Discover Prabhudayal Srivastava’s touching children’s poem “Amma ki Pyari Baton Ko”, reflecting on the journey from letters and landlines to mobile phones, and the everlasting love of a mother’s words.
Amma ki Pyari Baton Ko
मुट्ठी में है लाल गुलाल (121 बाल कविताएँ) से प्रभुदयाल श्रीवास्तव की यह बाल कविता हमें उस दौर की याद दिलाती है जब संचार के साधन सीमित थे और माँ की बातें खतों और टेलीफोन की घंटियों में सिमट जाया करती थीं। प्रभुदयाल श्रीवास्तव की सहज और भावपूर्ण शैली में यह रचना तकनीकी बदलाव के साथ बीते पलों और माँ की प्यारी स्मृतियों को जीवंत कर देती है।
भावनात्मक हिंदी बाल कविता
अम्मा की प्यारी बातों को
नहीं बहुत दिन अभी हुए है,
मोबाइल जब नहीं बने थे।
लैंडलाइन कहलाने वाले,
ही बस टेलीफोन लगे थे।
एक्सचेंज को नंबर देते,
कहते इस पर बात कराओ।
उत्तर मिलता 'लाइन व्यस्त है',
रुककर ज़रा देर में आओ।
बाहर आने-जाने वाले,
फोन सभी ट्रंकॉल कहाते।
कभी-कभी तो घंटों-हफ्तों,
में भी, बात नहीं कर पाते।
अगर बात हो बहुत ज़रूरी,
तो अर्जेंट फोन लगवाते ।
बात तुरत करवाने वाले,
फोन लाइटनिंग कॉल कहाते।
लगा लाइटनिंग कॉल यदि तो,
पैसा आठ गुना लगता था।
टेलीफोन लगाने वाले,
का चेहरा उतरा दिखता था।
किंतु हाय अब हर हाथों में,
घर-घर में भी मोबाइल है।
बूढ़े-बच्चे-युवक सभी अब,
मोबाइलजी के कायल है।
पलभर में ही बात जगत के,
कोने-कोने से हो जाती।
फोन लगाने-सुनने वाले,
की फोटो भी अब दिख जाती।
जब पढ़ते थे आठ दिनों में,
अम्मा के थे ख़त आ पाते।
काश! तभी मोबाइल होते,
हम उनसे हर दिन बतियाते ।
ये सब साधन पहले होते,
अम्मा वाला टेप लगाते ।
अम्मा कि प्यारी बातों को,
काश! आज हम फिर सुन पाते।
- प्रभुदयाल श्रीवास्तव
प्रभुदयाल श्रीवास्तव की यह बाल कविता हमें संचार साधनों की यात्रा के साथ-साथ माँ की ममता और स्नेह की अनमोल यादों से जोड़ती है। बदलते समय और आधुनिक तकनीक के बावजूद माँ की प्यारी बातें हमेशा दिल में जीवित रहती हैं, जिन्हें कोई साधन प्रतिस्थापित नहीं कर सकता।
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