"Amma Ko Ab Bhi Hai Yaad" is a nostalgic Hindi children’s poem by Prabhudayal Srivastava, beautifully recalling childhood memories, rural life, and the warmth of family bonds. The poem connects young readers with the simplicity and emotions of the past.
Amma Ko Ab Bhi Hai Yaad
बाल कविता के माध्यम से जब अतीत की स्मृतियाँ जीवंत होती हैं, तो नन्हे पाठकों के मन में जड़ों से जुड़ाव की भावना जागती है। प्रभुदयाल श्रीवास्तव की यह भावभीनी बाल कविता "अम्मा को अब भी है याद" न केवल एक माँ की बचपन की सुनहरी यादों को चित्रित करती है, बल्कि बच्चों को परिवार, गाँव, मेहनत, और परंपरा के महत्व को सरल और सहज शब्दों में समझाती है। कविता में लोक जीवन की सोंधी गंध है, रिश्तों की आत्मीयता है, और गुज़रे समय की मिठास है।
बचपन की यादों पर बालगीत
अम्मा को अब भी है याद
नाना खेतों में देते थे,
कितना पानी, कितना खाद।
अम्मा को अब भी है याद।
उन्हें याद है बूढ़न काकी,
सिर पर तेल रखे आती थीं।
दीवाली पर दिये कुम्हारिन,
चाची घर पर रख जाती थीं।
मालिन काकी लिये फुलहरा,
तीजा पर करती संवाद।
अम्मा को अब भी है याद ।
चना चबेना नानी कैसे,
खेतों पर उनसे भिजवाती।
उछल कूद करते-करते वे,
रस्ते में मस्ताती जाती।
खुशी-खुशी देकर कुछ पैसे,
नानाजी देते थे दाद।
अम्मा को अब भी है याद ।
खलिहानों में कभी बरोनी,
मौसी भुने सिंगाड़े लातीं।
उसी तौल के गेहूँ लेकर,
भरी टोकनी घर ले जातीं।
वही सिंगाड़े घर ले जाने,
अम्मा सिर पर लेतीं लाद।
अम्मा को अब भी है याद।
छिवा-छिवौअल गोली कंचे,
अम्मा ने बचपन में खेले,
नाना के सँग चाट पकौड़ी,
खाने वे जातीं थीं ठेले।
छोटे मामा से होता था,
अक्सर उनका वाद विवाद।
अम्मा को अब भी है याद।
नानी थी धरती से भारी,
नाना थे अंबर से ऊँचे।
हँसते- हँसते बतियाते थे,
सब दिन उनके बाग बगीचे।
घर आँगन में गूँजा करते,
हर दिन खुशियों से सिंह नाद।
अम्मा को अब भी है याद ।
- प्रभुदयाल श्रीवास्तव
"अम्मा को अब भी है याद" बाल कविता केवल बीते कल की कहानी नहीं, बल्कि भावनात्मक विरासत का दस्तावेज़ है। यह कविता बच्चों को उनके मूल, रिश्तों की गरिमा और ग्रामीण संस्कृति की सौंधी सुगंध से परिचित कराती है। ऐसी रचनाएं न केवल साहित्यिक आनंद देती हैं, बल्कि जीवनमूल्य भी सिखाती हैं। यह कविता स्कूल के पाठ्यक्रम, बाल पत्रिकाओं और सांस्कृतिक मंचों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
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