हरिवंशराय बच्चन और उनका बाल साहित्य में योगदान

Dr. Mulla Adam Ali
0

Dr. Harivansh Rai Bachchan, known for his profound poetry, also created delightful verses for children. Collections like Janm Din Ki Bhet, Neeli Chidiya, and Bandar Baat reflect his warmth, imagination, and love for the world of childhood.

Legacy of Harivansh Rai Bachchan in Children’s Literature

बच्चों के लिए बच्चन

डॉ. हरिवंशराय बच्चन का बालसाहित्य

डॉ. हरिवंशराय बच्चन गंभीर कविताओं के लिए प्रसिद्ध रहे, लेकिन उन्होंने बच्चों के लिए भी सुंदर और मनोरंजक रचनाएँ लिखीं। उनकी कविताओं में तितली, चिड़िया, बंदर, हाथी जैसे प्रिय पात्र मिलते हैं जो बच्चों को कल्पना, आनंद और सीख से भर देते हैं। ‘जन्मदिन की भेंट’, ‘नीली चिड़िया’ और ‘बंदर बाँट’ जैसे उनके संग्रह यह बताते हैं कि बच्चन जी ने बच्चों की दुनिया को गहराई से समझा और उनके लिए स्नेह व अपनापन से भरा साहित्य रचा।

बच्चों के लिए बच्चन

हम नन्हें-मुन्ने हो चाहे, पर नहीं किसी से कम

आकाश तले जो फूल खिलें, वे फूल बनेंगे हम।

यह ऊँच-नीच क्या है?

यह जात-पाँत क्या है?

दीवार उठाने से

तो साथ छूटता है।

आँधी में भी उड़ता रहता, इंसाफ़ बना परचम

इंकार करे संसार भले, इंसान बनेंगे हम।।- वीरेन्द्र मिश्र: पराग (मासिक) 1966 पृष्ठ 37

    उपर्युक्त पंक्तियाँ इस बात की साक्षी हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, मगर इंसान को अपनी इंसानियत का परचम अवश्य फहराना चाहिए। इंसाफ़ फिल्म का मुखड़ा अपने समय में बड़ा लोकप्रिय हुआ था जिसमें कहा गया था कि-

इंसान से इंसान का हो भाई-चारा, यही पैगाम हमारा।

    आज के बच्चे कल के नए भारत की तकदीर हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि बालसाहित्यकार अपनी रचनाओं में ऐसी भावनाओं का बीजारोपण करें जिसे पढ़कर बच्चों में अच्छे संस्कारों का उदय हो। सुप्रसिद्ध बालसाहित्यकार निरंकार देव सेवक ने बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही थी कि-

    "आज का बालक भविष्य में जिस समाज का अंग होगा, वह एक ऐसा विश्व मानव समाज होगा जिसमें जाति, देशों के रूप में, मानव-मन की कल्पित सीमाओं के लिए स्थान की न रह जाएगा। अब भी यदि हमारे कवि, बच्चों को राष्ट्रीयता के नाम पर प्राचीन परंपरागत संकीर्णताओं और संसार के मनुष्यों में बैर-विरोध की भावनाओं को बढ़ाने वाले बालगीतों के बजाय, विश्व नागरिक बनने की प्रेरणा देने वाले बालगीत रचकर नहीं देंगे तो वे बड़े होकर उनका कुछ भी अहसान नहीं मानेंगे।

    उनके लिए अब तक के रचे बड़ों के बालगीत, समय की हवा के साथ उड़ जाएँगे और भविष्य के बच्चे उन्हें गैस के गुब्बारों की तरह उड़ता देखकर भी खेलने के लिए पकड़ने का प्रयत्न नहीं करेंगे। जब उन्हें खेल-खेल में अंतरिक्ष तक उड़ने-उड़ाने के लिए असली वायुयान, राकेट और अंतरिक्षयान मिलने लगेंगे तो वे इन ज़रा सा में फट जाने वाले नकली गुब्बारों को लेकर क्या करेंगे।" - हरिकृष्ण देवसरे : बालसाहित्य के सरोकार :पृष्ठ 49

