विश्व स्तर पर हिंदी की स्थिति एवं गति

Dr. Mulla Adam Ali
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Increasing popularity of Hindi in the world : Hindi Diwas

Increasing popularity of Hindi in the world

Hindi Bhasha Ke Badhte Kadam

विश्व स्तर पर हिंदी की स्थिति एवं गति

आज कुछ स्वार्थी राजनीतिक नेताओं के कारण हिंदी भारत देश की, राष्ट्रभाषा नहीं बन पा रही है। परंतु हिंदी संपर्क भाषा के रूप में सरकारी, गैरसरकारी एवं आम जनता की स्तर पर पूर्णतः प्रतिष्ठित हो चुकी है। हिंदी भारत देश की जनमानस की भाषा है। सिर्फ हिंदी प्रदेशों की ही नहीं अपितु पूरे भारत देश के अंग-अंग की भाषा बनेगी। कोई इस भाषा से अछूता नहीं रहेगा। वह शासन के नियमों, उपनियमों, अध्यादेशा आदि बातों के सीमाओं में नहीं बंद होगी। वह समूचे देश की अभिव्यक्ति का माध्यम बनेगी। जहाँ तक आम जनता के स्तर पर उसके प्रयोग एवं व्यवहार का सवाल है, उस संदर्भ में आज निसंकोच रूप में कहा जा सकता है कि हिंदी पूरे देश में अध्ययन, अध्यापन, अनुसंधान और व्यवहार की दृष्टि में भारी मात्रा में उपयोग में लाई जा रही है। कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, केरल तथा तमिलनाडु आदि राज्यों में हिंदी का प्रचार-प्रसार जोरों से हो रहा है। इसमें मीडिया का भी बहुत बड़ा योगदान है। इसके अलावा महाराष्ट्र, बंगाल, ओड़िशा, अरुणाचल प्रदेश, आसाम, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नागालैंड, कश्मीर आदि अहिंदी राज्यों में हिंदी का प्रयोग औपचारिक और अनौपचारिक दोनों स्तरों पर हो रहा है। हिंदी के प्रचार- प्रसार में इन राज्यों में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा, केंद्रीय निदेशालय, महाराष्ट्र में महाराष्ट्र हिंदी परिषद आदि का कार्य हिंदी के प्रचार-प्रसार में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन संस्थाओं के माध्यम से हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार का कार्य तो हो रहा है, इसके साथ-साथ अनुसंधान तथा अनुवाद का कार्य भी भारी मात्रा में हो रहा है। देश के अहिंदी क्षेत्रों के छात्रों के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय की ओर से अनेक योजनाएँ कार्यान्वित हैं। जिनमें छात्र अध्ययन यात्रा, नवलेखक शिविर, अहिंदी भाषी लेखकों के लिए अनुदान, पुरस्कार आदि इन योजनाओं के माध्यम अहिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

वर्तमान परिवेश में हिंदी के प्रचार-प्रसार में मीडिया और बॉलीवुड का बहुत बडा योगदान रहा है । भारत के लगभग 80 प्रतिशत चैनल हिंदी भाषा के हैं। वहीं दूसरी ओर बॉलीवुड ने तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अपना दबदबा कायम रखा है। दक्षिण के अनेक फिल्म हिंदी के डबींग हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हिंदी के अनेक फिल्म तमिल, तेलगु, मल्यालम्, कन्नड आदि प्रादेशिक भाषाओं में डबिंग हो रहे हैं। अतः मीडियाँ एवं बॉलीवुड हिंदी के माध्यम से दक्षिण और उत्तर को जोडने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी : Hindi in International Level

