The poem “Nadiya Kahaan Chali?” by Dr. Faheem Ahmad beautifully highlights the importance of rivers and water conservation. Through simple yet powerful verses, it inspires us to value every drop of water and protect our natural resources for a better future.
"Where Has the River Gone? – A Poem on Water Conservation
जल संरक्षण पर प्रेरक कविता
डॉ. फहीम अहमद की यह भावपूर्ण कविता "नदिया कहां चली?" पानी के महत्व और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है। इसमें नदियों की जीवनदायिनी भूमिका, मानव की गलतियों और जल बचाने के संकल्प को सुंदर शब्दों में पिरोया गया है। यह कविता हमें जल संरक्षण और स्वच्छता की दिशा में प्रेरित करती है।
नदिया कहां चली?
बोल अरी ओ कल कल करती
नदिया कहां चली ?
पानी का भंडार संजोए
जाने कितनी धार संजोए ।
अपने आंचल में धरती का
मीठा -मीठा प्यार संजोए ।
बोल कहां मम्मी हैं तेरी
जिनकी गोद पली ?
नदिया कहां चली ?
पशु पक्षी सब जीवन पाते,
जंगल तुझसे ही हरियाते।
खेतों की तू जीवनदाता,
जन जन सब तेरे गुण गाते।
कुदरत के हसीन रंगों में,
तू हर रोज़ ढली।
नदिया कहां चली ?
लेकर पानी के फव्वारे
आ जाओ तुम शहर हमारे ।
तीन दिनों से नल न आया
बून्द -बून्द को तरसे सारे।
देख तुम्हे खुश हो जाएगी
तब हर एक गली।
नदिया कहां चली ?
लोग मांगते पानी -पानी
असली कीमत अब है जानी।
पानी जो बरबाद किया है
सबने अपनी गलती मानी।
करके दूर मुसीबत बन जा
नदिया बड़ी भली।
नदिया कहां चली ?
हम सबको यह समझाएंगे,
नहीं गंदगी फैलाएंगे।
नदिया साफ रहेगी तो फिर,
नवजीवन हम सब पाएंगे।
हमने यह संकल्प लिया है,
आंखों में उम्मीद पली।
नदिया कहां चली ?
- डॉ. फहीम अहमद
डॉ. फहीम अहमद की कविता "नदिया कहां चली?" हमें यह सिखाती है कि जल ही जीवन है और इसका संरक्षण हम सबकी जिम्मेदारी है। नदियों की स्वच्छता और पानी की बचत से ही आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित रह पाएंगी। यह कविता हमें जागरूक करती है कि यदि हम जल को बचाएंगे, तभी प्रकृति मुस्कुराएगी और जीवन हरा-भरा रहेगा।
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