मूर्ख सियार समझ ना पाया – बच्चों के लिए मज़ेदार नैतिक पद्यकथा

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Padya Katha Foolish Jackal Verse Story by Dr. Surendra Vikram, Bal Kavita In Hindi, Poems for Childrens, Kids Poetry in Hindi.

Padya Katha : Murkh Siyar

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Foolish Jackal Hindi Verse Story: एक चालाक सियार की कहानी जो जंगल में अपनी पूजा और घंटी से सबको धोखा देता है, लेकिन लोमड़ी की होशियारी से उसकी सच्चाई सामने आ जाती है। बच्चों के लिए मज़ेदार और नैतिक शिक्षा देने वाली पद्यकथा। पढ़िए सुरेन्द्र विक्रम की बाल कविताएं और शेयर कीजिए।

बच्चों के लिए मज़ेदार नैतिक पद्यकथा

मूर्ख सियार समझ ना पाया


खींचतान जंगल में होती 

होता रोज भयानक शोर।

सुनते-सुनते ऊब गया तब 

चला सियार गाँव की ओर। 


अभी गाँव में पहुँचा ही था 

घंटा एक पड़ा दिखलाई। 

जैसे मुँह से उसे उठाया

टन् -टन् टन् -टन् पड़ा सुनाई। 


शोर-शोर में अंतर होता 

अलग-अलग सबका अंदाज। 

जो कानों को अच्छी लगती 

कहते उसे मधुर आवाज ।


आया मज़ा, सियार को सचमुच 

उसे उठाकर घर लाया ।

पत्थर का इक टुकड़ा लेकर 

टन् -टन् टन् -टन् खूब बजाया। 


अब सियार कुछ लगा सोचने 

इक तरकीब समझ में आई। 

घंटे को झट रखा बाद में 

जंगल में इक खबर उड़ाई ।


पूजा मेरी सफल हो गई 

जंगल-देव माँद में आए ।

मुझे दिया आदेश, आज से 

नए-नए कुछ नियम बनाए। 


जंगल-गुरु बनाया मुझको 

उनकी सचमुच शक्ति अनूठी। 

सभी ओर अब मंगल होगा 

नृत्य करेगी बीरबहूटी ।


सीधे कोई नहीं मिलेगा 

उनका है आदेश यही।

जंगल में जिसको जो कहना 

मुझसे करनी, बात कही ।


बात काटकर भालू बोला 

माना सारी बात तुम्हारी। 

पानी दूध अलग होंगे जब 

उनसे होगी बात हमारी ।


अब सियार का माथा ठनका 

कौन नहीं योजना बनाएँ। 

सचमुच में वनदेव को लाकर

इन सबसे कैसे मिलवाएँ। 


बुद्धि अचानक उसकी कौंधी

पल में सूझा नया उपाय ।

'जंगल-देव साधना में हैं' 

सचमुच मैं भी हूँ असहाय।


बहुत कठिन है, उनसे मिलना 

एक काम कर सकता आज।

हाथ जोड़कर, विनती करके 

सुनवा सकता हूँ आवाज।


गया सियार माँद के भीतर 

लगा बजाने टन्-टन् घंटा।

बाहर आया, हाथ जोड़कर 

बोला- 'बहुत बड़ा है टंटा'। 


अब सबको विश्वास हो गया 

आए हैं सचमुच वन-देव।

बात सियार सही कहता है  

गुरू रहेगा वही सदैव।


कुछ दिन तो सब ठीक चला 

मिलजुल लंबा गठजोड़ हुआ। 

मगर लोमड़ी के आने से 

सब कुछ भंडाफोड़ हुआ।


घंटे की आवाज सुनी तो 

बुद्धि लोमड़ी की चकराई। 

गाँव-गाँव जाती रहती थी 

उसको बात समझ में आई।


घुसी लोमड़ी माँद के अंदर 

सब लोगों की आँख बचाकर।

टन्-टन् करती बाहर आई 

घंटे को मुँह में लटकाकर। 


इतनी जल्दी काम हुआ सब 

मूर्ख सियार समझ ना पाया। 

थर-थर, थर-थर लगा काँपने  

सबने मिलकर किया सफाया।


- डॉ. सुरेन्द्र विक्रम

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