     यह कथन इसलिए भी प्रासंगिक है कि बच्चों की दुनिया में ऐसी बहुत सी चीजें आती-जाती रहती हैं जिन्हें वे छोड़ते और ग्रहण करते रहते हैं, मगर उनके लिए रचा गया साहित्य चिरस्थाई होता है जिससे वे लंबे समय तक प्रेरणा ग्रहण करते रहते हैं। बड़ों के लिए विपुल मात्रा में साहित्य लिखकर दूर-दूर तक ख्याति अर्जित करने वाले डॉ. हरिवंशराय बच्चन को बालसाहित्य की याद भले ही देर से आई हो परंतु उन्होंने बाल साहित्य का सृजन करके बांग्ला के ख्यातिप्राप्त उन साहित्यकारों का स्मरण करा दिया जिन्होंने अपने जीवनकाल में बड़ों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी भरपूर मात्रा में उपयोगी और महत्त्वपूर्ण साहित्य का सृजन किया। बांग्ला में कोई भी रचनाकार तब तक बड़ा साहित्यकार कहलाने का अधिकारी नहीं है, जब तक वह भरपूर मात्रा में बच्चों के लिए साहित्य का सृजन नहीं कर लेता है। नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने बच्चों के लिए मनोरंजक और उपयोगी साहित्य लिखा है। सुकुमार राय के शिशुगीत बेजोड़ हैं, उनका आबोल-ताबोल आज भी रचनाधर्मिता की दृष्टि से मील का पत्थर बना हुआ है।

   डॉ. हरिवंशराय बच्चन की ख्याति मुख्य रूप से गंभीर रचनाकार के रूप में है, परंतु एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने सिर्फ बच्चों के लिए अपनी लेखनी चलाई। हाँ, यह अलग बात है कि उनकी बच्चों के लिए लिखी गई रचनाएँ तब प्रकाश में आईं, जब वे लेखन से लगभग संन्यास ले चुके थे। बालसाहित्य के प्रतिष्ठित समीक्षक निरंकारदेव सेवक ने डॉ. बच्चन का परिचय कराते हुए लिखा है-

    "अमिताभ जब बच्चे थे तो उन्होंने (डॉ. हरिवंशराय बच्चन) उनके लिए कुछ बालोपयोगी कविताएँ एक कॉपी पर लिख दी थीं। वह काॅपी कहीं खो गई। उसके बाद जब अमिताभ के बच्चे हो गए तो अपने नाती-पोतों के लिए कुछ लिखने की प्रेरणा उन्हें हुई। उनके बालगीतों के तीन संकलन 'जन्मदिन की भेंट, 'नीली चिड़िया' और 'बंदर बाँट' प्रकाशित हो चुके हैं। - बालगीत साहित्य: इतिहास एवं समीक्षा : संस्करण 1983: पृष्ठ 250

    यह बात बिल्कुल सच है कि बच्चन जी ने अपने पोते-पोतियों के लिए ही बालसाहित्य लिखा, परंतु आज उसका आनंद सारे देश के पोते-पोतियाँ उठा रहे हैं। उनके पोते-पोतियों को पढ़ने के लिए अच्छी रचनाएँ मिल सकें, इसके लिए बच्चन जी अपने परिचितों को बराबर पत्र लिखा करते थे थे । बच्चों के प्रिय कवि दामोदर अग्रवाल, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उनके शिष्य थे, को दि० 23 मई 1976 को लिखे एक पत्र में उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए लिखा था- "तुमने बच्चों के लिए कविताएँ लिखी थीं, धर्मयुग में कहीं मैंने उन्हें देखी थीं। अगर विशेष कष्ट न हो तो लिखकर मुझे भेज दो, मैं अपने पोते-पोतियों को सुनाऊँगा।"

हरिवंशराय बच्चन का बालसाहित्य

     बच्चन जी का मानना था कि बच्चों के लिए लिखने से पूर्व आवश्यक है कि हम पहले बच्चों को प्यार करना सीखें। उनके साथ खेलना-कूदना, हँसना-बोलना सीखें। वह बच्चों को तो प्यार करते ही थे, पशु-पक्षियों से भी उनका असीम स्नेह था। उन्होंने अपनी एक कविता में इस तथ्य का उजागर भी किया है-

