ऐसा हो अपना आहार – संतुलित जीवन के लिए प्रेरणादायक कविता

Dr. Mulla Adam Ali
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प्रेरक कविता : त्रिलोक सिंह ठकुरेला द्वारा रचित यह प्रेरणादायक हिंदी कविता "ऐसा हो अपना आहार" संतुलित, पौष्टिक और तामस रहित भोजन की महत्ता को दर्शाती है। यह कविता तन, मन और समाज के लिए शुद्ध आहार की प्रेरणा देती है। पढ़े और शेयर करें।

त्रिलोक सिंह ठकुरेला की प्रेरणादायक कविता

ऐसा हो अपना आहार

ऐसा हो अपना आहार।


जो मन में शुभ भाव जगाये, 

जिसे देखकर मन हरषाये, 

तन मन की सामर्थ्य बढ़ाये, 

जो हो जीवन का आधार। 

ऐसा हो अपना आहार।। 


सब व्यंजन शुचि और खरे हों, 

उनमें पोषक तत्व भरे हों, 

जिनको पाकर प्राण हरे हों, 

मानवता के दृढ़ हों तार। 

ऐसा हो अपना आहार।। 


तामस रहित, न तनिक नशा हो, 

खनिज, विटामिन और वसा हो, 

कार्बोहाइड्रेट उचित कसा हो, 

हो प्रोटीन व रेशा- सार। 

ऐसा हो अपना आहार।। 


अहोभाव से सब मिल खायें, 

सब ही अपनी क्षुधा मिटायें, 

वसुधा को घरबार बनायें, 

सबमें बढ़े आपसी प्यार। 

ऐसा हो अपना आहार।। 


- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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