Bal Kavita: चीं चीं चूहा - अशोक श्रीवास्तव कुमुद

Dr. Mulla Adam Ali
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Poem for childrens "Chin Chin Chuha" by Ashok Srivastava "Kumud" 

कविता कोश में आज आपके समक्ष प्रस्तुत है अशोक श्रीवास्तव कुमुद जी द्वारा रचित हिंदी बाल कविता "चीं चीं चूहा"। पढ़े और आनंद लें।

चीं चीं चूहा

(बच्चों के लिए रचना)


छिपे हुए सब चूहे बिल में,

हो दुखी भयग्रस्त।

जान बचे बिल्ली से कैसे,

भाग भाग कर त्रस्त।


जूझ रहे सब विकट समस्या,

हाल हुआ बेहाल।

चूहे सारे खत्म हो रहे,

बिल्ली सबकी काल।


चूहों ने फिर सभा बुलाई,

कैसे छूटे जान।

मिले खबर बिल्ली की कैसे,

जानें पता ठिकान।


हर चूहे ने राय बताई,

राय न मिलती पुष्ट।

सब में कोई कमी निकलती,

सब ना हों संतुष्ट।


आखिर बोला चीं चीं चूहा,

छेड़ा शहरी राग।

लगवा लो अब सीसीटीवी,

छोड़ो भागम-भाग।

लगवा दो हर मोड़ कैमरा,

हो जगह जगह स्क्रीन।

बिल्ली चाहे कहीं छिपी हो,

दिख जाएगी क्लीन।


बचने का भी अवसर होगा,

होगी राह दुरूस्त।

हर चूहा भयमुक्त बनेगा,

खतरे होंगे ध्वस्त।


सी सी टी वी लगा गली में,

चूहे अब अलमस्त।

बिल्ली कहाँ अब किस मोड़ पर,

मिलती खबरें मस्त।


बिना खौफ के दौड़े चूहे,

करते दिन भर गश्त।

चूहा पकड़ न पाये बिल्ली,

हुई भूख से त्रस्त।


बिल्ली को जब मिला न चूहा,

छोड़ दिया घर बार।

छोड़ मुंबई काशी पहुँची,

होकर शाकाहार।      

अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"

राजरूपपुर, प्रयागराज (इलाहाबाद)

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