These 10 Hindi poems by Dr. Surendra Vikram are a delightful blend of imagination, humor, and emotion. They explore themes like nature, family, seasons, dreams, and childhood innocence. Perfect for children, each poem carries a unique story with playful language and deep meaning. A wonderful collection that entertains, educates, and touches the heart.
Top 10 Poems by Dr. Surendra Vikram
लोकप्रिय बाल कविताएं : डॉ. सुरेन्द्र विक्रम
पढ़िए डॉ. सुरेन्द्र विक्रम की 10 सुंदर और शिक्षाप्रद बाल कविताएं – जंगल में सेल, वर्षा में, चिड़िया का गीत, मन करता है, बादल भैया, जाड़े में, सर्कसघर और अन्य। ये कविताएं बच्चों के मन को छूने वाली हैं, जिनमें हास्य, कल्पना और भावना का सुंदर संगम है।
Jungle Mein Sale
बच्चों के लिए हास्य कविता : जानवरों की शरारतों से भरी हास्य कविता "जंगल में सेल", बच्चों के लिए मनोरंजक और कल्पनाशील प्रस्तुति।
1. जंगल में 'सेल'
कहीं बिके गरम सूट, कहीं बिके टाई,
जंगल मे जाडे की 'सेल' लगी भाई।
बड़े-बड़े 'बैनर' हैं बड़े-बड़े पर्चे,
दूर-दूर फैले रहे 'सेल' के ही चर्चे।
एक दिन गिलहरी 'लेडीज़' सूट लाई
पहनकर जब निकली तो खूब मिली बधाई।
बंदर ने कोट लिया हुआ उसे घाटा,
पहना तो आफिस में साहब ने डाँटा।
जोड-गाँठ ले आई चिड़िया एक मफलर
मिला 'डिस्काउण्ट' में भालू का स्वेटर।।
मुफ्त में ही गैण्डा ले आया पतलून
भेड़ भी खरीद लाई दो गोले ऊन।।
चौथे दिन 'सेल' में जब गये हाथी दादा
खोजे-खोजे हार गये मिला न लाबादा।।
अंतिम दिन शेर भी परिवार सहित आया
जब न मिली टोपी तब खूब गुर्राया ।।
Varsha Mein
वर्षा ऋतु पर सुंदर बाल कविता : "वर्षा में" एक खूबसूरत कविता जो बच्चों को वर्षा का आनंद सिखाती है। जानिए वर्षा में गली, खेत और मेंढक का हाल।
2. वर्षा में
उमड़-घुमड़ बादल बरसा,
गली नहायी वर्षा में।
बहे पनारे तब पानी के,
नाव चलायी वर्षा में।।
बूंदे टप-टप गीत सुनातीं,
ताल मिलातीं वर्षा में।
निकल गगन के आँचल से,
वे रोब जमातीं वर्षा में।।
टर्र-टर्र अब मेढक दादा,
लगे टेरने वर्षा में।
झींगुर भी कानों तक आकर,
लगे घेरने वर्षा में।
खेत बाग-वन हरे दिखते,
भरी तलैया वर्षा में,
भीग रही है खड़ी खेत में,
मेरी गैया वर्षा में।।
Baadal Bhaiya
बच्चों के लिए संवादात्मक कविता : "बादल भैया" कविता में बच्चों की मासूम अपील और वर्षा की प्रतीक्षा को सुंदर रूप में दर्शाया गया है।
3. बादल भैया
अरे ! अरे ! तुम बादल भैया कहाँ चले?
प्यासी रह गई मेरी गैया, कहाँ चले?
भीग चुके कुछ खेत भले ही धरती के,
पर खाली हैं ताल तलैया, कहाँ चले?
अरसे बाद अतिथि बनकर तुम आये हो,
अचरज में डूबी पुरवैया, कहाँ चले?
नन्हें-मुन्नों की जिज्ञासा देखो तो,
हाथों में कागज की नैया, कहाँ चले?
बिजली रानी ललक रही है, तुम ठहरो,
नाचेगी वह छम्मक-छैया, कहाँ चले?
बिना बुझाये प्यास अरे इस धरती की,
ठुमक ठुमककर ता-ता थैया कहाँ चले?
Chidiya Ka Geet
घर और आँगन की याद दिलाती कविता : "चिड़िया का गीत" एक भावनात्मक कविता है जो बचपन, आँगन और टूटते सपनों की बात करती है।
4. चिड़िया का गीत
जिस आँगन में पली-बढ़ी, वो आँगन छूट गया।
आँगन क्या छूटा घर से आँगन ही रूठ गया।।
पहले सुबह-सुबह आकर
चुग जाती थी दाना।
दिन में रोज नियम से
आकर खाती थी खाना।।
खाना खाकर बने घोंसले
में फिर सुस्ताना।
इधर-उधर उड़ना
आँगन में तिनके बिखराना ।।
ऐसी आँधी चली घोंसला पट से टूट गया।
जिस आँगन में पली बढ़ी वो आँगन छूट गया।
आँगन में कमरा, कमरे
में आँगन बदल गया।
दो कमरों के छोटे घर
का नक्शा बदल गया।।
कमरा तो बन गया
हाथ से आँगन निकल गया।
आँगन के संग मेरा तो
इक सपना फिसल गया।
तोड़-फोड़ में दो अंडों का जोड़ा फूट गया
जिस आँगन में पली बढ़ी वो आँगन छूट गया।।
Samajh Nahi Pata Hoon
पारिवारिक उलझनों पर बच्चों की मासूम नजर : यह कविता बच्चों की नजर से घर के तनाव और भावनाओं को दर्शाती है – सच्ची, संवेदनशील और सोचने पर मजबूर करने वाली।
5. समझ नहीं पाता हूँ
सुबह-सुबह मम्मी-पापा में
जमकर हुई लड़ाई थी।
दोनों की तू-तू मैं-मैं-में
मेरी हुई पिटाई थी।
मम्मी चुप हैं, पापा चुप हैं
अलग-थलग दोनों बैठे।
दोनों का मुँह फूला-फूला
आपस में दोनों ऐंठे।।
मैं मम्मी को गया बुलाने
मुझको बड़ी जोर से डाँटा।
इक पापा से बात कही थी
बड़ी जोर से मारा चाँटा ।।
सुबह-सुबह, बक-बक, झक-झक
में दीदी की बस छूट गई।
टेबिल पर रखी थी शीशी
गिरी, झन्न से फूट गई।।
समझ नहीं पाता हूँ
अब मैं क्या विद्यालय जाऊँ?
