अनोखा स्वतंत्रता दिवस – बाल कहानी | डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'

Dr. Mulla Adam Ali
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"Anokha Swatantrata Diwas" is a heartwarming children’s story by Dr. Nagesh Pandey 'Sanjay'. Through the innocent eyes of little Saurabh, it beautifully captures the true spirit of Independence Day and the values of patriotism, respect, and duty towards the nation.

Anokha Swatantrata Diwas : An Inspiring Independence Day Story for Children

स्वतंत्रता दिवस पर बच्चों के लिए कहानी

स्वतंत्रता दिवस पर बच्चों के लिए कहानी

स्वतंत्रता दिवस केवल एक राष्ट्रीय पर्व नहीं, बल्कि देशप्रेम और त्याग की गाथा का जीवंत प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है उन वीरों की, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमें आज़ाद भारत का उपहार दिया। स्वतंत्रता दिवस का महत्व केवल झंडा फहराने और सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक ही सीमित नहीं, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा का संदेश देने का अवसर भी है। प्रस्तुत कहानी “अनोखा स्वतंत्रता दिवस” इसी संदेश को एक मासूम बच्चे सौरभ की दृष्टि से हमारे सामने रखती है, जिसमें बालमन की सरलता और राष्ट्रप्रेम का अनोखा संगम है।

अनोखा स्वतंत्रता दिवस 

डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'

"उठो भी बेटे, आज पंद्रह अगस्त है।"

"अरे ! मम्मी। पता है मुझे। लेकिन आज कोई स्कूल थोड़े ही जाना है। आप भी न।"

मम्मी ने तीसरी बार जब सौरभ को कसकर हिलाया तो वह खीझ उठा। 

ऐसा नहीं कि सौरभ पंद्रह अगस्त को स्कूल नहीं जाता था। जाता था। हमेशा जाता था। उसे पता है कि पंद्रह अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। इसी दिन अपना देश आजाद हुआ था। जिन्होंने देश के लिए कुर्बानियां दीं , उन्हें इस दिन याद करते हैं। जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। उन्हें सर झुकाते हैं। स्कूल में भाषण होते हैं। नाटक खेला जाता है। गीत गाया जाता है। अरे ! पिछले साल... उसने भी तो गीत गाया था। उसे फर्स्ट प्राइज भी मिला था। भला मिलता भी क्यों न? उसने ऐसे ही थोड़े गाया था। साज और संगीत के साथ गाया था। सिराज ने पियानो बजाया था। मोनिका ने ढोलक। सार्थक, शिव और रिद्धि ने भी उसके सुर में सुर मिलाया था। गीत क्या, जैसे जादू था। सब उसे सुनकर मगन हो गए थे। आज भी याद है उसे गीत : आजादी के पावन दिन की, आओ सुनो कहानी। कितनी मुश्किल से हम सबने, पाई थी आजादी। जीता था गांधी का चरखा, जीत गई थी खादी। अंग्रेजों के मंसूबों पर, खूब फिरा था पानी। आजादी के पावन दिन की, ऐसी अजब कहानी।...

हां , जी। यह गीत पूरा का पूरा याद है उसे। 

सौरभ ने करवट बदली। जम्हाई भरी। उठकर बैठ गया। जोर से अंगड़ाई ली फिर अनमना सा बोला, "मम्मी आपने नींद खराब कर दी।"

मम्मी ने फिर वही वाक्य दोहराया, "अरे ! आज पंद्रह ..."

बीच में ही सौरभ विस्मित स्वर में बोल उठा, "हां, हां। पंद्रह अगस्त है। लेकिन क्या आप भूल गई हैं कि हम लोग आज अपने घर पर नहीं हैं। नाना के घर पर हैं। यहां क्या मुझे स्कूल जाना है?"

कल मम्मी सौरभ को लेकर यहां आ गई थीं। जैसे ही खबर मिली कि नाना जी बहुत बीमार हैं। एडमिट हैं। वे उसे लेकर तुरंत यहां भागीं। सबसे मिलकर नाना की हालत में थोड़ा सुधार भी हुआ था। मम्मी देर रात तक जागी थीं। उनका चेहरा भी किसी बीमार से कम नहीं लगता था। उन्होंने सौरभ के गाल पर चिकोटी लेते हुए, उसके सवाल का जवाब दिया,

"क्यों नहीं जा सकता स्कूल? अभी वीनू स्कूल के लिए तैयार हो रहा है । उसके स्कूल चले जाना। पंद्रह अगस्त के कार्यक्रम में वहां शामिल हो लेना। तेरे पापा कहीं बाहर होते हैं तब भी तो पंद्रह अगस्त के फंक्शन को अटेंड करने जाते हैं न।"

सौरभ के पापा इंटेलीजेंस अफसर हैं। कई बार ऐसा हुआ कि उनकी ड्यूटी अचानक बाहर लग गई लेकिन उन्होंने पंद्रह अगस्त का आयोजन कभी भी मिस नहीं किया। जहां गए। वहीं शामिल हुए। कभी टी. वी. पर जन गण मन की धुन भी सुनाई दे जाए तो वे सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं। याद आया, उन्होंने ही तो सौरभ को गीत याद कराया था।

अब तो सौरभ की नींद ही नहीं, आलस भी गायब हो चुका था। 

वह जल्दी से उठा और तैयार हो गया। 

ममेरे भाई वीनू के साथ उसके स्कूल गया। 

वीनू के सर को जब सारी बात पता चली तो वे बहुत खुश हुए। उन्होंने सौरभ को चीफ गेस्ट के बगल में बैठाया। उसे आज का नन्हा चीफ गेस्ट कहा गया। सब उसे ही देख रहे थे।

प्रधानाचार्य जी ने जब अपने भाषण में उसकी तारीफ करते हुए कहा," देश को सौरभ जैसे राष्ट्रप्रेमी बच्चों की जरूरत है। हमें सौरभ पर गर्व है। अपने देश के लिए यही जज्बा होना चाहिए।जब भी अवसर हो, हम देश के लिए अपना समय दें। हम अपने देश का दिल से सम्मान करें। उसके हर त्योहार का सम्मान करें। देश के हर राष्ट्रीय प्रतीक का सम्मान करें।"

सौरभ के लिए खूब तालियां बजीं। सौरभ जानता था कि इन तालियों की असली हकदार मम्मी हैं जिन्होंने उसे यहां भेजा था। 

कार्यक्रम समाप्त हुआ तो घर पहुंचने के लिए सौरभ के कदमों में खासी तेजी थी। मम्मी का माथा जो चूमना था और यह भी पूछना था कि देश के राष्ट्रीय प्रतीक क्या होते हैं?

- डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'

237, सुभाष नगर,
शाहजहांपुर 242001
(उत्तर प्रदेश)
094516 45033

कहानी यह सिखाती है कि देशभक्ति केवल बड़े-बड़े कार्यों में नहीं, बल्कि छोटी-सी निष्ठा और सम्मान की भावना में भी प्रकट होती है। सौरभ की जिज्ञासा और उसकी मम्मी का मार्गदर्शन हमें यह अहसास कराता है कि अगर हर बच्चा और हर परिवार स्वतंत्रता दिवस और राष्ट्रीय प्रतीकों का दिल से सम्मान करे, तो राष्ट्र की जड़ों को और मजबूती मिलेगी। वास्तव में, स्वतंत्रता दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व और पहचान का उत्सव है।

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