आज हिंदी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना चुकी है। वह विश्व में कंप्यूटर की दूसरे नंबर की भाषा बन चुकी है। फिर भी वह स्थान नहीं बन पाया है, जो बनना चाहिए था। इसके लिए जिम्मेदार अपने देश के ही कुछ राजनीतिक लोग है, जो अपनी स्वार्थ की रोटी सेंकने के लिए सामान्य जनता को भाषा के नाम पर बाँट रहे हैं। अगर हिंदी राष्ट्रभाषा होती तो अबतक विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित हो चुकी होती। फिर भी हिंदी विश्वभाषा के रूप में स्थापित होने की प्रक्रिया से तेजी से गुजर रही है। आज मॉरीशस, फीजी, त्रिनीदाद, सूरीनाम, गुयाना, अमेरिका, रूस, जर्मनी, ब्रिटन, फ्रांस, तुर्की, नीदरलैंड, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका के प्रमुख देशों, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका आदि देशों में हिंदी का स्तर काफी बढ़ रहा है। इसके संदर्भ में त्रिभुवननाथ शुक्ल लिखते हैं, "इसके दो कारण है, एक विश्व स्तर पर प्रवासी भारतीयों का होना और उनके द्वारा अपनी मातृभाषा हिंदी के लिए कुछ न कुछ करते रहने का स्वभाव। दूसरा है – विभिन्न देशों - द्वारा भारत और भारत की संस्कृति की ओर उन्मुख होना और भारती विद्या के रूप में हिंदी तथा संस्कृत को भी स्थापित करना।" विदेश में हिंदी भाषा का प्रयोग विदेशी भाषा के रूप में काफी मात्रा में हो रहा है। विश्व स्तर पर हिंदी की क्या स्थिति है, इस पर नजर डालना आवश्यक है।

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मॉरीशस में हिंदी की स्थिति : Hindi in Mauritius

मॉरीशस में भारी मात्रा में हिंदी का प्रयोग होता है। वहाँ के संसद की दूसरे नंबर की भाषा हिंदी है। अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान आदि क्षेत्रों में हिंदी का भारी मात्रा में प्रयोग किया जा रहा है। मॉरीशस में भारतीय लोगों की संख्या भारी मात्रा में होने के कारण वहाँ हिंदी का रूप स्थिर हो चुका है। यहाँ पर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की संख्या अधिक दिखाई देती है। इसी के परिणाम के चलते वहाँ हिंदी बोलनेवाले लोगों की संख्या अधिक है। "सन 1965 की जनगणनानुसार यहाँ कुल 7,82,044 लोगों में 5,06,552 भारतीय, 24,776 चीनी तथा 2,008 अन्य मूल के लोग थे।" यहाँ पर भारतीयों की संख्या अधिक होने के कारण हिंदी का विकास तेजी से हुआ है।

त्रिनीदाद में हिंदी की स्थिति : Hindi in Trinidad

त्रिनीदाद में हिंदी सेवी संस्थाओं एवं प्रवासी भारतीयों के माध्यम से हिंदी का प्रचार-प्रसार काफी मात्रा में हो रहा है। वहाँ के भारतीयों की अभिव्यक्ति का माध्यम हिंदी बना हुआ है । आज त्रिनीदाद में हिंदी स्कूलों की स्थापना एवं हिंदी पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन एवं पठन हो रहा है। डॉ. त्रिलोचन पांडेय के मतानुसार "त्रिनीदाद में नियमित रूप से हिंदी प्रचार-प्रसार का कार्य सन् 1950 से प्रारंभ हुआ जिसके लिए इस समय चार संस्थाएँ प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है - 1) पंडित वर्ग की संस्थाएँ, 2) हिंदी एज्युकेशन बोर्ड, 3) भारतीय विद्या संस्थान, 4) हिंदी निधि।" 

गयाना में हिंदी की स्थिति : Hindi in Guyana

गयाना में हिंदी की कुल 100 पाठशालाएँ चलाई जाती है। यहाँ पर हिंदी की अनेक पत्रिकाएँ निकलती हैं। हिंदी के प्रचार-प्रसार में इन पत्रिकाओं का बहुत बड़ा योगदान है। इनमें आर्य ज्योति, आर्य समाज का पत्र, अमर ज्योति और ज्ञानदा आदि प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। गयाना में स्थित सूरीनामी हिंदी प्रचार सभा द्वारा हिंदी की अनेक परीक्षायें ली जाती है। हिंदी के अध्ययन एवं अध्यापन की व्यवस्था यहाँ पर मंदिरों माध्यम से किया जाता है। इसमें भोजपुरी, अवधी, मैथिली तथा अन्य क्षेत्रों से प्रवासी भारतियों का योगदान महत्वपूर्ण है।

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फीजी में हिंदी की स्थिति :Hindi in Fiji

