मेहरुन्निसा परवेज की कहानियों में दलित वर्ग की नारी जीवन

Dr. Mulla Adam Ali
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आधुनिक महिला साहित्यकार और कहानीकार मेहरुन्निसा परवेज की कहानियों में नारी जीवन और दलित वर्ग के बारे में आज इस आर्टिकल में चर्चा की गई है। मन की सशक्त अभिव्यक्ति मेहरुन्निसा परवेज के साहित्य में देखने को मिलता है, खाकर इनकी कहानियों में नारी के विविध रूप का वर्णन पाठकों को सोचने में मजबूर करता है, मुस्लिम मध्यवर्गीय चेतना की कथा लेखिका मेहरुन्निसा परवेज की कहानियों पर ये लेख पढ़े।

The life of Dalit women in Mehrunnisa Parvez's stories

The life of Dalit women in Mehrunnisa Parvez's stories

मेहरुन्निसा परवेज की कहानियों में दलित नारी का जीवन सुचारू रूप से गोचर होता है। दलित समाज में महिला जीवन की स्तिथि बहुत दयनीय होती है, पूरा लेख पढ़े।

मेहरुन्निसा परवेज की कहानियों में दलित वर्ग की नारी जीवन

Table of Contents;

• मेहरुन्निसा परवेज व्यक्तित्व एवं कृतित्व
• मेहरुन्निसा परवेज की कहानियां
• मेहरुन्निसा परवेज की कहानियों में दलित जीवन

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दलित समाज में औरतों को मर्द से तुच्छ समझे जाने की परम्परा सवर्णों की नकल के कारण दिखाई देती है। दलितों में पुनर्विवाह विधवा विवाह आदि प्रचलन में है, वहाँ वह औरत के विवेक पर छोड़ दिया जाता है कि वह वैधव्य का जीवन पसंद करती है या पुनर्विवाह करना चाहती है। दलितों में आज भी बेटियों को जलील नहीं किया जाता। उनमें दजेह हत्याएँ कम हैं तथा तलाक तक बात मुश्किल से पहुँचती है। गरीब होने के बावजूद मध्यवर्ग जैसी क्षुद्रता नहीं है। उनमें औरत और मर्द आज भी चारपाई पर बैठकर बीड़ी का सुट्टा पी लेते हैं औरत के लिए 'निषेध' वहाँ पर कोई नहीं?

इस वर्ग की स्त्रियों की हालत बड़ी ही दयनीय होती है। अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए उसे घर से बाहर जाकर काम करना पड़ता है। सारा दिन काम करने पर वह अपने परिवार को भरपेट खाना खिलाने में असमर्थ होती है। इस वर्ग की स्त्रियाँ बड़े ठेकेदारों के पास, कारखानों में या फिर किसी और की खेतों में काम करने जाती है। यह बड़े ठेकेदार उनका शारीरिक और आर्थिक शोषण भी करते हैं। यही नहीं उन्हें गाली गलोच भी सुनना पड़ता है। इस वर्ग की स्त्रियाँ अपनी आर्थिक परिस्थिति ठीक न होने के कारण अपने परिवार को भरपेट भोजन देने के कारण वह कोई भी कार्य करने को तैयार रहती है। वह अपने ऊपर हो रहे शारीरिक शोषण को भी मज़बूरी से झेलती है।

दलित नारी की हालत बहुत दयनीय है। उसे हमेशा उपेक्षित जीवन जीना पड़ता है। वह दलित बस्ती में रहती है बिना शिक्षा मान-प्रतिष्ठा और बिना इज्जत के। दलित पुरुष हमेशा उस पर अत्याचार करते हैं। उसे अपनी निजी संपत्ति मानकर अपने पैरों तले कुचलते रहते हैं। लेकिन आजकल उनकी स्थिति में बदलाव आ गया है। आज नारी को पुरुष से कम नहीं समझा जा रहा है। दलित नारी को स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का फैसला करने का पूरा हक दिया जा रहा है। दलित जाति में दहेज के लिए ज्यादा दबाव नहीं दिया जाता। नारी अगर विधवा हो जाती है तो उसे यह हक दिया जाता है कि वह या तो वैधव्य जीवन यापन कर सकती है या तो वह पुनर्विवाह कर सकती है। आज दलित नारी शिक्षित होकर एक कामकाजी नारी भी बन गई है। वह हर क्षेत्र में अपनी सत्ता दिखा रही है और दूसरी नारियों का हौंसला भी बढ़ा रही है।

श्रीमती मेहरुन्निसा परवेज जी की कहानी संग्रह 'समर' की कहानियों में परवेज जी ने दलित एवं निम्न वर्ग की नारियों के जीवन को दर्शाया है। वे स्वयं आदिवासी बस्तर जिले में रह कर आदिवासी नारियों को कई तरह से सहायता देकर उन्हें जागृत किया है। दलित वर्ग की नारी के जीवन को परवेज जी ने 'समर' की कहानियों में दर्शाया है।

