Celebrated on 21st February, Nirala Jayanti honors Suryakant Tripathi 'Nirala' — the iconic poet of Indian culture, social reform, and literary transformation.
Nirala: The Poet-Sage of Indian Culture
21 फरवरी निराला जयंती पर विशेष
प्रस्तावना : निराला जयंती केवल एक कवि को याद करने का अवसर नहीं, बल्कि भारतीय साहित्य और संस्कृति में समरसता, विद्रोह और आध्यात्मिकता के मेल को समझने का भी एक सार्थक समय है। 'निराला' हिन्दी कविता के ऐसे पुरोधा हैं जिनका रचना-संसार छायावाद से लेकर प्रयोगवाद तक फैला है। उन्होंने जहां एक ओर समाज के वंचित वर्ग को स्वर दिया, वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति की आत्मा को कविता में जीवंत किया। इस लेख में हम निराला के काव्य-व्यक्तित्व, उनकी भारतीयता, प्रगतिशील चेतना और रचनात्मक विद्रोह को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे।
भारतीय संस्कृति के काव्य-पुरुष निराला
हिन्दी कविता के विकास पड़ावों को देखने से कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम लगातार उन बड़े एवं स्थापित रचनाकारों को भूलते जा रहे हैं, जिन्होंने कविता को प्यार से पाला, पैरों पर खड़ा किया और चलने लायक बनाया। इस संदर्भमें समाज के निर्धन, दलित एवं शोषित वर्ग को वाणी देने वाले और भारतीय संस्कृति के काव्य-पुरुष सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला को स्मरण करना इसलिए जरूरी है कि भारतीयता उनके साहित्य का प्राण-तत्व है। यह भी कि वे एक ऐसे कवि हैं, जिन्हें किसी वाद-युग अथवा धारा का कवि प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता। क्योंकि उनके काव्य में विषय विविधता के साथ ही अन्य विरोधी तत्त्वों का समावेश अनेक स्थलों पर दृष्टव्य है। जहां उनके काव्य में एक साथ छायावादी, प्रगतिवादी और प्रयोगवादी प्रवृत्तियों का समावेश है, वहीं उसमें राष्ट्रीय, भक्तिपरक एवं दर्शन संबंधी विराट रचनाओं का संयोग भी है।
निराला के काव्य-साहित्य का सिंहावलोकन करने से पता चलता है कि वे एक समानतावादी कवि थे। एक सच्चे भारतीय कवि के नाते उन्होंने नारी को सधवा एवं विधवा दोनों रूपों में चित्रित किया है। विधवा के संबंध में प्रचलित कुत्सित धारणा का निराला ने विरोध किया तो सामाजिक परिवेश में प्रेम के मर्यादित स्वच्छंद दोनों रूपों को चित्रित किया। उनकी "तुलसीदास" रचना में रत्नावली के चरित्र द्वारा भारतीय नारी के स्वरूप को इस प्रकार उद्घाटित किया गया है --
"उसमें कोई चाह नहीं है
विषय-वासना तुच्छ उसे कोई परवाह नहीं है।"
निराला के राष्ट्रीय गीतों में भारतीयता की जबर्दस्त छाप है। "जागो फिर एक बार" कविता में वे भारतीय जन-जीवन में जागृति लाने के लिए कृतसंकल्प हैं। भारत को वे अपराजेय मानकर इसके अतीत-गौरव के प्रति हमारा ध्यान आकृष्ट कर राम, कृष्ण, विवेकानन्द, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह आदि की वीरता, साहस एवं उनके भारत प्रेम से हमें अभिप्रेरित करते हैं। निराला जीवन पर्यन्त किसी के सामने नहीं झुके। उन्होंने पराजित होना सीखा ही नहीं। इसीलिए कवि "जागो फिर एक बार" में कह उठता है-
"सिंही की गोद से
छीनता रे शिशु कौन ?
मौन भी क्या रहती वह
रहता प्राण ? रे अजान
जागो फिर एक बार"
उल्लेखनीय है कि निराला के ओज, अहं एवं विद्रोह भावों से प्रेरित काव्य में विध्वंसात्मक दृष्टि की अपेक्षा रचनात्मक अथवा निर्माणात्मक दृष्टि सर्वत्र प्रतीत होती है। इन सबके मूल में कवि के अर्न्तमन में निहित भारतीयता ही है। वे कहीं भी पंत की भांति कार्ल मार्क्स आदि के सिद्धांतों का समर्थन करते नहीं दिखते। उनका लक्ष्य तो भारत की वास्तविक स्थिति का उद्घाटन कर उसमें व्याप्त कुरीतियों एवं रूढ़ियों के प्रति अपना विद्रोह प्रकट करना रहा है। यही वजह है कि प्राचीन आस्तिकता से संपन्न उनका सांस्कृतिक व्यक्तित्व नवीन मानव-मूल्यों को स्थापित करने में सफल हुआ है।
निराला का प्रगतिशील काव्य उनके विकसित चिंतन की प्रतिकृति है, जिसमें उनका वैयक्तिक एवं सामाजिक ढांचे के प्रति विद्रोह पक्ष प्रबल रहा है। मार्के की बात यह है कि उन्होंने प्रगतिशील को वहीं तक स्वीकारा है, जहां तक भारतीयता सुरक्षित है। इस परंपरा का काव्य निश्चित रूप से उनके क्रांतिदर्शी स्वरूप को उद्घाटित करने में पूर्णतया सार्थक है। उनकी "तोड़ती पत्थर" कविता में सामाजिक वैषम्यता, नारी की वास्तविक स्थिति तथा आर्थिक असमानता को देखा जा सकता है। इसमें जहां वे भारत के श्रमिक विवश वर्ग को सशक्तता से प्रस्तुत करते हैं, वहीं आर्थिक असमानता पर निर्ममता से प्रहार भी करते हैं। देश में भिक्षा-वृत्ति का वास्तविक दृश्य उनकी "भिक्षुक" कविता में इस प्रकार देखा जा सकता है--
"वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुंह फटी-पुरानी झोली फैलाता।"
"जागो जीवन धनिके" गीत में निराला का राष्ट्रीयतापूर्व दृश्य विश्वबंधुत्व स्थापना के लिए उत्कट है। कवि की मान्यता है कि भारतीय वाणिज्य को विश्व में सर्वत्र प्रसारित हो जाने में ही देश का विकास संभव है। इस मायने में निराला का साहित्य विशुद्ध स्वदेशी भूमि पर अवस्थित है। यह भी स्पष्ट है कि कवि प्राचीन संस्कृति का भक्त और गुणगायक है, परंपरा प्राप्त संस्कारों का उसे अभिमान है और वह विदेशी अंधानुकरण की घोर निन्दा करता आया है।
निराला की मानवतावादी रचनाओं में भारतीय जीवन दृष्टि सर्वत्र झलकती है। वे मानव में करूणा एवं संवेदना की आवश्यकता पर बल देते हैं। उनकी दृष्टि में समाजोत्थान एवं मानवतावाद सच्चे अर्थों में सभी समझे जाएंगे जब प्रत्येक व्यक्ति से समता का व्यवहार किया जाएगा। कवि आत्म-प्रसार की सार्थकता समस्त में एकात्मा का अनुभव करने में समझते हैं।
यह भी कि भौतिक जीवन की अपेक्षा कवि का आध्यात्मिक दृष्टिकोण भारतीय मनीषियों से विशेष प्रभावित रहा है। इतना ही नहीं, उनकी आध्यात्मिक रचनाओं पर भारतीय वेदान्त एवं स्वामी विवेकानन्द के साहित्य का भी खास प्रभाव पड़ा है। उनकी "अनामिका" इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। आत्मा और परमात्मा के पारस्परिक संबंध की दृष्टि से निराला की "तुम और मैं" कविता का विशेष महत्व है। यहां कवि अदृश्य सत्ता अथवा शक्ति के प्रति नतमस्तक है। उनके भक्तिपरक गीतों पर गीता के कर्मवाद का प्रभाव तो है ही।
निराला की गद्यकृतियां भी उनके जुझारू व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती हैं। उपन्यास, कहानी, जीवनी, निबंध, समीक्षा, रेखाचित्र आदि सर्जनाओं में निराला की दृष्टि अधिक यथार्थवादी बनकर उभरी है। इनमें समाज के सर्वहारा वर्ग को निराला की विशेष सहानुभूति मिली है। आज के बदलते परिवेश में निराला का जीवन दर्शन एवं उनके साहित्यिक मूल्य दोनों वंदनीय एवं अनुकरणीय हैं, इसमें दो राय नहीं।
निष्कर्ष;
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' न केवल हिन्दी साहित्य के अद्वितीय कवि हैं, बल्कि वे भारतीय चेतना, सांस्कृतिक अस्मिता और सामाजिक परिवर्तन के क्रांतिदर्शी भी हैं। उनका साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना अपने समय में था। निराला की कविताएं भारतीय जीवन के दुःख-दर्द, संघर्ष, और गौरव की कथा कहती हैं। उन्होंने साहित्य को जनसरोकार से जोड़ा और कविता को सामाजिक चेतना का माध्यम बनाया। आज के संदर्भ में उनका साहित्यिक दृष्टिकोण और मानवतावादी मूल्य हमें नया दृष्टिकोण और दिशा प्रदान करते हैं। निराला जयंती पर उन्हें स्मरण करना हमारी सांस्कृतिक विरासत का सम्मान है।
FAQs (Frequently Asked Questions):
Q1. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' को काव्य-पुरुष क्यों कहा जाता है?
उत्तर: निराला को काव्य-पुरुष इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने हिन्दी कविता को न केवल नया स्वरूप दिया, बल्कि उसे भारतीयता, विद्रोह, संवेदना और आध्यात्मिकता से समृद्ध किया।
Q2. निराला की कविताओं में भारतीय संस्कृति का क्या स्थान है?
उत्तर: निराला की रचनाओं में भारतीय संस्कृति का स्थान केंद्रीय है। वे वेदांत, भगवद्गीता, भक्ति आंदोलन और स्वामी विवेकानंद से गहरे प्रभावित थे।
Q3. निराला की कौन-कौन सी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं?
उत्तर: उनकी कविताएं जैसे "तोड़ती पत्थर", "भिक्षुक", "जागो फिर एक बार", "तुलसीदास" आज भी समाज की सच्चाइयों को उजागर करती हैं और पाठकों को प्रेरित करती हैं।
Q4. निराला के साहित्य में प्रगतिशीलता किस रूप में देखी जा सकती है?
उत्तर: उन्होंने रूढ़ियों, असमानता और अंधविश्वासों के विरुद्ध लिखा, परंतु भारतीयता की रक्षा करते हुए। उनका प्रगतिशील दृष्टिकोण भारतीय मूल्यों के साथ संतुलित था।
Q5. निराला जयंती क्यों मनाई जाती है?
उत्तर: निराला जयंती उनके साहित्यिक योगदान और भारतीय सांस्कृतिक चेतना के संरक्षण हेतु स्मरण के रूप में मनाई जाती है।
- अमरसिंह वधान
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