या रूठे मम्मी पापा को
फिर से चलूँ मनाऊँ।
Jaade Mein
सर्दियों की मस्ती पर मजेदार बाल कविता : सर्दियों के मजे और ठिठुरन को मजेदार तरीके से पेश करती बाल कविता – "जाड़े में"।
6. जाड़े में
लस्सी, कुल्फी, बरफ़, मलाई,
चित हो गये अखाड़े में।
मफ़लर, स्वेटर, कोट, दुपट्टे,
फिर से निकले जाड़े में।।
बन्द पड़ी है गर्मी देखो,
जैसे बकरी बाड़े में।
कुहरे की चादर में छिपकर,
सूरज निकला जाड़े में।।
छम-छम कर वर्षा भी दौड़ी,
छिपकर खड़ी किवाड़े में।
खोज रहे हैं बादल दादा,
सूट पहनकर जाड़े में।।
दाँत गिन रहे गिनती अब,
थक जाती जीभ पहाड़े में।
समझ नहीं पाता अब कैसे,
आये हैं दिन जाड़े में।।
Man Karta Hai
बच्चों की कल्पनाओं को उड़ान देती कविता : यह कविता बच्चों की इच्छाओं, कल्पनाओं और उड़ान भरने के ख्वाबों को बड़े ही प्यारे अंदाज़ में दर्शाती है।
7. मन करता है
मन करता है सूरज बनकर,
आसमान में दौड़ लगाऊँ।
मन करता है चन्दा बनकर,
सब तारों पर अकड़ दिखाऊँ।।
मन करता है बाबा बनकर,
घर में सब पर धौंस जमाऊँ।
मन करता है पापा बनकर,
मैं भी अपनी मूंछ बढ़ाऊँ।।
मन करता है तितली बनकर,
दूर-दूर उड़ता ही जाऊँ।
मन करता है कोयल बनकर,
मीठे-मीठे बोल सुनाऊँ।।
मन करता है चिड़िया बनकर,
चीं-चीं, चूँ-चूँ शोर मचाऊँ।
मन करता है चीं लेकर,
पीली-लाल पतंग उड़ाऊँ।।
Koi Samajh Na Paata
बच्चों की उलझन और अभिलाषा : बच्चों की भावनाओं और भविष्य को लेकर परिवार की अपेक्षाओं को बखूबी दर्शाती कविता – "कोई समझ न पाता"।
8. कोई समझ न पाता
पापा कहते बनो डॉक्टर,
माँ कहतीं इंजीनियर।
भैया कहते इससे अच्छा,
सीखो तुम कंप्यूटर ।।
चाचा कहते बनो 'प्रोफेसर',
चाची कहतीं अफ़सर।
दीदी कहती-आगे चलकर,
बनना तुम्हें 'कलेक्टर' ।।
बाबा कहते फ़ौज में जाकर,
जग में नाम कमाओ।
दादी कहतीं घर में रहकर,
ही उद्योग लगाओ।।
सबकी अलग-अलग अभिलाषा,
सबका अपना नाता।
लेकिन मेरे मन की उलझन,
कोई समझ न पाता।।
Ho Jaayegi Chhutti
चंदामामा और दादी की कहानी : चंदामामा, दादी की कहानियों और बचपन की मासूम यादों से भरी सुंदर कविता – "हो जाएगी छुट्टी"।
9. हो जाएगी छुट्टी
चलो-चलो अब बहुत हो चुका
वही पुराना वादा कोरा।
चंदामामा कहो कहाँ है
दूध-भात का भरा कटोरा ।।
बचपन में हम जब भी रोते
दादीजी बहलाया करतीं।
हाथ उठाकर आसमान में
तुमसे बात कराया करतीं।।
कहती-जब चुप हो जाओगे
तब आयेंगे चंदामामा।
दूध भात का भरा कटोरा
तब लायेंगे चंदामामा।।
दादीजी की बात मानकर
हम सब चुप हो जाया करते।
हमें याद है बहुत दूर से
मामा तुम बहलाया करते।
अब तो मामा हमें बताओ
दूध-भात की सच्ची बातें।
कथा-पुरानी सुनते-सुनते
कट जाती हैं लंबी रातें।
Sarkasghar
बच्चों के लिए मनोरंजक कविता : कल्पनाओं से भरी कविता जिसमें जानवर करते हैं मजेदार सर्कस का आयोजन। पढ़िए "सर्कसघर"।
10. सर्कसघर
अगर गिलहरी गाना गाए,
कौआ करे तमाशा।
शेर-बबर जंगल का राजा,
खाए खील-बताशा।
कोयल छम-छम नाच दिखाए,
भालू ताल मिलाए।
बंदर राजा दोनों हाथों,
ढम-ढम ढोल बजाए।
गर्दभ राजा जादू के कुछ,
अद्भुत खेल दिखाए।
सचमुच पूरा जंगल ही,
तब सर्कसघर हो जाए।
- प्रो. सुरेन्द्र विक्रम
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