का कोई पक्ष अनुसंधाताओं से अछूता नहीं रह गया है। वास्तविकता तो यह है कि दिनकर की सर्जना में अभी भी ऐसे कई पक्ष हैं. जिन पर अनुसंधाताओं की दृष्टि नहीं गई है। ऐसे कुछ शोध शीर्षक प्रस्तावित हैं जिन पर भविष्य के शोधप्रज्ञ अपनी अनुसंधान क्षमता का उपयोग कर सकेंगे।
रामधारी सिंह 'दिनकर' पर शोध-विषयों की तालिका :
1. दिनकर के काव्य में नवजागरण, 2. दिनकर की कविता में यथार्य और कल्पना कर समन्वय, 3. दिनकर की भक्त्त्यात्मक चेतना, 4. दिनकर के काव्य में काव्येतर ललित कलाएँ, 5. दिनकर का प्रकृति वर्णन, 6. दिनकर के काव्य में युद्ध और शाति, 7. दिनकर की कविता में कामाध्यात्म, 8. उर्वशी का नैतिक आदर्श, 9. दिनकर की उदात्त-चेतना, 10. कर्णकया परंपरा में 'रश्मिरथी', 11. दिनकर काव्य में मिथकों की प्रासंगिकता, 12. दिनकर की रस योजना, 13. दिनकर की पर्याययोजना, 14. दिनकर का विशेषण-विधान, 15. दिनकर की जप्रस्तुत योजना. 16. दिनकर का सादृश्य विधान, 17. दिनकर संबंधी अध्ययन और अनुसंधान का अध्ययन, 18. हिंदी यात्रा-साहित्य को दिनकर का अवदान, 19. हिंदी में डायरी लेखन और दिनकर का प्रदेय, 20. हिंदी पत्र साहित्य को दिनकर का योगदान, 21. दिनकर का समीक्षा कर्म, 22. इतिहासकार के रूप में दिनकर का मूल्यांकन, 23. राष्ट्रीय कवि के रूप में दिनकर और निराला का तुलनात्मक अनुशीलन, 24. विद्रोह के कवि के रूप में दिनकर और निराला की तुलना, 25. दिनकर और सुमित्रानंदन पंत की लालित्य चेतना का तुलनात्मक अध्ययन, 26. दिनकर और केदारनाथ मिश्र प्रभात की प्रबंधप्रतिभा का तुलनात्मक अध्ययन, 27. दिनकर और नागार्जुन की कविता का तुलनात्मक अनुशीलन, 28. दिनकर-साहित्य में मानवीय संवेदना, 29. दिनकर-साहित्य में मुहावरे और लोकाक्तियाँ, 30. दिनकर साहित्य में मूल्य-संक्रमण।
शोध-विषयों की इस तालिका से स्पष्ट है कि अभी भी डॉ. रामधारी सिंह दिनकर के रचनाकर्म में बहुत कुछ ऐसा है, जिस पर अनुसंघाताओं की निगाह नहीं गई है। यह तालिका अंतिम नहीं है। अनेक इतर शोध शीर्षक भी इस सूची में जोड़े जा सकते हैं। इसका कारण यही है कि दिनकर का सृजन बहुआयामी और कालजयी है। उसमें युग के साथ चलने और युग के बाद प्रासंगिक बने रहने की अपार क्षमता है। ऐसे वैविध्यपूर्ण और विलक्षण रचनाकार की सर्जना में अध्ययन और अनुसंधान की संभावनाएँ कभी समाप्त नहीं हो सकती।
निष्कर्ष; दिनकर पर शोध विषयों की इस तालिका से स्पष्ट है कि अभी भी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के रचनाकर्म में बहुत कुछ ऐसा है, जिस पर अनुसंधाताओं की निगाह नहीं गई है। यह तालिका अंतिम नहीं नहीं है, इसमें और भी अनेक शीर्षक जोड़े जा सकते हैं।
- डॉ. बालेंदु शेखर तिवारी
FAQ;
Q. रामधारी सिंह दिनकर की पहली रचना कौनसी थी?
Ans. 'विजय संकल्प' रामधारी सिंह दिनकर का 1928 में प्रथम प्रकाशित कविता संग्रह।
Q. रामधारी सिंह दिनकर को कौनसा पुरस्कार मिला?
Ans. दिनकर को उर्वशी कृति के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया और संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला है, भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण उपाधि से विभूषित है।
Q. दूसरा ज्ञानपीठ पुरस्कार हिन्दी में किसे दिया गया है?
Ans. 1972 में डॉ. रामधारी सिंह दिनकर को उर्वशी कृति के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला, हिन्दी में दूसरा ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करनेवाले कवि दिनकर है, हिन्दी में ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले पहले लेखक सुमित्रानंदन पंत है इनको साल 1968 में यह पुरस्कार मिला।
Q. कुरुक्षेत्र के लेखक कौन है?
Ans. कुरुक्षेत्र के लेखक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर है।
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