विभाजन और सांप्रदायिकता की समस्या पर आधारित उपन्यास : कितने पाकिस्तान

Dr. Mulla Adam Ali
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Kitne Pakistan Novel by Kamleshwar

विभाजन और सांप्रदायिकता की समस्या पर आधारित कमलेश्वर का उपन्यास

‘कितने पाकिस्तान’

          कमलेश्वर का जन्म 6 जनवरी1932 को मैनपुरी, उत्तरप्रदेश में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। कमलेश्वर ने उपन्यास, कहानी, नाटक, संस्मरण, पटकथा विधाओं में लेखन किया।

      कमलेश्वर ने ‘सारिका’ और ‘दैनिक भास्कर’ जैसी कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। कमलेश्वर को उनकी रचनाधर्मिता के फलस्वरूप पर्याप्त सम्मान एवं पुरस्कार मिले। ‘कितने पाकिस्तान’ उपन्यास के लिए ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार, 2005 में ‘पद्मभूषण’ से कमलेश्वर सम्मानित है। 27 जनवरी,2007 को कमलेश्वर का निधन हो गया। इनकी प्रमुख रचनाएं ‘राजा निरबंसिया’, ‘खोई हुई दिशाएं’ ‘सोलह छतों वाला घर’ आदि प्रमुख है। कहानी संग्रहों में ‘जिंदा मुर्दे व वही बात’, ‘आगामी अतीत’, ‘डाक बंगला’, ‘काली आंधी’ आदि है।

    कमलेश्वर की रचनाओं में तेजी से बदलते समाज का बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील चित्रण का दृष्टिगोचर रहा है। वर्तमान की महानगरीय सभ्यता में मनुष्य के अकेलापन की व्यथा और उसका चित्रांकन कमलेश्वर की रचनाओं की विशेषता है।

‘कितने पाकिस्तान’ (Kitne Pakistan Novel by Kamleshwar)

     कमलेश्वर द्वारा लिखित ‘कितने पाकिस्तान’ बीसवीं शताब्दी के अंतिम पड़ाव की महान औपन्यासिक उपलब्धि है। “आतंक, संत्रास, अनौचित्यपूर्ण मृत्यु आदि समकालीन राजनीति के यथार्थ है। इसी के परिप्रेक्ष्य में पूर्ण ऐतिहासिक काल में समकालीन विजय में देखा-परखा है। ‘कितने पाकिस्तान’ में इतिहास की बेहद उदास छायाएं है। काली आंधियां चल रही है। श्रवेत कपोल उड़ रहे हैं। इन प्रतीकों से उपन्यास भरा पड़ा है।“

    सांप्रदायिक समस्या को ध्यान में रखकर लिखे गए समस्त उपन्यासों से यह उपन्यास बिल्कुल अलग ढंग में लिखा गया उपन्यास है। इस उपन्यास में लेखक संपूर्ण दुनिया की चिंताओं व समस्याओं को साकार करने में कामयाब रहा है। ‘कितने पाकिस्तान’ के विषय में स्वयं कमलेश्वर का कहना है कि –“पचास पचपन बरस पहले जो अमूर्त से शपथ उठाई थी की रचना में ही मुक्ति है, उस मुक्ति का किंचित एहसास अब हुआ है।“

   इस उपन्यास के संदर्भ में कमलेश्वर लिखा है की मेरी दो मजबूरियां थी इसके लेखन से जुड़ी है। एक तो यह है कि कोई नायक-महानायक सामने नहीं था। इसलिए मुझे स्वयं को ही नायक-महानायक और खलनायक बनना पड़ा और दूसरी मजबूरी यह कि इसे लिखते समय लगातार यह अहसास बना रहा कि जैसे यह मेरी पहली रचना है।

   इस उपन्यास में सतयुग से लेकर कलियुग तक की घटनाओं को लिया गया है। इसमें कमलेश्वर ने इतिहास और भूगोल उनकी सीमाओं को तोड़कर नया आश्चर्यजनक प्रयोग किया है। यह वह पाकिस्तान है जो लोगों के दिलों में बोया गया था। मानव की वास्तविक समस्याओं और चिंताओं को सामने रखने की कोशिश कहना ही शायद इनका मुख्य उद्देश्य रहा है। इतिहास के अलग-अलग दौर में जो राजनीतिक मारकाट हुई उसके मूल को भी सामने रखने का भरपूर प्रयास किया गया है। आजादी मिलने के साथ ही जो सांप्रदायिक दंगे भड़के वह तब से लेकर आज पूरे समाज में फैले हुए हैं। हिंसा का वह दौर अभी भी खत्म नहीं हुआ। विभाजन और सांप्रदायिकता की समस्या ही इस उपन्यास का मूल कथ्य है।

   ‘कितने पाकिस्तान’ उपन्यास में कमलेश्वर की प्रतिभा को अलग रूप से हमारे सामने प्रस्तुत होता है। जिसमें कमलेश्वर ने न केवल अपने आसपास के वातावरण, एक गाँव या देश को ही नहीं समेटा है बल्कि संपूर्ण विश्व इस कथानक में समाया हुआ है। उपन्यास में घटना चयन इस प्रकार से किया गया है कि उसमें क्रम न होकर होने पर भी हम उसमें उलझते नहीं है। वर्तमान के साथ-साथ इतिहास का अवलोकन भी होता है। इतना सब होने पर भी उपन्यास की सहजता, सरलता व रोचकता में कहीं भी हमें कोई कमी नहीं आती।

   सांप्रदायिकता, जातिवाद, आतंकवाद और अलगाववाद जैसी समस्याएं ‘कितने पाकिस्तान’ के कथानक का प्रमुख आधार बन कर उभरी है।

   ‘कितने पाकिस्तान’ उपन्यास में स्वतंत्रता के पूर्व के और स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारत में धर्म के नाम पर जो वारदातें हुई, उनके कारणों को तलाशने और इस समस्या के शाश्वत समाधान की और पाठकों के ध्यान को आकर्षित करने का प्रयास किया गया है।

डॉ. मुल्ला आदम अली

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