हँसी के फव्वारे: गर्मी, लस्सी और बचपन की मस्ती पर विशेष बाल कविता

Dr. Mulla Adam Ali
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This delightful children’s poem by Prabhudayal Srivastava captures the joy of summer, the innocence of childhood, and the love of grandparents. With humor and warmth, it reminds us how simple pleasures like a glass of lassi can create endless laughter and happiness.

Hansi Ke Fawware – A Joyful Children’s Poem

हँस्सी के फव्वारे हिंदी बाल कविता

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता

मुट्ठी में है लाल गुलाल (121 बाल कविताएँ) से प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता हँस्सी के फव्वारे। यह कविता बच्चों की सरल इच्छाओं और दादाजी के स्नेहिल व्यवहार को हल्के-फुल्के हास्य के साथ प्रस्तुत करती है। गर्मी की तपन में लस्सी की ठंडक और बच्चों की खिलखिलाहट जीवन के छोटे-छोटे सुखों की याद दिलाती है। इस रचना में परिवार, बचपन और आनंद के रंगों को बड़ी सहजता से उकेरा है।

हँस्सी के फव्वारे


दादाजी है अस्सी के,

अस्सी के रे अस्सी के।

दादाजी ये, सोहन के,

मोहन, टीना, जस्सी के।


उफ ! गरमी इतनी ज्यादा,

बहता खूब पसीना है।

सिर पर बैठ गया आकर,

कड़क जून का महीना है।

बच्चे माँग रहे पैसे,

दादाजी से लस्सी के।


दादाजी ने पलट दिया,

बटुआ सारा का सारा।

कुनबा निकला चिल्लर का,

बच्चे चीखे आ-रा-रा!

दादा बोले सब ले लो,

दस सिक्के हैं दस्सी के।


इन सारे सौ रुपयों की,

लस्सी घर में आएगी।

बच्चों की पल्टन सारी,

मस्ती मौज मनाएगी।

फूटेंगे जी फव्वारे,

लस्सी पीकर हँस्सी के।

{दस्सी मतलब दस रूपये का सिक्का)


- प्रभुदयाल श्रीवास्तव

इस कविता का निष्कर्ष यही है कि जीवन के असली सुख बड़े साधनों में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे पलों की खुशियों में छिपे होते हैं। दादाजी का स्नेह, बच्चों की मासूम मांग और लस्सी की ठंडक – सब मिलकर हँसी और अपनत्व का ऐसा वातावरण बनाते हैं जो पारिवारिक रिश्तों की गर्माहट और बचपन की खिलखिलाहट को अमर कर देता है।

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