पुस्तकालय : किताबों का संसार

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पुस्तकालय (किताबों का संसार)

               पुस्तकालय, जिसके नाम से ही पुस्तकों का बोध होता है। पुस्तकालय पढ़ने वालों के लिए एक यज्ञशाला होती है। इस यज्ञशाला में किताबों की पूजा की जाती है। जीवन सफल बनाने के लिए किताबों का यज्ञ किया जाता है। पुस्तकालय एक ऐसी तपोभूमि है जिसमें तपकर पाठक ज्ञान का भंडार पा सकता है। अपने जीवन को ज्ञान से भरकर ज्ञानवान और महान बना सकता है।

               पुस्तकालय एक कल्पवृक्ष है जैसे बरसों से खड़ा कोई घना वृक्ष अपनी शीतल छाया से अपने मीठे फलों से सभी प्राणियों को तृप्त करता है, वैसे ही पुस्तकालय भी पाठक को तरह तरह का ज्ञान प्रदान करता है। पुस्तकालय में विद्यमान भिन्न-भिन्न प्रकार की किताबें मानव जीवन में ज्ञान का सागर प्रवाहित करती है।

        पुस्तकालय को हम केवल, पुस्तकालय न कहकर विद्या की देवी सरस्वती माता का मदिंर भी कहकर पुकार सकते हैं। इस विद्या के मदिंर की प्रशंसा सबने एक ही स्वर में की है।

  तिलक ने कहा "मै नरक में जाने को तैयार हूँ यदि वहाँ उत्तम पुस्तकों वाला पुस्तकालय हो"

रस्किन का कहना है "उत्तम पुस्तकालय एक राजकोष है जहाँ हीरे - जवाहरात सोना - चांदी नही बल्कि ज्ञान रूपी रत्नों का भंडार है"

        वास्तव में पुस्तकालय ज्ञान का अक्षय भंडार होता है। ज्ञान का कोई अंत नहीं होता। पुस्तकालय में पाठक अपनी शक्ति अपनी भक्ति अपनी लगन से ज्ञान रूपी रत्नों को प्राप्त कर सकता है।
   
       ज्ञान का दीप, 
       जलाती है किताबें।
       जीवन में प्रकाश
       फैलाती है किताबें।
       भूलें - भटकों को राह
       दिखाती है किताबें।
       मजिंल तक लेकर
       जाती है किताबें। 

         पुस्तकालय में पाठकों के लिए एक से बढ़कर एक किताबें होती है। निर्धन विद्यार्थियों के लिए पुस्तकालय उन्नति का एक उत्तम साधन सिद्ध हुए हैं। जो विद्यार्थी पुस्तक खरीदने में आर्थिक रूप से असमर्थ होते हैं पुस्तकालय उनके जीवन में प्रकाश की किरण के समान होते हैं। उस प्रकाश को अपनाकर विद्यार्थी अपना जीवन प्रकाशवान बना सकते हैं।

        पुस्तकालय न केवल हमें बुरी संगति से व बुराईयों से बचाता है बल्कि हमे ज्ञान प्रदान करता है हमारा मनोरंजन करता है। किताबों की संगत सबसे अच्छी व ज्ञानवर्धक होती है। 

    किताबें बोलती तो 
    कुछ नहीं। 
    पर सब कुछ कह 
    जाती है। 
    अच्छे - बुरे का अहसास 
    कराती है। 
    खुद स्याही की पहचान 
    लिये है। 
    पर लोगों को अमर 
    कर जाती है। 

किताबें हमारा मार्गदर्शन करती है। उत्तम पुस्तकें मित्र से बढ़कर होती है। हमें इधर-उधर गप्पे मारने उल्टी - सीधी बातें करने के स्थान पर अच्छी - अच्छी पुस्तकें पढनी चाहिए। क्योंकि पुस्तकों को पढ़ने से हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है और दोस्तों ज्ञान कभी नहीं घटता हमेशा बढता ही रहता है। हम इसे कितना भी बांटे यह बढता ही जायेगा। 

     इसलिए पुस्तकालय को यज्ञशाला व कल्पवृक्ष कहा गया है। जिसमें तपकर पाठक सोना नहीं हीरा बन जाता है। एक ऐसा हीरा जिसकी चमक चारों दिशाओं में प्रकाश पुंज की भांति फैलती है। 

    सोने जैसे इनके अक्षर 
    कभी न छोड़ें किसी 
    को निरक्षर। 
    जो दिल से अपनाते हैं 
    तो, जीवन सफल कर 
     जाती है किताबें। 

निधि "मानसिंह"
        एम.ए. हिन्दी 
कैथल (हरियाणा)


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