Professor Surendra Vikram has made remarkable contributions to Hindi children’s literature, both as a creator and a critic. His research, critical insights, and dedication have shaped the field and inspired emerging writers. This preface highlights his scholarly commitment and literary achievements.
Prof. Surendra Vikram: A Dedicated Creator and Critic in Hindi Children’s Literature
बालसाहित्य का सशक्त स्वर: प्रो. सुरेन्द्र विक्रम
हिन्दी बालसाहित्य में प्रो. सुरेन्द्र विक्रम का योगदान न केवल रचनात्मक है, बल्कि आलोचनात्मक और शोधपरक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने बालसाहित्य के इतिहास, समीक्षा और लेखन की दिशा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। उनका समर्पण और अकादमिक परिश्रम नवोदित साहित्यकारों के लिए प्रेरक है। इस भूमिका में उनके साहित्यिक योगदान और प्रतिबद्धता की झलक प्रस्तुत की गई है।
हिन्दी बालसाहित्य समीक्षा के निकष पर
भूमिका
हिन्दी बालसाहित्य के क्षेत्र में जो थोड़े से गिने चुने लोग बहुत गंभीरता, समर्पण- भाव और पूर्ण मनोयोग के साथ विविधपक्षीय रचना कर्म में संलग्न है, उनमें नि:संदेह प्रो. सुरेन्द्र विक्रम का नाम उल्लेखनीय और महत्त्वपूर्ण है। प्रो. विक्रम ने अपनी उत्कृष्ट उच्च शैक्षणिक उपलब्धियों के साथ आधुनिक हिन्दी कविता/ नई कविता के गंभीर शोध अध्यता रहते हुए अध्ययन मनन, चिंतन अनुचिंतन, सर्जन- लेखन शोध, अनुसंधान आदि के लिए बालसाहित्य का स्वेच्छा से चयन किया, जिससे वे अद्यावधि जुड़े हुए हैं। इस दृष्टि से बालसाहित्य के एक प्रतिबद्ध एवं कटिबद्ध साहित्यकार हैं। गहन अध्यवसाय एवं अध्ययनोपरांत श्रमसाध्य शोधोपाधिप्राप्त प्राप्त डॉ. सुरेन्द्र विक्रम जैसे बालसाहित्यकार का शुद्ध रूप से एक प्रतिबद्ध बालसाहित्यकार बने रहने की ज़िद और प्रतिज्ञा न केवल प्रशंसनीय -श्लाघनीय है बल्कि अनुकरणीय भी है।
उच्च शिक्षा में लंबे समय तक रहने के बावजूद बालसाहित्य में बराबर आपकी उपस्थिति से न केवल एक माहौल बना है, बल्कि अपनी समीक्षात्मक कृतियों से उन्होंने विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी बालसाहित्य को अवसर प्रदान किया है। उन्होंने हिन्दी बालसाहित्य शोध का इतिहास और हिन्दी बाल पत्रकारिता का इतिहास लिखकर एक मानक स्थापित किया है।
हिन्दी बालसाहित्य के विविध पक्षीय लेखन/ सृजन में प्रो. सुरेन्द्र विक्रम का सबसे प्रमुख क्षेत्र समीक्षा/ आलोचना है, जिससे बालसाहित्य जगत में उनकी पहचान बनती है। वह बालसाहित्य के प्रभावी समीक्षक कहे जाते हैं, जो बिना किसी लाग- लपेट के बेबाक तरीके से निर्भीक होकर अपना अभिमत प्रकट करते हैं। बालसाहित्य के सेमिनार, सम्मेलन, एकेडमिक संगोष्ठी तथा परिचर्चा आदि में सर्वत्र सुरेन्द्र विक्रम जी की बेवाकी और साफगोई परिलक्षित होती है। संभव है, कुछ साहित्यकार मित्रों को उनकी यह स्पष्टवादिता रुचिकर न लगती हो और वे उनकी राय से सहमत भी न हो पाते हों, बावजूद इसके बिना किसी बाहरी बनावट के वे साफ़-साफ़ कहने की कला में दक्ष हैं। यही कारण है कि बालसाहित्य के क्षेत्र में उनके प्रतिद्वंद्वी, मित्र-अमित्र भी कम नहीं हैं, पर इन सब की परवाह किए बिना अपने निर्दिष्ट पथ पर निर्बाध गतिशील बने रहने वाले वे अपनी धुन के पक्के बालसाहित्यकार कहे जा सकते हैं। कई बार अनेक स्थापित और ख्यातिप्राप्त रचनाकारों के प्रभाव और प्रभामंडल से अनातंकित और अप्रभावित उनके लेखन के कमजोर पक्षों को अनावृत्त करने में भी तनिक संकोच नहीं करने वाले सुरेन्द्र विक्रम बालसाहित्य में अकादमिक साहस रखने वाले अपनी तरह के इस रूप में संभवतः अकेले रचनाकार हैं। वे अपने विरोधियों और प्रतिरोधियों को अपेक्षित अनुकूल प्रत्युत्तर देने में समर्थ हैं।