'समर' कहानी संग्रह की दूसरी कहानी 'जगार' में परवेज जी ने दलित नारी की जीवन कैसी होती है उसे क्या और कैसे सब कुछ सहना पड़ता है सुचारू रूप से बताया है।

इस कहानी से हमें यह पता चलता है कि दलित नारी कैसे अत्याचार सहती हुई जीवन यापन करती है। इस कहानी में गोमती उसकी सास और रयती का शारीरिक शोषण उनके गाँव के चौधरी करते हैं। "जगार" कहानी में गोमती अशिक्षित नारी है जब वह ननकू से ब्याह कर पहली बार उसके गाँव आती है तब चौधरी किसी काम से ननकू को गाँव से शहर भेज देता है। उसे उस रात सुमित्रा अपने साथ कोठी पर ले जाती है। उसे खाना खिलाकर सुला देती है। रात को जब वह हड़बड़ाकर उठती है तो अपने सामने चौधरी को देखती है। वह बहुत रोई और गिड़गिड़ाई लेकिन चौधरी ने उसकी एक नहीं सुनी। उसने गोमति को अपने हवस का शिकार बना लिया यह सिलसिला पूरे आठ दिन चला। पूरे आठ दिन बाद ननकू शहर से लौटा था। वह स्तब्ध, पत्थर सी बन गई थी। ननकू को देखकर वह समझ गई की वह एक नौकर की पत्नी है। इसके अलावा उसकी अपनी कोई औकात नहीं है। अपने ऊपर हुए इस अत्याचार को सहन नहीं कर पा रही थी। उसे अपने आप से नफरत होने लगी और वह सोचने लगी-कोठी से जब लौटी थी तब मन में विचार उपजा था कि किसी कुएँ-बावड़ी में जाकर कूद जाए। माँ की सीख, ननकू की लोक-लाज सब एक साथ उठे और उसकी पैरों में जैसे बेड़ियाँ पड़ गई। पति का क्या दोष, क्यों उसे सारी उम्र भुगतने के लिए सजा दे? मन के भीतर की भट्ठी में दहकती आग को उसने खींचकर धीमा किया। विचारों की हंडियों में खदबदाती खट्टी कढ़ी पर ढक्कन धर दिया, ताकि भीतर की गंध बाहर न जाए।

औरत का मन तो गहरा ताल है। जाने उसके भीतर कितने कीट-पतंगे, मगरमच्छ, साँप बिच्छू, कंकड- पत्थर, कीचड़ और भी न जाने कितनों के डंक-विष को अपने भीतर छिपाए-दबाए रहती है, उजागर नहीं होने देती। अपना बाँध अपना किनारा नहीं तोड़ती, अपनी हदें नहीं छोड़ती, वैसी ही शांत बनी रहती है। नहीं तो बाढ़- प्रलय नहीं आ जाएगा। कोई ऊपर से देखे तो लगे, कितनी शांत, ठहरी हुई है। कोई तूफान नहीं। औरत जब अपने पेट के भीतर आदमी का पाप पाल लेती है तो क्या उसके गहरे भेद अपने भीतर नहीं छुपा सकती ? औरत क्या यों ही टूटती है, झुलसती है? औरत चुप सहती है। आकाश रोज अपना रौद्र रूप दिखाता है। वर्षा, बर्फ, ताप, पर धरती चुप रहती है।

इस तरह गोमती विष का घूंट पीकर सब कुछ भुलाकर जीवन यापन करती है।

इसी प्रकार गोमती की सास भी जब वह नई नवेली दुल्हन बनकर आई थी। वह भी इसी प्रकार के शारीरिक शोषण का शिकार हुई थी। गोमती की सास अनाज फटकने, चुनने-बीनने, पीसने के लिए कोठी पर जाया करती थी। रोज छंटा अनाज, बची रोटियाँ और सेर भर अनाज घर ले आती थी। एक दिन जब वह चकिया पर अनाज पीस रही थी। वह संसार को भूलकर अपनी ही धुन में अपने मायके को याद कर गीत गाते हुई अपने काम में लगी थी। वह यह भी भूल गई थी कि उसके सामने बड़े मालिक खड़े उसका गाना सुन रहे थे। बड़ी देर बाद उसे सुध लौटी तो अपने सामने बड़े मालिक को देख वह हैरान रह गई। उनके आँखों में अपने लिए प्रशंसा देख वह सकपका गई। तब बड़े मालिक ने उससे कहा था- "बुधिया, तू जितनी सुंदर है उतना ही मीठा तेरा सुर है। मेरी बाहर की कचहरी रोज साफ करा दिया करो, पाँच सेर अनाज अलग से मिलेगा।"

उस दिन से बुधिया बड़े मालिक की कचहरी साफ करने लगी। बड़े मालिक ने पोखी को पहरे पर बैठा दिया था। बड़े मालिक बुधिया से ढेर बातें करने लगे। उसके गाँव की, घर की, बिरादरी की, गहनों की फिर उसकी देह की। अब रोज बुधिया को बड़े मालिक की सेज सजाने जाना पडता था।

