गधे की ज़िद और चोरी का अंजाम – बच्चों के लिए मज़ेदार नैतिक पद्यकथा

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Padhya Katha Kissa Suno by Dr. Surendra Vikram, Hindi verse story, Hindi Children's Poem, Kids Poetry in Hindi.

Kissa Suno: Verse Story

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यह हास्य और शिक्षाप्रद हिंदी पद्यकथा गधे, गीदड़, सियार और भेड़िए की अनोखी तिकड़ी की शरारतों और परिणामों को दिलचस्प अंदाज़ में प्रस्तुत करती है। चोरी, ज़िद और शोरगुल के नतीजों पर आधारित यह कविता बच्चों को मनोरंजन के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण जीवन पाठ भी सिखाती है। गधे की ज़िद और खेत में पकड़े जाने की कहानी पढ़ें और बच्चों को नैतिक शिक्षा दें – किस्सा सुनो, ताली बजाओ!

हास्य और शिक्षाप्रद हिंदी पद्यकथा

किस्सा सुनो बजाओ ताली


गधा, सियार, भेड़िया, गीदड़ 

बात सभी की अजब, निराली। 

शौक सभी का अपना-अपना 

किस्सा सुनो, बजाओ ताली। 


गधा काम करता धोबी का 

गीदड़ दिन भर घूमा करता। 

मूर्ख भेड़िया पड़ा माँद में 

सारा दिन खर्राटे भरता। 


रोज रात को दस बजते ही 

हुआँ- हुआँ आती आवाज। 

गधा, भेड़िया, गीदड़ तीनों 

समझ चुके थे इसका राज।


दूर-दूर फैली हरियाली 

खेतों में खूब खीरा ककड़ी। 

उसके पहले खुली जगह में 

बन जाती तीनों की तिकड़ी।


गधा तोड़ता बाड़ खेत की 

आसानी से सब घुस जाते। 

मिलकर खाते खीरा-ककड़ी

हँस-हँस आपस में बतियाते।


पता नहीं क्या हुआ,गधे को 

शुरू कर दिया राग मिलाना।

बोला- 'तुम सब सुनो साथियों

कितना सुंदर मेरा गाना।


 तभी भेड़िया हँसकर बोला-

क्यों करते इतना हंगामा?

चोरी से खाने आए हो 

बंद करो यह अपना ड्रामा।


भला इसी में सबका होगा 

हम चुपचाप ककड़ियाँ खाएँ।

भर जाएगा पेट सभी का 

अपने-अपने घर को जाएँ।


गधा अड़ा था अपनी ज़िद पर 

ज़ोर-ज़ोर से लगा रेंकने।

'मैं संगीत शास्त्र का ज्ञाता' 

ऊँची- ऊँची लगा फेंकने।


गीदड़ चला गया था पहले 

ठीक बाद में गया सियार। 

खड़ा भेड़िया लगा सोचने 

यह खाने वाला है मार ।


तभी नींद से जागा मालिक 

और जग गए कई किसान।

टार्च जलाकर खेत में देखा

वहाँ पड़े थे क‌ई निशान।


गुस्से में आए किसान सब

जोर-जोर से मारा डंडा।

गधा उलटकर गिरा वहीं पर 

उसका जोश हो गया ठंडा।


एक मोटी जंजीर मँगाकर 

तब मालिक ने उसको जकड़ा।

चारों ओर खड़े थे दर्शक 

सबने मिलकर गधे को पकड़ा।


किसी तरह जंजीर तुड़ाकर 

भागा गधा गाँव की ओर।

मन ही मन में सोच रहा था 

बिना बात क्या करना शोर?


- डॉ. सुरेन्द्र विक्रम

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