प्रो. सुरेन्द्र विक्रम का बालसाहित्य में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय प्रदेय बालसाहित्य समीक्षा के क्षेत्र में है। उन्होंने बालसाहित्य के लेखन और विकास-यात्रा को लेकर बहुत से महत्त्वपूर्ण आलेख लिखे हैं। बालसाहित्य के बहुत से महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों की समीक्षा की है। इधर कई वर्षों से लगातार केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, दिल्ली की वार्षिकी के लिए लंबे -लंबे आलेख हिन्दी बालसाहित्य की प्रकाशित पुस्तकों पर लिखते रहे हैं। उन्होंने बालसाहित्य की पत्रिकाओं की रचना सामग्री की गुणवत्ता पर आलेख लिखा है, बालसाहित्य की ऐतिहासिक सामग्री पर अपनी पैनी नजर रखते हुए उस पर विमर्शपरक परिसंवाद एवं चर्चा आयोजित की है, बालसाहित्य विषयक सेमिनार, संगोष्ठियों तथा सम्मेलनों में सहभागिता के माध्यम से उनकी गुणवत्ता, प्रासंगिकता एवं उपादेयता पर खुलकर बहसें की हैं। बालसाहित्य के रचनात्मक परिवेश एवं लचर लेखन पर ज्वलंत चर्चा और चिंताएँ प्रकट की हैं। हिन्दी बालसाहित्य के उपलब्ध कतिपय पूर्ववर्ती इतिहास ग्रंथों की तथ्यात्मक विश्लेषणात्मक सामग्री का गहन अध्ययन/ अवलोकन करते हुए उनके गुण- दोषों एवं त्रुटिपूर्ण तथ्यों का प्रासंगिक संदर्भों में विधिवत प्रमाणिक उल्लेख किया है। बालसाहित्य विषयक दलगत अकादमी स्वार्थ, गुटपरक आयोजनों की गगिरोहबंदी, बालसाहित्य पुरस्कारों की राजनीति का भरसक साहसिक प्रतिकार किया है। सुरेन्द्र विक्रम की अकादमिक चिंता बालसाहित्य का सृजनात्मक/ रचनात्मक लेखन, उसकी समीक्षा और बालसाहित्य के इतिहास विषयक सामग्री को लेकर रही है, जिनसे जुड़े अनेक पक्षों और उनसे उपजे बहुत से सवालों से वे निरंतर टकराते रहते हैं।
हिन्दी बालसाहित्य के क्षेत्र में परिमाण की दृष्टि से लेखन कार्य बहुत हुआ है। वह लेखन कार्य कविता और कहानी के क्षेत्र में प्रायः अधिक तथा अन्य विधाओं में अपेक्षाकृत कम हुआ है। कविता और कहानी की दृष्टि से भी गंभीरता से विचार करने पर परिमाणात्मक लेखन प्रभूत मात्रा में उपलब्ध होता है, पर गुणवत्ता की दृष्टि से बालसाहित्य में लेखन कार्य अपेक्षा के अनुरूप बहुत संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। इसका जो सबसे बड़ा कारण नजर आता है, उसमें एक तो अधिकतर बालसाहित्यकारों का बिना किसी अनुशासन को स्वीकार किए, अंकुशरहित स्वेच्छाचारिता के साथ, अपनी रुचि- अरुचि के अनुरूप उन्मुक्त भाव से नियमित परिमाणात्मक लेखन दूसरे बालसाहित्य के निकष पर उन रचनाओं को जाँचने- परखने के टूल्स के रूप में तटस्थ, वस्तुपरक, सम्यक् समीक्षा दृष्टि संवलित गंभीर आलोचना का अभाव। बालसाहित्य के नाम पर वर्तमान में जो विविधपक्षीय सर्जन हो रहा है, वह व्यापकता और परिमाणात्मक ढंग से संतोषजनक है, पर गुणवत्ता की दृष्टि से उस पर सवालिया निशान हमेशा लगाए जाते रहे हैं। ऐसे लेखन सर्जन की पहचान और परख के क्रम में समीक्षकों/ आलोचकों की तटस्थपरक मूल्यांकन दृष्टि का इस ओर गंभीरता और सही ढंग से न उठना एक खटकने वाला बिन्दु कहा जाना चाहिए। तथ्य यह है कि आलोचना किसी रचना के लिए प्राणतत्त्व है, जिसके अभाव में रचना का वैशिष्ट्य प्रकट ही नहीं हो सकता, तो यही कहना पड़ेगा की बालसाहित्य समीक्षा को लेकर गंभीर प्रयास बहुत समय तक नहीं किए गए। परवर्ती समय में गुण- दोष विवेचन के क्रम में जो भी प्रयास सामने आए, उसे पर्याप्त नहीं कहे जा सकते। हालांकि अनेक दृष्टियों से उनका अपना अलग महत्त्व और उपयोग है। बालसाहित्य की इस समस्या के क्रम में चिंतित तो हम सब होते हैं, पर इस अभाव की पूर्ति के लिए ठोस प्रयास किए जाने चाहिए।