   मैंने चिड़िया से कहा कहा -'मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ।' 

चिड़िया ने मुझसे पूछा -' तुम्हारे शब्दों में मेरे परों की रंगीनी है।' 

मैंने कहा - - 'नहीं' 

'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है।' 

'नहीं' 

'तुम्हारे शब्दों में में मेरे डैनों की उड़ान है।' 

'नहीं' 

'जान है '

' नहीं '

' तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे' 

मैंने कहा--' पर तुमसे मुझे प्यार है। '

     नौ खंडों में प्रकाशित बच्चन रचनावली का संपादन करते हुए उनके प्रिय शिष्य डाॅ. अजित कुमार ने लिखा है- "बच्चों के लिए लिखी कविताएँ उस समय प्रकाश में आईं, जब गंभीरतर लेखन से बच्चन जी ने एक तरह से संन्यास ले लिया था। बच्चों को संबोधित रचनाएँ यदि वयोवृद्ध कवि के स्नेह-वात्सल्य की अभिव्यक्तियाँ हैं, तो कहानियाँ तरुण कवि के सोच-सरोकार को झलकाती हैं।" - बच्चन रचनावली : खण्ड 9: पृष्ठ 9

  'जन्मदिन की भेंट' पुस्तक में डॉ. बच्चन की 11 बाल कविताएँ संकलित की गई है। इसका प्रथम प्रकाशन सन् 1978 में राजपाल एंड संस, दिल्ली से हुआ था। इसके समर्पण में उनके परिवार की झलक देखने को मिलती है-

चिरंजीव श्वेता की

चौथी वर्षगांठ अथवा पाँचवे जन्मदिन पर

श्वेता बच्चन 

नीलिमा बच्चन 

अभिषेक बच्चन 

नम्रता बच्चन

नयना बच्चन 

और पिंकी आशु

को 

दादाजी के 

आशीष-प्यार के साथ...........

'जन्मदिन की भेंट' संग्रह की कविताएँ इस प्रकार हैं :- नया सवेरा, चिड़िया का घर, तितली रानी, काठ का घोड़ा भैंस, हाथी दादा, गुब्बारे, सागर की लहर, मछुआरा, बंदर-बंदरिया और तारे। 

     हाथी-घोड़ा, बंदर-भालू, फूल-पौधे, तितली-कोयल हमेशा से बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। इनको केंद्र में रखकर अनेक कविताएँ भी लिखी गई हैं, परंतु बच्चन जी ने तितली का फूल से रंग चुराकर अपने पंखों में सजाने की जो कल्पना की है, वह निश्चित रूप से अद्भुत है। ऐसी कल्पना से आप भी रूबरू होइए-

बड़ी सयानी/ तितली रानी

फूल - फूल पर जाती है। 

फूल - फूल से /रंग चुराकर 

अपने पंख सजाती है। 

बड़ी सयानी /तितली रानी

मेरा मन ललचाती है। 

जब मैं उसे /पकड़ने जाता

इधर-उधर उड़ जाती जाती है।

     इस संग्रह की अन्य कविताओं में जहाँ बालमनोविज्ञान के अद्भुत पकड़ है, वही इनमें भरपूर मनोरंजक तत्त्व भी विद्यमान हैं। कुछ रचनाएँ बातचीत-शैली में भी प्रस्तुत की गई हैं, जिनमें नितांत अपनापन का बोध होता है। बच्चों की बात उन्हीं की शैली में कहना एक कला है, कब, कौन-सा बच्चा क्या सोचता है, उसके मन की की बात पकड़ना आसान नहीं है। यह श्रमसाध्य कार्य है तथा इस कार्य में बच्चन जी को महारत हासिल है। उनकी एक ऐसी ही कविता देखिए-