इस प्रकार गोमती की सास को भी यह सब सहना पड़ा था। इसके चलते बड़े मालिक ने उसके पति को भी मरवा दिया था। लेकिन उसे सब कुछ सहकर भी जीना पड़ रहा था क्योंकि उसके पास ननकू की जिम्मेदारी थी। ननकू उसकी गोद में था उसके लिए उसे जीना था।

इस प्रकार की त्रासदी सहकर भी दलित वर्ग की नारियों को मज़बूर होकर अपने परिवार के लिए जीना पड़ता है। ऐसी व्यथा इसी कहानी के रयती की है। वह लाखन की पत्नी है। लाखन का वैर चौधरी के साथ था लेकिन चौधरी ने अपनी दुश्मनी एक औरत का इस्तेमाल कर निकाली।

रयती गाँव की भोली भाली स्त्री थी। कुछ ही महीने हुए थे उसका गौना हुए। दिवाली नज़दीक आ रही थी और वह बहुत खुश थी। त्यौहार पर अपने लिए साड़ी-कंगन इत्यादि श्रृंगार का सामान खरीदना चाहती थी, और वह बुधवार के हाट में सब समान खरीदकर वापस गाँव लौट रही थी कि रास्ते में उसे चौधरी के गुण्डों ने अगवा कर उसके साथ बलात्कार कर उसे गला घोंट कर मार डाला। उनका वैर तो लाखन के साथ था लेकिन रयती को बलि चड़नी पड़ी। लाखन को इसकी कीमत इसलिए चुकानी पड़ी थी क्योंकि-लाखन अपने पुरखों की जमीन छोड़ना नहीं चाहता था। बचपन से वह इन खेतों में खेला कूदा था। माँ काम करती और लाखन को खेतों की मेंड पर सुला देती थी। लाखन किलकारी मारता लेटा रहता था। दादा, बाप, माँ के पसीने की गंध खेती की माटी से आती थी। यही तकरार लाखन के जान की जोखिम बन गई थी।

जब तब चौधरी के आदमी आते, उसकी दुकान लूट लेते। भट्ठी में पानी डाल देते, रास्ता रोकते थे। लाखन बरसों से सब चुप सह रहा था। लाखन का ब्याह हुआ, गौना कराए साल भर हो गया। लाखन ने सोचा नहीं था कि चौधरी अपना वैर औरत से निकालेगा।

रयती को पकड़कर गुंडे खेत में ले गए बलात्कार किया और गला दबाकर मार दिया फिर उसी की धोती से बाँधकर नाले के किनारे जामुन के पेड़ से लटका दिया। इस प्रकार रयती एक भोली-भाली नारी लाखन के जिद के कारण, उसे अपने प्राण त्यागने पड़े। उसे तो यह भी नहीं पता की वह क्यों मर रही है। एक दलित नारी को गुण्डों के अत्याचार को सहना पड़ा और अपने प्राण खोना पड़ा।

निष्कर्ष; परवेज जी की कहानियों में दलित नारी का जीवन सुचारू रूप से गोचर होता है। उनकी स्थिति कितनी दयनीय होती है। उन्हें कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। कैसे परिवार का पालन करने के लिए, घर चलाने के लिए उन्हें हर तरह के काम करने पड़ते हैं। दलित नारी मजबूर नारी होने के कारण उसे बाहर जाकर काम करना पड़ता है। कुछ लोग उनका शारीरिक शोषण भी करते हैं। लेकिन परिवार की भलाई, बच्चों को भरपेट खाना खिलाने की खातिर वे नारियाँ सब कुछ सहती है। परवेज जी खुद उनके बीच रहकर उनके दुःख को जाना और समझा है। वे आदिवासी लोगों के बीच रहकर उनकी दिनचर्या वहाँ के नारी की स्थिति उनकी मजबूरियों का अध्ययन कर उनके लिए कई तरह के अच्छे कार्य भी किए हैं।

- डॉ. जी. रमेश बाबू

FAQ;

Q. भोगे हुए दिन कहानी के कहानीकार कौन है?

Ans. भोगे हुए दिन कहानी के कहानीकार मेहरुन्निसा परवेज है।

Q. आंखों की दहलीज उपन्यास के उपन्यासकार कौन है?

Ans. आंखों की दहलीज उपन्यास के उपन्यासकार मेहरुन्निसा परवेज है।

Q. अयोध्या से वापसी किसकी कहानी संग्रह है?

Ans. 'अयोध्या से वापसी' मेहरुन्निसा परवेज की कहानी संग्रह है। फाल्गुनी, अंतिम पढ़ाई, गलत पुरुष, टहनियों पर धूप, आदम और हव्वा, ढहता कुतुबमीनार, कानी बाट, कोई नहीं, एक और सैलाब, सोने का बेसर आदि इनकी अन्य कहानी संग्रह है।

Q. मेहरुन्निसा परवेज को कौनसा पुरस्कार मिला?

Ans. सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार, साहित्य भूषण सम्मान, महाराजा वीरसिंह जूदेव पुरस्कार से मेहरुन्निसा परवेज सम्मानित है।

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