डॉ. सुरेन्द्र विक्रम बालसाहित्य विषयक लेखन से बाखबर रहने वाले उल्लेखनीय साहित्यकार हैं, जिनका लेखन विविधपक्षीय होने के साथ -साथ बहुआयामी भी है। बालसाहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अपना एक निश्चित स्थान रचनात्मक तथा समीक्षात्मक दोनों में बनाया है। बालसाहित्य में यह स्थान उन्होंने अपनी अकादमिक परिश्रम से बनाया है, जो श्लाघनीय, सराहनीय एवं प्रशंसनीय है तथा बालसाहित्य के नवजात रचनाकारों के लिए प्रेरक भी है। इसलिए मेरी दृष्टि में उनके योगदान को देखते हुए यह कहा जाना बड़ा प्रासंगिक है कि--
हुजुमे- बुलबुल हुआ चमन में किया जो गुल ने जमाल पैदा।
कमी नहीं कद्रदाँ की 'अकबर' करे तो कोई कमाल पैदा।।
- प्रो. शंभुनाथ तिवारी
Hindi Balsahitya Samiksha ke Nikash Par
हिन्दी बालसाहित्य समीक्षा के निकष पर
अनुक्रमणिका;
भूमिका
अपनी बात
- भूतों का मैकडोनलः नासिरा शर्मा
- बिन्नी बुआ का बिल्ला : दिव्या माथुर
- पाँच बालकहानियाँ : ममता कालिया
- मौत के चंगुल में : प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव
- सपनों को उड़ान दो: डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल
- उद्घांत का बालसाहित्यः रमाकांत शर्मा
- रोशनी के पंखः सुधा भार्गव
- हरा समुंदर गोपी चंदर : डॉ. अजय जनमेजय
- माया का रहस्यमयी टीला : शील कौशिक
- भले-भूतों की कहानियाँ : समीर गांगुली
- अकाल में रोटीः शीला पाण्डेय
- सुनो डाकिए भाई : बालस्वरूप राही
- पहाड़ी के उस पार : डॉ. अरशद खान
- घुग्घी क्यों रोती है : प्रताप सहगल
- मोबाइल में गाँव : सुधा आदेश
- मेरा प्यारा हिन्दुस्तान : डॉ. संगीता बलवंत
- 151 बालकविताएँ : रमेश कौशिक
- शुभू का स्कूल : सौम्या पाण्डेय 'पूर्ति'
- जादुई अँगूठी : मंजरी शुक्ला
- सीक्रेट कोड और अन्य कहानियाँ : सुमन बाजपेयी
- हाथिस्तान-गजप्रलय की आहट प्रांजल सक्सेना
- हमारी भी सुनो : अलका प्रमोद
- मेरे प्रिय बाल नाटक: भगवती प्रसाद द्विवेदी
- सीधी राह चलता रहा: द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी
- लौट आओ नीनो : डॉ. अरविन्द दुबे
- मदद वाले हाथ डॉ. रंजना जायसवाल
- बुलबुल का घोंसला : डॉ. मंजुलता श्रीवास्तव
- मिशन 02: रमाशंकर
- गूँगी गुड़िया : इन्दिरा त्रिवेदी
- चिड़िया चली चाँद के देश: चन्द्रपाल सिंह यादव 'मयंक'
- एक बटे बारह : सुशील शुक्ल
- प्रकृति के पंख : स्मिता श्रीवास्तव
- अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो : किरण सिंह
- नटखट बचपन : रेनू सैनी
- गनेसी की दीवाली: डॉ. साजिद खान
- हँसमुख हाथी की होली : राजेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव
- भय का भूत : दिनेश प्रताप सिंह 'चित्रेश'
- श्रेष्ठ बालकहानियाँ (भाग 1-2): रूपसिंह चंदेल
- उल्लू और काला चश्माः डॉ. मधु पंत
- तुर्रम : कमलेश भट्ट कमल
- सरहद के उस पार : पद्मा चौगाँवकर
- हम हैं किससे कम : सूर्यकुमार पांडेय
- डॉ. कामना सिंह के कोरोना पर आधारित पाँच बालउपन्यास
- पूछ रही है चिया : डॉ. ओम निश्चल
- आ जारी निंदिया : प्रो. उषा यादव
- माँ की महक व अन्य कहानियाँ : विनायक
- नाचू के रंग : गोविन्द शर्मा
- मेरे प्यारे-प्यारे शिशु गीत : विष्णुकांत पांडेय
- मुट्ठी में है लाल गुलालः प्रभुदयाल श्रीवास्तव
- मस्तानों की टोली: डॉ. विमला भंडारी
हिन्दी बालसाहित्य की गुणवत्ता और प्रासंगिकता उसके निष्पक्ष मूल्यांकन पर निर्भर है। यही संदेश यह कृति “हिन्दी बालसाहित्य समीक्षा के निकष पर” पाठकों तक पहुँचाती है।
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