माँ जब सूरज ढल जाता है

अँधियारा छा जाता है 

आसमान में जगमग-जगमग 

दीवे कौन जलाता है। 


रात बीतने पर सपनों की 

जो सूरज चमकाता है। 

जो सोने-चाँदी की किरणें 

धरती पर फैलाता है। 


वह सूरज जब ढल जाता है 

अँधियारा छा जाता है। 

आसमान में जगमग-जगमग 

दीवे लाख जलाता है।

      उपर्युक्त कविता में बच्चन जी ने सोने-चाँदी की किरणों की कल्पना की है। उनकी अपनी मछुआरा कविता में भी मछेरिन द्वारा सोने-चाँदी की मछली रखकर घर ले जाने की कल्पना अद्भुत है। मैं इसे बच्चन जी की व्यक्तिगत उपलब्धि मानता हूँ। उन्होंने नए बिंब का प्रयोग करके कविता में चार चाँद लगा दिया है। उनकी सागर कविता में भी लहरों की मोती की झालर से तुलना अलौकिक है-

हर- हर - हर - हर हहर - हहर 

ऊँची- उठती लहर - लहर । 

ऐसी लगती दूरी पर 

जैसी मोती की झालर। 


झालर आती-जाती पास पास 

मन में बँधती जाती आस। 

मोती मैं चुन लाऊँगी 

घर पर हार बनाऊँगी।

    'नीली चिड़िया' की रचनाएँ थोड़े बड़े बच्चों को दृष्टि में रखकर लिखी गई है। इस संग्रह में नीली चिड़िया, बगुले और मछलियाँ, मोर, बगुलों की पाँत, रेल, गिलहरी का घर, चमगादड़, दादाजी की चिड़िया, सबसे पहले और कोयल शीर्षक से रचनाएँ दी गई हैं। इनकी भाषा-शैली बहुत ही प्रभावशाली है तथा इनमें रोचकता का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है। 'बगुले और मछलियाँ' कविता पढ़ते हुए पद्यकथा का आनंद आता है-

बगुलों ने ऊपर देखा/ नीचे फैला छिछला पानी। 

उस पानी में कई मछलियाँ /तिरती फिरती थीं मनमानी।

सातों अपने पर फड़काते/उस पानी पर उतर पड़े। 

अपनी लंबी-लंबी टाँगों / पर सातों हो गए खड़े। 

खड़े हो गए सातों बगुले /पानी बीच लगाकर ध्यान।  

कौन खड़ा है घात लगाए /नहीं मछलियाँ पाईं जान। 

तिरती-फिरती हुईं मछलियाँ /ज्योंहि पहुँची उनके पास। 

उन सातों ने सात मछलियाँ /अपनी चोंचों में ली फाँस।

पर फड़काकर ऊपर उठकर/ उड़े बनाते एक लकीर। 

सातों बगुले ऐसे जैसे / आसमान में छूटा तीर। 

    इसमें बगुलों का लकीर बनाकर उड़ना तो आकाश में दिखाई देता है, परंतु उनसे तीर की तुलना बच्चन जी की उर्वर कल्पना का परिचायक है।

      बच्चों की दुनिया, बड़ों की दुनिया से सर्वथा भिन्न होती है, उनकी कल्पनाएँ, उनका परिवेश और उनकी सोच बड़ों से बिल्कुल भिन्न होती है। ऐसे में बालसाहित्य के रचनाकार को बहुत सजग और सचेत रहना पड़ता है। यह सजगता बच्चन जी की बालकविताओं में जगह-जगह देखने को मिलती है। उनकी चमगादड़ कविता में उसकी प्रकृति ही नहीं, उसका पूरा कलेवर उभरकर सामने आ गया है-

चूहे सा होता चमगादड़ /लगे पीठ से होते डैने। 

चोंच न होती उसके मुँह में /दाँत बड़े होते हैं पैने। 

उसके डैने ऐसे होते /जैसे आधा होता छाता। 

उसकी टाँगें ऐसी होतीं / जिस पर बैठ नहीं वह पाता। 

टाँगों में कटिया-सी होती /अटका जिन्हें लटक वह जाता।

उड़ते-उड़ते, उड़ते कीड़ों /और मकोड़ों को वह खाता।

रात अँधेरी जब कट जाती/ जब उजियाला सब पर छाता।

किसी अँधेरी जगह लटककर / उल्टा चमगादड़ सो जाता। 

   तीसरे संग्रह 'बंदरबाँट' में कविताओं के द्वारा छोटी-छोटी कहानियाँ दी गई हैं। कुछ कथाएँ पंचतंत्र से ली गई हैं, परंतु कुछ नितांत मौलिक और नए विचारों का सूत्रपात करने वाली हैं। इनमें उपदेश नहीं है, बल्कि यथार्थ की मजबूत पकड़ है। इस संग्रह का काव्यमय समर्पण अभिषेक बच्चन के लिए है:-