अंग्रेजों के शासनकाल से ही फीजी देश में भारतीय लोगों का आना-जाना रहा है। काम और मजदूरी के उद्देश्य से अनेक भारतीयों ने फीजी में प्रवेश किया। ये लोग अपने साथ कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति और हिंदी भाषा को भी लेकर गए। आगे जाकर इन लोगों ने हिंदी को ही अपना संपर्क भाषा बनाया। इसके संदर्भ में डॉ. भोलानाथ तिवारी लिखते हैं, "फीजी हिंदी, मूलतः हिंदी का वह रूप है जो अनपढ़ भोजपुरी - भाषियों में 19 वीं सदी के अंतिम तथा बीसवीं सदी के प्रथम चरण में प्रचलित था।"

अमेरिका में हिंदी की स्थिति : Hindi in America 

विश्व की महाशक्ति अमेरिका में हिंदी का प्रचार-प्रसार जोरों से हो रहा है। अमेरिका में भारतीय संस्कृति के अनेक केंद्र स्थापित हो चुके हैं। इसके संदर्भ में डॉ. त्रिभुवननाथ शुक्ल लिखते हैं, “शिकागो, कैलिफोर्निया, विस्कॉन्सिन, कोलंबिया, पेन्सिलवेनिया, वाशिंगटन, टेक्सास, एवं वर्जीनिया, विश्वविद्यालय, क्ले अरमांट स्कूल ऑफ लैंग्वेज, अमेरिकन विश्वविद्यालय इलिनॉय विश्वविद्यालय, लांगवीच कॉट्रमेज, मिशीगन विश्वविद्यालय आदि जगहों पर हिंदी का अध्ययन अध्यापन हो रहा है।"

इसके अतिरिक्त वर्जीनिया का 'अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति (1980)' तथा वहाँ से प्रकाशित होनेवाली 'विश्वभारती', 'संगम' और 'जीवन ज्योति' आदि पत्रिकाओं का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा कनाडा, मेक्सिको, अर्जेंटिना, कोलंबिया, ब्राजील, चिली आदि देशों में भी हिंदी का प्रचार-प्रसार हो रहा है।

रूस में हिंदी की स्थिति : Hindi in Russia 

रूस में हिंदी की स्थिति प्रगति पथ पर है। भारत और रूस के राजनीतिक, सांस्कृतिक संबंध दृढ़ होने के कारण हिंदी का प्रचार-प्रसार काफी मात्रा में वहाँ के मास्को विश्वविद्यालय, लेनिनग्राद हुआ है। विश्वविद्यालय, अंतर्राष्ट्रीय संबंध संस्थान मास्को, जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र, भारतीय दूतावास मास्को हिंदी प्रसारण सेवा, हिंदी प्रसारण सेवा, हिंदी समाचार पत्र आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत के डॉ. राहुल सांकृत्यायन जैसे अनेक लेखकों ने वहाँ पर अध्यापन एवं अनुसंधान भी किया है।

लंदन में हिंदी की स्थिति : Hindi in London 

लंदन में व्यवसाय एवं नौकरी के कारण लाखों भारतीय जीवनयापन करते हैं। लाखों की तादाद में प्रवासी भारतीय होने के कारण वहाँ पर हिन्दी की स्थिति प्रगति पथ पर है। लंदन में अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी का पीएच.डी. तक का अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान का कार्य जोरों से होता है।

कनाडा में हिंदी की स्थिति : Hindi in Canada 

कनाडा में हिंदी की स्थिति प्रशंसनीय है। यहाँ के सभी विश्वविद्यालयों में हिंदी की अध्ययन अध्यापन की व्यवस्था अच्छी है। संस्थाओं के स्तर पर हिंदी परिषद, हिंदी लिटरेरी सोसाइटी ऑफ गल्फ आदि प्रमुख हैं।

इन प्रमुख देशों के अतिरिक्त जर्मनी, नीदरलैंड, फ्रांस, तुर्की आदि देशों में हिंदी की स्थिति प्रशंसनीय है। देश विदेशों के साथ भारत के पड़ोसी देशों में भी हिंदी की स्थिति अच्छी है।

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नेपाल में हिंदी की स्थिति : Hindi in Nepal 

