आज के बच्चे : दिल को छू लेने वाली कविता

Dr. Mulla Adam Ali
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Motivational Kavita Aaj Ke Bachhe

poem on today's kids

Aaj Ke Bachhe : पढ़िए कविता कोश में बच्चों के विषय पर आधारित कविता आज के बच्चे (Today's Kids), आधुनिक युग के चलते, बढ़ते शहरीकरण और आधुनिकीकरण में तकनीकी का बढ़ता प्रभाव बच्चों पर गहरा असर होता है, आज बच्चे अपने बचपन को खो चुके है, बचपन से ही मोबाइल और कंप्यूटर पर व्यस्त रहते हैं, नशीले पदार्थों का सेवन करना, फास्ट फूड खाने में रुचि रखना, शारीरिक खेल कूद से दूर होते जाना और बड़ों के रोक टोक को न सहना आज के बच्चों में ये सब देखने को मिलते हैं, अगर अभिभावक या परिवार के सदस्य बच्चों पर ध्यान नहीं देते तो इसका बुरा परिणाम हमें और समाज को भुगतना पड़ेगा।

बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास कर शारीरिक संबंधित खेल कूद पर उनमें रुचि बढ़ना चाहिए, मोबाइल और कंप्यूटर जैसे आधुनिक उपकरणों से एक उम्र तक दूर रखना बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। बच्चों को परिवार के महत्व और बुजुर्गों के प्रति सम्मान देना, हमेशा सच बोलना आदि जैसे गुणों का विकास में घर के सदस्य ध्यान देना चाहिए। आज के बच्चे कविता में इसी विषय को बताया गया है किस तरह बच्चे पश्चिमी सभ्यता की ओर आकर्षित होते जा रहे हैं, दिन में देर से उठना, आधी रात तक जागना, खाना खाते समय भी मोबाइल का इस्तेमाल करना, बड़ों के प्रति अनादर, छोटे बातों पर रूठना और असफल होने पर निराशा होना, पढ़ाई में रुचि न दिखाना आदि सभी गुण आज के बच्चों (Today's Children's) में देखने को मिलते हैं।

बच्चे भगवान का स्वरूप है, बचपन कोरे कागज की समान होता है अगर बड़े लोग बच्चों को छोटी उम्र में अच्छे संस्कार नहीं देंगे तो बच्चे बड़े होकर बुरी संगति में अपना रास्ता भटक जाते हैं, इसलिए माता पिता, दादा दादी, चाचा चाची या कोई भी घर का सदस्य अपने बच्चों के परवरिश पर ध्यान देना जरूरी है, उनको अच्छे और बुरे में फर्क बचपन में ही समझाना चाहिए, वहीं बच्चे आगे चलकर अच्छे नागरिक बनेंगे और देश के विकास में अपना सहयोग देंगे।

Poem on Today Generations

आज के बच्चे (कविता)


हो गए बड़े अब, अवस्था से अधिक समझदार,

समझते हम बड़ों से ज्यादा, नए जमाने की रफ्तार,

बना सकते हम रास्ता, खुद जीवन-साथी चुनकर,

बर्दास्त नहीं हमें टोका-टोकी, परामर्श नहीं प्रियकर,

रोज सुबह देर तक सोना, हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार,

नहीं माता शांत रहना, करते अध्ययन बजती धुन पर,

इम्तहान बोझ बनकर आते, बिन मेहनत शिखर छूना चाहते,

करते पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण, जीवित पिता को 'डेड' कहते,

शुभ अवसर पर मित्रों को 'हाय' कहकर स्वागत करते,

खो जाते सपनों की तह में, बचपन गया बिखर,

लगती महत्त्वकांक्षाएँ रूचिकर, योग्यता-अर्जन से बेखबर,

डूब जाते अवसाद में, नशीले पदार्थ लेने को आतुर,

किन्तु वे नहीं जानते-

असफलता सफलता की सीढ़ी, बजता टूटा सितार,

संघर्ष से पलायन होता, सघन महा अंधकार,

बीता समय, खोया अवसर नहीं आता बार-बार

लगाना होगा प्रथम प्रयास में बेड़ा पार।


- डॉ. नरेश कुमार

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