प्रिय अभिषेक /जन्मदिन पर लो/ बहुत बधाई प्यार/  

यह शुभ प्रात/ सुदिन/ सुख- संध्या /आए बारंबार।

     इस संग्रह की कविताएँ हैं :- चंचल तितली, गिदगिदान, हंस, काला कौआ, लालची बंदर, कछुआ और खरगोश, खट्टे अंगूर, प्यासा कौआ तथा ऊँट गाड़ी। 

   बच्चन जी ने इसमें 'गिरगिट' के लिए एक नए शब्द 'गिदगिदान' का प्रयोग किया है तथा उसे 'बिस्तुइया' का दादा की संज्ञा के नवाजा है। कविता देखिए-

एक बड़ा सा गिदगिदान जो /रोज 'लाॅन' में आता है। 

मुझको ऐसा लगता जैसे /बिस्तुइया का दादा है। 

कीड़े और मकोड़े जो भी /भाषा चट कर जाता है। 

कभी झुकाता नीचे को सिर /ऊपर कभी उठाता है। 

इसी घास पर पंजों के बल/ जल्दी-जल्दी चलता है। 

रुकता थोड़ी देर जहाँ पर /अपना रंग बदलता है। 

समय-समय जो रंग बदलते /गिदगिदान कहलाते हैं। 

उनके पीछे चलने वाले / अक्सर धोखा खाते हैं।

     इसी संग्रह में 'लालची बंदर' की कथा सुनाते-सुनाते बच्चन जी अभिषेक और श्वेता से प्रश्न कर बैठते हैं। इससे ऐसा लगता है कि बच्चन जी उन्हें निरंतर कविताएँ/ कहानियाँ सुनाया करते थे-

अब खुद सोच तुम्हीं सकते हो 

बंदर पर जो कुछ बीती। 

श्वेता औ' अभिषेक बताओ 

बंदर ने क्या गलती की?

    पुस्तक के अंत में 'बंदर बाँट' शीर्षक से एक बालनाटिका दी गई है। नाटिका की कथा परंपरागत है, परंतु बच्चन जी ने इसे अपनी रोचक शैली में पठनीय बना दिया है। नाटिका के अंत में पश्चाताप करती हुई बिल्लियाँ कहती हैं-

 आपस में झगड़ा कर बैठीं

 बुद्धि अपनी खोटी। 

अब पछताने से क्या होता

 बंदर हड़पा रोटी।

      इस प्रकार हम देखते हैं कि डॉ. हरिवंशराय बच्चन ने बच्चों के लिए जो कुछ भी साहित्य लिखा है, उसमें परंपरागत विषयों के साथ आधुनिकता का भी बराबर का पुट है। उनका बाल साहित्य सृजन भले ही पारिवारिक माहौल की देन है परंतु उसमें समग्र बच्चों का विकास अंतर्निहित है। उनके बालसाहित्य में बच्चों की जिज्ञासाएँ भी हैं और जगह-जगह उनका समाहार भी है। मूलतः अंग्रेज़ी के विद्वान और स्काॅलर रहे बच्चन जी ने फिलिप एटनबरो को अवश्य पढ़ा होगा जिन्होंने बालसाहित्यकारों को सृजन से पहले सावधान किया था कि- "यदि आज के बालसाहित्य में बच्चों को अपनी नई जिज्ञासाओं, समस्याओं और प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते हैं तो वे निराश होंगे और यह बालसाहित्य के लिए आत्मघाती बात होगी।"

- प्रो. सुरेन्द्र विक्रम

ये भी पढ़ें; सोहनलाल द्विवेदी का बाल साहित्य सृजन

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top