नेपाल में हिंदी के साथ-साथ हिंदी भाषा को प्राथमिकता दिया गया है। नेपाल का पूरा जनमानस हिंदीमय है। वहाँ प्राथमिक, माध्यमिक, स्नातक, स्नातकोत्तर एवं एम्.फिल., पीएच्.डी आदि स्तरों पर हिंदी का अध्ययन-अध्यापन एवं अनुसंधान कार्य होता है। इसमें त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भूटान में हिंदी की स्थिति : Hindi in Bhutan 

भूटान में अनेक हिंदी प्रेमी एवं स्वयंसेवकों द्वारा हिंदी का प्रचार-प्रसार जोरों से किया जा रहा है। परिणाम के चलते विश्वविद्यालय के स्तरों पर भी हिंदी भाषा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए भारत सरकार द्वारा सहयोग दिया जा रहा है।

बांग्लादेश में हिंदी की स्थिति : Hindi in Bangladesh 

बांग्लादेश में हिंदी की स्थिति अच्छी है। वहाँ इंडिया इंटरनेशनल स्कूल में सातवीं कक्षा तक के हिंदी अध्यापन की व्यवस्था की गयी है। ढाका विश्वविद्यालय में यह पढ़ाया जाता है, परंतु अवनक वह जिस स्तर पर पहुँचना चाहिए था। उस स्तर तक नहीं पहुँची है।

पाकिस्तान में हिंदी की स्थिति : Hindi in Pakistan 

भारत और पाकिस्तान के बीच हालात ठीक न होने के कारण वहाँ नाममात्र उच्चशिक्षा में हिंदी को रखा गया है। लाहौर, पेशावर तथा हैदराबाद विश्वविद्यालयों में नाममात्र के लिए हिंदी पढ़ाया जाता है। भविष्य में अगर भारत और पाकिस्तान के संबंध ठीक हो जाते हैं तो निश्चित तौर पर पाकिस्तान में भी हिंदी के अच्छे दिन आएंगे।

इन पड़ोसी देशों के साथ श्रीलंका, म्यानमार, आदि देशों में भी हिंदी का अध्ययन अध्यापन हो रहा है।

निष्कर्ष :

अतः निष्कर्षतः कह सकते हैं कि आज कुछ स्वार्थी राजनीजिक नेताओं के कारण हिंदी भारत देश की राष्ट्रभाषा नहीं बन पा रही है। परंतु हिंदी संपर्क भाषा के रूप में पूरे विश्व स्तर पर पहुँच चुकी है। हिंदी पूरे भारत वर्ष के जनमानस की भाषा है। आज हिंदी पूरे देश में अध्ययन, अध्यापन अनुसंधान एवं व्यवहार की दृष्टि से उपयोग में लायी जा रही है। विदेशों में विदेशी भाषा के रूप में हिंदी भाषा को महत्व प्राप्त हो चुका है। अगर हिंदी राष्ट्रभाषा होती तो अब तक विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित हो चुकी होती । आज मॉरीशस, त्रिनीदाद, गयाना, फीजी, अमेरिका, लंदन, रूस, कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया, नेपाल, ब्रम्हा, भूटान, बांग्लादेश आदि देशों में अपना अलग पहचान बना चुकी है। आनेवाले समय में अगर हिंदी भारत देश की राष्ट्रभाषा बनती है तो उसके प्रचार को और गति प्राप्त होगी।

संदर्भ;

1. डॉ. त्रिभुवननाथ शुक्ल, हिंदी भाषा का आधुनिकीकरण एवं मानकीकरण, विकास प्रकाशन, कानपुर, पृ. 31

2. डॉ. भोलानाथ तिवारी, हिंदी भाषा का अंतरराष्ट्रीय संदर्भ, पृ. 88

3. डॉ. त्रिलोचन पांडे, त्रिनिदाद : कार्नीवल का देश, खन्ना बुक डिपो, जबलपुर, प्रथम 1984, पृ. 20

4. डॉ. भोलानाथ तिवारी, हिंदी भाषा का अंतरराष्ट्रीय संदर्भ, पृ. 88

5. डॉ. त्रिभुवननाथ शुक्ल, हिंदी भाषा का आधुनिकीकरण एवं मानकीकरण, विकास प्रकाशन, कानपुर, प्रथम 2005, पृ. 34

- लेफ्ट. डॉ. रविंद्र पाटिल

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